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ओमिक्रॉन पर आ गई बड़ी खुशखबरी, वैज्ञानिकों ने खोज निकाला वायरस के नए रूप का तोड़
jantaserishta.com
29 Dec 2021 12:14 PM GMT
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नई दिल्ली: दुनिया भर में कोरोना वायरस के डेल्टा और डेल्टा प्लस वैरिएंट (Delta and delta plus variant) के बाद ओमिक्रॉन वैरिएंट (Omicron Variant) ने तबाही मचानी शुरू कर दी है. दक्षिण अफ्रीका के बाद यह वैरिएंट 90 से अधिक देशों में फैल चुका है. ओमिक्रॉन को डेल्टा वैरिएंट से भी खतरनाक बताया जा रहा है क्योंकि ये बहुत तेजी से फैलता है. दुनिया भर के साइंटिस्ट दिन-रात रिसर्च करके इस नए वैरिएंट के खिलाफ असरदार हथियार ढूंढने में लगे हुए हैं.
अब ओमिक्रॉन के खतरे को लेकर वैज्ञानिकों ने एक राहत भरी खबर दी है. दरअसल, वैज्ञानिकों ने उन एंटीबॉडी की पहचान की है, जो ओमिक्रॉन और कोरोनावायरस के अन्य वैरिएंट के उन हिस्सों को निशाना बनाती है जिनमें म्यूटेशन के दौरान भी कोई बदलाव नहीं होता है.
नेचर जर्नल में पब्लिश हुई इस स्टडी से वैक्सीन (Vaccine) और एंटीबॉडी (Antibodies) के इलाज को डेवलप करने में मदद मिल सकती है, जो न केवल ओमिक्रॉन बल्कि भविष्य में कोरोनावायरस के अन्य वैरिएंट के खिलाफ भी प्रभावी रहेंगे.
'यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन स्कूल ऑफ मेडिसिन' में एसोसिएट प्रोफेसर डेविड वेस्लर (David Veesler) ने कहा, "यह रिसर्च हमें बताती है कि कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन के सबसे सुरक्षित हिस्से को टारगेट करने वाली एंटीबॉडी पर ध्यान देकर उसकी लगातार खुद को नए रूप में ढालने की क्षमता से लड़ सकते हैं."
ओमिक्रॉन वेरिएंट के स्पाइक प्रोटीन में म्यूटेशन की संख्या 37 है. स्पाइक प्रोटीन वायरस का वो हिस्सा है जिसके जरिए वह मानव कोशिकाओं में प्रवेश करता है और संक्रमण फैलाता है.
कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वैरिएंट में हुए इन बदलावों से समझा जा सकता है कि आखिर क्यों ये वैक्सीन लगावाने वाले और पहले से संक्रमित हो चुके लोगों को दोबारा संक्रमित करने में सक्षम है.
वेस्लर ने कहा, "हम जिन सवालों के जवाब देने की कोशिश कर रहे थे, वे थे कि ओमिक्रॉन वैरिएंट में स्पाइक प्रोटीन में म्यूटेशन ने कोशिकाओं से जुड़ने और इम्यूनिटी की एंटीबॉडी से बचने की क्षमता को कैसे प्रभावित किया है."
स्यूडोवायरस का उपयोग किया
इन म्यूटेशन के प्रभाव का आकलन करने के लिए रिसर्चर्स ने स्यूडोवायरस (Pseudovirus) बनाया जिसमें ओमिक्रॉन जैसे स्पाइक प्रोटीन थे. दूसरी तरफ, कोविड महामारी की शुरुआती दौर की संरचना वाला स्यूडोवायरस बनाया. शोधकर्ताओं ने वायरस के अलग-अलग रूपों की तुलना की और पाया कि महामारी की शुरुआती दौर के वायरस में पाए जाने वाले स्पाइक प्रोटीन की तुलना में ओमिक्रॉन वैरिएंट स्पाइक प्रोटीन 2.4 गुना बेहतर ढंग से खुद को मानव कोशिकाओं से बांधने में सक्षम था.
तीसरी बूस्टर डोज जरूरी
टीम ने अलग-अलग वैरिएंट पर एंटीबॉडी के प्रभाव की भी जांच की. शोधकर्ताओं ने पाया कि उन लोगों की एंटीबॉडी जो पहले के वैरिएंट से संक्रमित थे और जिन्होंने अभी सबसे अधिक उपयोग की जा रही 6 वैक्सीन में से कोई लगवाई थी, सभी में संक्रमण को रोकने की क्षमता कम हो गई थी.
वेस्लर ने कहा, जो लोग संक्रमित हो गए थे, ठीक हो गए थे और फिर वैक्सीन की दोनों खुराक ले चुके थे, उनकी एंटीबॉडी ने भी एक्टिविटी को कम दिया था, लगभग 5 गुना कम. वहीं किडनी डायलिसिस वाले मरीजों का ग्रुप, जिन्हें मॉडर्न और फाइजर द्वारा बनाई हुई वैक्सीन की खुराक के साथ बूस्टर मिला था, उनमें एंटीबॉडी की एक्टिविटी में केवल 4 गुना कमी दिखी थी. इससे पता चलता है कि एक तीसरी खुराक वास्तव में ओमिक्रॉन के खिलाफ मददगार है.
वेस्लर ने कहा कि यह पता चलता है कि एंटीबॉडीज वायरस के कई अलग-अलग वैरिएंट में संरक्षित क्षेत्रों की पहचान करके उन्हें बेअसर करने में सक्षम हैं. जिससे पता चलता है कि इन क्षेत्रों को टारगेट करने वाली वैक्सीन और एंटीबॉडी ट्रीटमेंट नए वैरिएंट के खिलाफ प्रभावी हो सकते हैं.
भारत में ओमिक्रॉन की स्थिति
देश में ओमिक्रॉन संक्रमण तेजी से फैल रहा है और अभी तक 804 ओमिक्रॉन वैरिएंट के मरीज भारत में मिल चुके हैं. जिनमें से दिल्ली में ही कुल 238 केस हैं. इसके बाद महाराष्ट्र में 167 मामले हैं. वहीं कुल संक्रमितों की बात की जाए तो भारत में अभी 77,002 एक्टिव केस हैं.
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