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सरकार का सुरक्षा कवच! अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ सीधे ना तो बनेगा मामला और ना ही होगी जांच, राजनीती गरमाई
jantaserishta.com
1 Jan 2021 3:14 AM GMT
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फाइल फोटो
जांच एजेंसियां ना तो सीधे केस दर्ज नहीं कर सकेंगी और ना ही सीधे पूछताछ कर सकेंगी.
मध्य प्रदेश में अब अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कोई भी जांच एजेंसी राज्य सरकार की मंजूरी के बिना सीधे ना तो मामला दर्ज कर सकेगी और ना ही जांच शुरू कर सकेगी. शिवराज सरकार के इस फैसले पर अब सियासत गर्म हो गई है. कांग्रेस इसे जांच एजेंसियों के पर काटने की बात कह रही है.
कहने को तो मामा यानी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान फुल फॉर्म में हैं. माफिया को जमीन में गाड़ देने की बात कर रहे हैं, लेकिन जिस सामान्य प्रशासन विभाग की कमान इनके हाथों में है उसी विभाग का ये आदेश अब जांच में अफसरों का सुरक्षा कवच बन रहा है.
आदेश के मुताबिक, अब से किसी भी अधिकारी-कर्मचारी के खिलाफ जांच एजेंसियां ना तो सीधे केस दर्ज नहीं कर सकेंगी और ना ही सीधे पूछताछ कर सकेंगी. इससे पहले राज्य सरकार की मंजूरी लेनी पड़ेगी. विभाग ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में इस नई धारा को जोड़कर ये व्यवस्था लागू कर दी है और बकायदा इसके आदेश भी जारी कर दिए गए हैं.
भ्रष्ट और लापरवाह अधिकारियों की जांच से पहले जांच एजेंसियां भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 में धारा 17-ए के तहत सभी संबंधित अभिलेख और प्रतिवेदन संबंधित विभाग को भेजेंगे. इसके बाद संबंधित विभाग जांच करके मामला दर्ज करने या न करने की सूचना देगा.
हालांकि सरकार के मंत्री विश्वास सारंग इस पर तर्क देते हुए कह रहे हैं कि इससे कोई जांच प्रभावित नहीं होगी, बल्कि संबंधित विभाग को इसकी जानकारी होनी चाहिए कि किसी अफसर पर क्यों और क्या मामला दर्ज किया गया है, ये पारदर्शिता का निर्णय है. इस निर्णय से जांच एजेंसियां और मजबूत होंगी. विश्वास सारंग के मुताबिक यह कोई नया कदम नहीं बल्कि करप्शन के खिलाफ बीजेपी की सख्त नीति को दिखाता है.
अब कांग्रेस इस फैसले को तमाम जांच एजेंसियों के पर काटना बता रही है. कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री पीसी शर्मा का कहना है कि इससे भ्रष्टाचार और बढ़ेगा, क्योंकि अब सरकार तय करेगी कि किसकी जांच हो किसकी नहीं हो. इससे जांच एजेंसियां कमजोर पड़ जाएंगी. इससे बेहतर है कि सरकार को ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त को ही खत्म कर देना चाहिए.
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