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गरीबी उन्मूलन एवं आर्थिक उन्नति के सुखद संकेत

Nilmani Pal
13 July 2023 7:40 AM GMT
गरीबी उन्मूलन एवं आर्थिक उन्नति के सुखद संकेत
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- ललित गर्ग-

आजादी के अमृत काल में सशक्त भारत एवं विकसित भारत को निर्मित करते हुए गरीबमुक्त भारत के संकल्प को भी आकार देने के शुभ संकेत मिलने लगे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं उनकी सरकार ने वर्ष 2047 के आजादी के शताब्दी समारोह के लिये जो योजनाएं एवं लक्ष्य तय किये हैं, उनमें गरीबी उन्मूलन के लिये भी व्यापक योजनाएं बनायी गयी है। इससे पूर्व मं बनायी मोदी सरकार की योजनाओं के गरीबी उन्मूलन के चमत्कारी परिणाम आये हैं। हाल ही में जारी संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम व ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक अध्ययन रिपोर्ट में यह बताया गया कि पिछले पंद्रह वर्षों में भारत 41.5 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा के ऊपर उठाने में कामयाब हुआ है। निस्संदेह, यह खबर भारतीय अर्थव्यवस्था की सुखद तस्वीर पेश करती है। एक और दूसरी सुखद आर्थिक संकेत देने वाली खबर यह आयी है कि मशहूर वित्तीय एजेंसी गोल्डमेन सैक्स के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था वर्ष 2075 तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बन जायेगी।

विगत नौ वर्ष में मोदी सरकार विकास एवं सशक्तीकरण के अनेक आयाम स्थापित किये हैं, सरकार ने ऐसी गरीब कल्याण की योजनाओं को लागू किया गया है, जिससे भारत के भाल पर लगे गरीबी के शर्म के कलंक को धोने के सार्थक प्रयत्न हुए है एवं गरीबी की रेखा से नीचे जीने वालों को ऊपर उठाया गया है। वर्ष 2005 से 2020 तक देश में करीब 41 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर आए हैं तब भी भारत विश्व में एकमात्र ऐसा देश है जहां गरीबी सर्वाधिक है। भारत और इसकी अर्थव्यवस्था की सफलताओं व संभावनाओं की बुनियाद में राजनीतिक स्थिरता, मोदी सरकार की दूरगामी एवं गरीबी उन्मूलन की योजनाओं की बड़ी भूमिका है। यूएनडीपी की वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के आंकडे भी इसी तथ्य की पुष्टि करते हैं। साल 2005-06 में देश में करीब 64.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी-रेखा के नीचे जी रहे थे। वर्तमान में अब यह संख्या काफी कम होकर वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक के अनुसार भारत में कुल 23 करोड़ गरीब हैं।

बावजूद इसके यह स्पष्ट संकेत है कि तमाम कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नए विचारों एवं कल्याणकारी योजनाओं पर विमर्श के साथ गरीबों के लिये आर्थिक स्वावलम्बन-स्वरोजगार की आज देश को सख्त जरूरत है। गरीबों को मुफ्त की रेवड़िया बांटने एवं उनके वोट बटोरने की स्वार्थी राजनीतिक मानसिकता से उपरत होकर ही संतुलित समाज संरचना की जा सकती है। मोदी सरकार राजनीतिक रूप से स्थिर रही हैं और इनकी प्राथमिकताओं में गरीबी उन्मूलन प्रमुखता से शामिल रहा है। महान् अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह की सरकार भी स्थिर थी और उन्होंने भी गरीबी उन्मूलन के ठोस उपक्रम किये। उनकी सरकार के समय से ही यह प्रयास निरन्तर जारी है। अनूठी बात यह है कि ये दोनों सरकारें दो विपरीत राजनीतिक ध्रुवों पर खड़ी रही हैं, पर इनका आर्थिक दर्शन एक रहा है। मगर भारतीय अर्थव्यवस्था के नीति-नियंताओं को इसकी कुछ विसंगतियों को गंभीरता से देखने की जरूरत है। देश में गरीबी का अंत जितना जरूरी है, आर्थिक विषमताओं से निपटना उससे कम अहम नहीं है। ऑक्सफेम की हालिया रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि देश की 60 फीसदी संपत्ति सिर्फ पांच प्रतिशत भारतीयों के पास है, जबकि निचले 50 प्रतिशत लोगों के पास राष्ट्रीय संपत्ति का सिर्फ तीन फीसदी हिस्सा है। हमें इस बात की खुशी है और होनी चाहिए कि हमने डेढ़ दशकों में इतने करोड़ों लोगों को गरीबी-रेखा से ऊपर उठाया, मगर हम इस तथ्य की भी अनदेगी नहीं कर सकते कि 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त राशन मुहैया कराया जा रहा है। एक अच्छी-खासी तादाद में हमारे करोड़पति-अरबपति दूसरे देश जाकर बस भी रहे हैं। क्या भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले अरबपतियों पर कोई प्रभावी दण्ड व्यवस्था लागू नहीं होनी चाहिए? भारतीय सत्ता प्रतिष्ठानों को इन विसंगतियों पर नियंत्रण पाने के तार्किक रास्ते तलाशने होंगे। हम नहीं भूल सकते कि हमारी गरीबी की रेखा जिस स्तर पर तय होती है, उसके ऊपर भी जीवन काफी कठिन है। इसलिए इन खुशनुमा आर्थिक तस्वीरों को हाशिये के करोड़ों भारतीयों के लिए सुखद बनाने की कवायद की जाए।

जिन दो एजेंसियों ने भारत की सुखद एवं खुशहाल आर्थिक तस्वीर प्रस्तुत की है, उस तस्वीर में एक वर्तमान भारत से संबंधित है, दूसरी भविष्य के भारत के संबंध में। दोनों ही तस्वीर नये भारत, सशक्त भारत, विकसित भारत एवं दूसरी की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बनने की बात को उजागर कर रही है। इन सुखद क्षणों में अधिक सावधानी एवं सर्तकता अपेक्षित है। यह अधिक चुनौतीपूर्ण दौर है, क्योंकि भारत अमीर-गरीब के बीच बढ़ रहा फासला एक चिन्ता का कारण है, जिस बड़ा राजनीतिक मुद्दा होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से यह मुद्दा कभी भी राजनीतिक मुद्दा नहीं बना। शायद राजनीतिक दलों की दुकानें इन्हीं अमीरों के बल पर चलती है और गरीबी कायम रहना उनको सत्ता दिलाने का सबसे बड़ा हथियार है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में अमीर अधिक अमीर हो रहे हैं और गरीब अधिक गरीब। विपक्ष के सामने इससे अच्छा क्या मुद्दा हो सकता है?

गरीबी के आंकड़ों में कमी के लिए इनदिनों दो घटनाक्रमों का जिक्र सुनने को मिल रहा हैं। पहला, ग्रामीण रोजगार गारंटी जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए बड़ी मात्रा में नगद भुगतान और दूसरा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना एवं उज्ज्वला योजना के तहत सब्सिडी युक्त ईंधन एवं मुफ्त अनाज। गरीबी के स्तर पर इन कार्यक्रमों के प्रभाव को मापने का एक आधार है। मसलन, इन कार्यक्रमों से लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ है और उन्हें मजदूरी से आय मिलती है, यह गरीबी दूर करने का प्रभावी तरीका है। कल्याणकारी योजनाओं के रूप में सस्ती गैस का अर्थ है एक प्रमुख घरेलू खर्च की बचत। वहीं मुफ्त खाद्यान्न का अर्थ है भोजन पर होने वाले खर्च में बचत यानी बढ़ी हुई आय।

नया भारत-सशक्त भारत बनाने की जरूरत यह नहीं है कि चंद लोगों के हाथों में ही बहुत सारी पूंजी इकट्ठी हो जाये, पूंजी का वितरण ऐसा होना चाहिए कि विशाल देश के लाखों गांवों एवं करोड़ों लोगों को आसानी से उपलब्ध हो सके। लेकिन क्या कारण है कि महात्मा गांधी को पूजने वाला पूर्व सत्ताशीर्ष का नेतृत्व उनके ट्रस्टीशीप के सिद्धान्त को बड़ी चतुराई से किनारे करता रहा है। यही कारण है कि एक ओर अमीरों की ऊंची अट्टालिकाएं हैं तो दूसरी ओर फुटपाथों पर रेंगती गरीबी। एक ओर वैभव ने व्यक्ति को विलासिता दी और विलासिता ने व्यक्ति के भीतर क्रूरता जगाई, तो दूसरी ओर गरीबी तथा अभावों की त्रासदी ने उसके भीतर विद्रोह की आग जला दी। वह प्रतिशोध में तपने लगा, अनेक बुराइयां बिन बुलाए घर आ गईं।

महंगाई इनदिनों तेजी से बढ़ रही है। टमाटर लाल हो गये हैं, कभी प्याज की तरह यह भी बड़ा राजनीतिक हथियार न बन जाये? निश्चित ही महंगाई का समाधान एक ज्वलंत मुद्दा है, मौद्रिक मोर्चे पर केंद्रीय रिजर्व बैंक के प्रयासों के अतिरिक्त केंद्र व राज्य सरकारों से और अधिक प्रयास अपेक्षित हैं जैसे उत्पादन शुल्क, वैट आदि करों में कटौती, आवश्यक वस्तुओं की पर्याप्त आपूर्ति, कालाबाजारी पर रोक, आयात में सीमा शुल्क कटौती द्वारा सरलीकरण, बड़े औद्योगिक एवं व्यापारिक घराने की बजाय निचले स्तर पर व्यापार एवं उद्यम को प्रोत्साहन इत्यादि। इससे गरीब की जमा-पूंजी व आय सुरक्षित होगी और उसके गरीबी रेखा से बाहर आने का रास्ता तैयार होगा। जापान एवं चीन जैसे देशों की तरह भारत के हर नागरिक को उत्पाद एवं उद्यम से जोड़ना होगा।

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