उत्तराखंड में अधूरी सुरंगों से चार गांवों में धंस रही जमीन
उत्तराखंड : तीन दिन पहले सिलक्यारा सुरंग से तबाही उत्तरकाशी जिले में आधी-अधूरी बनीं सुरें, चार जिलों के लिए खतरा बनी हुई हैं। जमीन के नीचे से इन सुरंगों के कारण जमीन धंस रही हैं। जिसके चलते नए पुराने हर मकान पर फ्लैट पैड रह रहे हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने इस समस्या को लेकर कई बार जिला प्रशासन से भूगर्भीय सर्वेक्षण की मांग की, लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। असल में यह रंगे लोहारी नागा पाला जलविद्युत परियोजना के लिए बनाई जा रही थी। जो कि वर्ष 2010 में पर्यावरण बनाम विकास के अंक में 60 प्रतिशत तक काम पूरा करने के बाद बंद कर दिया गया। भटभंगवाड़ी में आधी-अधूरी तीन से चार ये रंगे तिहार, कुज्जन, सुनगर के नीचे से हैं।
भंगेली गांव के प्रधान प्रवीण प्रज्ञान का कहना है कि इन रंगीनियों के कारण वे अपने क्षेत्र में नए और पुराने हर मकान में फूट पड़ रही हैं। जहां हर पल अंधेरे का खतरा बना रहता है। बताया गया कि सुरंग निर्माण के दौरान जब ब्लास्ट हुए तो उनका पूरा गांव हिल गया था। आज भी ये रंगे उनके लिए खतरे का सबब बनी हुई हैं। बताया कि वह कमरे में टाइलें भी चटकाते हैं तो टाइलें भी मोटी हो जाती हैं।
600 लैपटॉप की परियोजना
600 साल की आयरनरीनाग पाला परियोजना का निर्माण एनटीपीसी ने 2005 में शुरू किया था। लेकिन इसका निर्माण ज्वालामुखी के साथ ही हुआ था। विद पर्यावरण प्रो.जीडी अग्रवाल ने परियोजना निर्माण से पर्यावरण को खतरे में डालने का विरोध किया है। जिसे वर्ष 2010 में बंद कर दिया गया। प्रोजेक्ट के लिए आधी-अधूरी बनी सुरंगों को ऐसे ही छोड़ दिया गया।
आधा-अधूरी बनीं सुरगे बड़ा खतरा हो सकता है। भूकंप के दौरान ऐसी तरंगें धंसने से जान-माल का नुकसान हो सकता है। इस तरह की तरंगों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। -डॉ.सुशील कुमार, भूगर्भ वैज्ञानिक
हादसे के बाद बॉबी और संतोष ने ग़रीब बातें कीं-अब वापस नहीं लौटेंगे
सिद्धांत सिलक्यारा सुरंग में काम करने वाले संतोष और बॉबी सिलक्यारा सुरंग हादसे के बाद मौत की नींद सो गए हैं। इस हादसे के बाद ‘रंगीन’ में भावुक संतोष ने जहां 17 दिन तक जद्दोजेहद की जिंदगी बिताई। वहीं बाॅबी ने अपने छोटे भाई संतोष को बचाने के लिए गैंग में बंद कर दिया।
अब मित्रवत् नेमसिल्कयारा को वापस लेने का कोई निर्णय नहीं लिया गया है। यूपी के मोतीपुर श्रावस्ती निवासी संतोष कुमार भी गंगा के अंदर फंस गए थे। संतोष के बड़े भाई बॉबी दिन की रात में होने के सुरों से बाहर ही थे। संतोष का कहना है कि शुरुआत में उन्हें लगा कि वह यहां से कभी बाहर नहीं निकल पाएंगे। लेकिन जब उन्हें पाइपलाइन से खाना मिला तो उम्मीद बंधी कि उन्हें बचाने का प्रयास किया जा रहा है। दोनों ही भाई अब गांव लौट आए हैं। बॉबी का कहना है कि वह दोनों अब कभी सिलक्यारा नहीं लौटेंगे। वह उस रेंज में नहीं जायेंगे। वह ऐसा काम चुनेंगे जहां जान का खतरा नहीं होगा।