पाकिस्तान में दिया बयान इतना बड़ा बन जाएगा, अंदाजा नहीं था: जावेद अख़्तर
दिल्ली: आसान से शब्दों और छोटे-छोटे जुमलों में बहुत बड़ी बात कह देना जावेद अख्तर का अंदाज रहा है। उनका लेखन किसी परिचय का मोहताज नहीं है। हाल ही में पड़ोसी मुल्क में कही गई उनकी एक जरा सी बात ने तूफान खड़ा कर दिया है। जावेद अख्तर का कहना है कि उन्हें खुद नहीं पता था कि उन्होंने कोई इतनी बड़ी बात कह दी है।
दरअसल वह ‘फैज फेस्टिवल’ में शिरकत करने पाकिस्तान में लाहौर गए थे। वहां बातचीत के दौरान उनसे कहा गया कि भारत के कलाकारों को पाकिस्तान में जितना प्यार और अपनापन मिलता है, पाकिस्तान के कलाकारों को भारत में उस तरह से नहीं अपनाया जाता। इस पर जावेद अख्तर ने अपने अंदाज में जवाब दिया कि मुंबई पर आतंकी हमला करने वाले लोग अभी भी आपके मुल्क में घूम रहे हैं और अगर इस बात को लेकर आम हिंदुस्तानी के दिल में शिकायत है तो आपको इसका बुरा नहीं मानना चाहिए। जावेद अख्तर की बात को पाकिस्तानियों ने दिल पर ले लिया और बुरा मान गए। दिलचस्प बात यह रही कि जावेद अख्तर के इस बयान पर वहां मौजूद लोगों ने उस वक्त तो तालियां बजाईं, लेकिन फिर नाराज हो गए और कुछ लोगों ने यहां तक कह डाला कि जावेद अख्तर को पाकिस्तान का वीजा नहीं दिया जाना चाहिए था।
तूफान अभी थमा नहीं है और इस पूरे विवाद पर जावेद अख्तर का कहना है कि उन्हें खुद नहीं पता था कि उनकी कही बात से पाकिस्तान से खलबली मच जाएगी। एक चैनल के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में जो बयान उन्होंने दिया, वह ‘इतना बड़ा’ बन जाएगा, इसका उन्हें भी नहीं पता था, पर इतना जरूर है कि इसे लेकर वह पहले से स्पष्ट थे कि वहां जाकर साफगोई से अपनी बात कहेंगे और उन्होंने वही किया।
जावेद अख्तर की ज़ुबान, कलम और जहन की साफगोई ही उन्हें आला दर्जे का इंसान और एक मुकम्मल फनकार बनाती है। उन्होंने हिंदी सिनेमा में लेखकों का कद बढ़ाया और सलीम खान के साथ मिलकर यह साबित कर दिया कि एक उम्दा कहानी और चुस्त पटकथा ही किसी भी फिल्म की सफलता की गारंटी होती है। इन दोनों ने मिलकर 24 फिल्मों की पटकथा लिखी जिसमें से 20 सुपरहिट रहीं। जावेद अख्तर का फिल्मी सफर, उनका काम और उन्हें मिले सम्मान हिंदी सिनेमा के इतिहास का हिस्सा हैं। उनके निजी जीवन की बात करें तो जावेद अख्तर का जन्म 17 जनवरी 1945 को ग्वालियर में हुआ। लेखन का हुनर उन्हें अपने पिता जां निसार अख्तर और मां सफिया से मिला, जो उर्दू की मशहूर लेखिका थीं। उनके दादा और परदादा भी लेखन में अच्छा खासा दखल रखते थे। हालांकि विरासत से ज्यादा हालात की दुष्वारियों ने उनके इस जन्मजात हुनर को कुंदन बनाने का काम किया।
जावेद बहुत छोटे थे, जब उनकी मां का निधन हो गया। उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली। जावेद कुछ अर्सा भोपाल में रहने के बाद अपने नाना नानी के पास लखनऊ भेज दिए गए। कुछ अर्सा अलीगढ अपनी मौसी के यहां भी रहे। लखनऊ में स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद वह भोपाल लौट आए और सैफिया कॉलेज से स्नातक की उपाधि हासिल की। जावेद अख्तर 1964 में कुछ बनने का इरादा लेकर मुंबई चले गए। उनके पिता का घर मुंबई में ही था, लेकिन पिता के साथ विचारों का टकराव होने के कारण उन्होंने अपने दम पर कुछ बनने का फैसला किया। हकीकत यह थी कि उस वक्त न तो मुंबई में उनका कोई ठिकाना था और न ही आमदनी का कोई जरिया। जेब में चंद रूपए आखिर कब तक चलने वाले थे। एक अर्सा संघर्ष और छोटे-मोटे काम करने के बाद नवंबर 1969 में उन्हें काम मिलना शुरू हुआ। उसके बाद का फिल्मी दुनिया का सफर किसी परिकथा से कम नहीं। उन्होंने सलीम खान के साथ जोड़ी बनाई और 1971 से 1982 तक हिंदी सिनेमा को बेहतरीन फिल्में दीं। खुद उनके शब्दों में, छह वर्षों में एक के बाद एक लगातार बारह सुपर हिट फ़िल्में, पुरस्कार, तारीफें, अखबारों और मैगज़ीनों में इंटरव्यू, तस्वीरें, पैसा और पार्टियां, दुनिया के सफ़र, चमकीले दिन, जगमगाती रातें- जिंदगी एक टेक्नीकलर ख़्वाब है।
सलीम-जावेद की जोड़ी हालांकि बाद में टूट गई और दोनों ने एक साथ काम करना छोड़ दिया, लेकिन इन दोनों बेहतरीन लेखकों की कलम का जादू लगातार चलता रहा। इसी दौरान जावेद अख्तर की जिंदगी में एक और मोड़ आया, जब 1979 में उन्होंने अपने पिता की मौत के तीन बरस बाद शायरी का रूख किया। इस तरह अपने मरहूम शायर पिता से लाख शिकायतों के बाद उनके बागी बेटे ने उनकी विरासत को अपना लिया। जावेद ने अपनी किताब में लिखा है कि लड़कपन से जानता हूं कि चाहूं तो शायरी कर सकता हूं मगर आज तक की नहीं है। ये भी मेरी नाराज़गी और बग़ावत का एक प्रतीक है। 1979 में पहली बार शेर कहता हूं और ये शेर लिखकर मैंने अपनी विरासत और अपने बाप से सुलह कर ली है।
फिल्म सीता और गीता के सेट पर जावेद अख्तर की मुलाकात हनी ईरानी से हुई। चार महीने के भीतर दोनों ने शादी कर ली। हनी ईरानी से उनके दो बच्चे फरहान और जोया हैं, जो फिल्म उद्योग के जाने माने नाम हैं। जावेद अख्तर और हनी ईरानी 1983 में एक दूसरे से अलग हो गए। हालांकि दोनों ने बड़े दोस्ताना अंदाज में एक दूसरे का साथ छोड़ने का फैसला किया। अलग होने के बाद भी अच्छे दोस्तों का रिश्ता निभाते रहे और अपने बच्चों के अच्छे माता-पिता साबित हुए। जावेद ने शबाना आजमी के साथ दोबारा घर बसा लिया।
इतने कामयाब करियर, मान सम्मान और धनदौलत हासिल करने के बाद एक इंसान को अपने आप से जितना खुश होना चाहिए, जावेद अख्तर उतने खुश हैं नहीं। उन्होंने इस बारे में अपनी किताब में लिखा है, ‘आज इतने बरसों बाद अपनी ज़िंदगी को देखता हूं तो लगता है कि पहाड़ों से झरने की तरह उतरती, चट्टानों से टकराती, पत्थरों में अपना रास्ता ढूंढती, उमड़ती, बलखाती, अनगिनत भंवर बनाती, तेज़ चलती और अपने ही किनारों को काटती हुई ये नदी अब मैदानों में आकर शांत और गहरी हो गई है।’ उन्होंने अपनी किताब में लिखा, ‘ऐसा तो नहीं है कि मैंने ज़िंदगी में कुछ किया ही नहीं है, लेकिन फिर ये ख़्याल आता है कि मैं जितना कर सकता हूं, उसका तो एक चौथाई भी अब तक नहीं किया और इस ख़्याल की दी हुई बेचैनी जाती नहीं।’ बहरहाल जावेद अख्तर के कद का इंसान भले अपनी कामयाबियों से संतुष्ट न हों, उनकी कलम का जादू आने वाली सदियों तक कायम रहेगा।