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युवतियों का समूह लूर नृत्य पर होली गीतों से गूंज उठा

Shantanu Roy
26 March 2024 12:02 PM GMT
युवतियों का समूह लूर नृत्य पर होली गीतों से गूंज उठा
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जालोर। जालोर कस्बे की पहाडिय़ों की तलहटी में स्थित मेवासा नाल मे कई वर्षो पूर्व एक नियोजित सभ्यता के खण्डर आज भी दिखाई देते हैं। गौतमेश्वर मंदिर के पास तलहटी के ऊपर विस्तृत मैदान में मीणा जाति के लोग परम्परागत वेशभूषा में एकत्रित होकर उत्सव मनाया करते थे। यहां छोरियों का चौहटा पर होली पर्व पर बालिकाएं लूर नृत्य करती थी। मीणा समाज के बुजुर्गों ने बताया कि छोरियों का चौहटा पहाड़ी की उंचाई पर हैं। वहां पर बालिकाएं होली के समय लूर नृत्य किया करती थी। साथ ही यहां गांव का होलिका दहन भी होता था। इस कारण इस स्थान को आज भी होलिका चौक व छोरियों का चौहटा कहा जाता है। यहां गेर नृत्य के साथ ही कई खेल प्रतियोगिताएं भी आयोजित होती थी। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि यहां मीणा जाति के लोग बसा करते थे।

यह भी किंवदंती है कि राजा महाराजाओं के समय चौकीदार मीणा जाति के युवा सेना के जवान हुआ करते थे। यहां के मीणा जाति के लोग वीरता के लिए मारवाड़ अंचल में जाने जाते थे। उनका एक ठाकुर भी हुआ करता था। जो वंशानुगत चलता था। उन्हीं के वंशज आज भी बारला मेवासा गांव में है। इनके पास कई ताम्र पत्र है। रहवासी लोगों को रोजगार के लिए खेती के काम के लिए तत्कालीन भाद्राजून राजा ने मीणा ठाकुर आदाराम के साथ यहां के लोगों को खेती के काम के लिए राणीबाव की ढाणी (भाद्राजून ढाणी का प्राचीन नाम) में भेजा। खेती का काम करने के लिए ये लोग मेवासा गांव में आकर बस गए। तब से लेकर आज तक ये लोग यही रह रहे हैं। ऐसे मे कालांतर में यह नगर उजड़ गया। नगर के उजडऩे के बाद बारला मेवासा में आज भी उनके वंशज रह रहे हैं। मेवासा की नाल में सुंदर रम्य पहाडियां हैं। यहां सावन के महीने में झरने बहते हैं व चारों ओर हरीतिमा का मनमोहक दृश्य दिखाई देता है। मेवासा नाल तक पहुंचने के लिए कच्चा मार्ग भी बना हुआ है। समीप ही विदेशी पर्यटकों के ठहरने के लिए हैरिटेज होटल भी है। भाद्राजून में प्राचीन छतरियां भी ऐतिहासिक यादों को ताजा करती हैं। स्थान पर्यटन का एक केन्द्र बन सकता है।
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