यूपी। वाराणसी के ज्ञानवापी मामले में आज फिर से सुनवाई हो सकती है। आज शिवलिंग की कार्बन डेटिंग पर फैसला आ सकता है। ज्ञानवापी परिसर में सर्वे के दौरान मिले शिवलिंग की चौड़ाई, लंबाई, गहराई और आसपास के क्षेत्र की कार्बन डेटिंग या आधुनिक तरीके से जांच होगी या नहीं, इसी मामले पर शुक्रवार को जिला जज एके विश्वेश फैसला सुना सकते हैं। इसके अलावा कोर्ट में आज ज्ञानवापी स्थित श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन और अन्य विग्रहों के संरक्षण की याचिका पर भी सुनवाई होने की संभावना है।
बता दें कि शिवलिंग की कार्बन डेटिंग को लेकर हिन्दुओं में दो पक्ष में लोग बंटे हुए हैं। हिंदू पक्षकारों में इसको लेकर विवाद है। वाराणसी जिला अदालत में शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की मांग को लेकर याचिका डाली गई थी, जिसको लेकर हिंन्दूओं का एक मत नहीं था। श्रृंगार गौरी-ज्ञानवापी कॉम्प्लेक्स मामले में पांच महिला वादी में से एक राखी सिंह ने कहा था, "शिवलिंग की कार्बन डेटिंग एक धर्म विरोधी कार्य है और सभी सनातनियों (हिन्दू) की भावनाओं और विश्वासों का मजाक है।"
कार्बन डेटिंग एक व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली वो विधि है, जिसके जरिए हम ये पता लगाते हैं कि कोई भी ऑर्गेनिक मैटेरियल (कार्बनिक पदार्थ) कब से वहां है, यानी उसकी आयु कितनी है। इससे ये भी पता लगाया जाता है कि क्या वो चीज कभी जीवित (लिविंग) थीं या नहीं। किसी लिविंग थींग (सजीव वस्तू) में अलग-अलग रूपों में कार्बन होता है। कार्बन डेटिंग पद्धति इस फैक्ट का इस्तेमाल करती है कि कार्बन का एक विशेष समस्थानिक जिसे C-14 कहा जाता है, जिसका एटॉमिक मास (परमाणु द्रव्यमान) 14 है, रेडियोधर्मी है और उस दर से क्षय होता है।
वायुमंडल में कार्बन का सबसे प्रचुर समस्थानिक कार्बन-12 होता है, या एक कार्बन परमाणु है जिसका एटॉमिक मास 12 है। कार्बन-14 की बहुत कम मात्रा भी मौजूद होती है। वातावरण में कार्बन-12 से कार्बन-14 का अनुपात लगभग स्थिर होता है।
लिविंग थींग (सजीव वस्तू) की कार्बन डेटिंग करना अधिक आसान है। नॉन लिविंग थींग (निर्जीव वस्तू) पर कार्बन डेटिंग अत्यंत प्रभावी नहीं है। कार्बन डेटिंग को सभी परिस्थितियों में लागू नहीं किया जा सकता है। खासकर इसका उपयोग निर्जीव चीजों की उम्र निर्धारित करने के लिए नहीं किया जा सकता है, जैसे कि चट्टान या पत्थर का। कार्बन डेटिंग के माध्यम से 40,000-50,000 वर्ष से अधिक की आयु का पता नहीं लगाया जा सकता है। वो भी इसलिए क्योंकि आधे जीवन के आठ से दस चक्र पार करने के बाद, कार्बन -14 की मात्रा लगभग जीरो या पता लगाने योग्य नहीं रह जाता है।