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जानिए क्या है वजह
नई दिल्ली। ट्रिपल तलाक पर कठोर कानून बनने के बाद भी इसके दुरूपयोग के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे है. इसी को देखते हुए सरकार ने आरोपियों पर नकेल कसने की तैयारी कर रही है. तलाक-ए-हसन, तलाक अहसन और तलाक-ए-बाइन की पीड़ित महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया हैं. जहां सरकार को जवाब भी पेश करना है.मुस्लिम महिलाओं के संरक्षण के मुद्दे को सरकार गंभीर है. यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसला आने के बाद सरकार ट्रिपल तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत के खिलाफ कानून लेकर आई थी. लेकिन इसके बावजूद तलाक के तमाम और प्रकार केस सामने आ रहे है. सूत्रों की माने तो सरकार तीन तलाक को लेकर विभिन्न प्रकार के नियम लेकर आएगी.क्योंकि यह अनुच्छेद-14 (समानता के अधिकार का उल्लंघन है) का खुला उल्लंघन है. कानून मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि कानून और धर्म के विशेषज्ञों से परामर्श लेकर एक फ्रेमवर्क तैयार किया गया है, जिस पर गृह मंत्रालय से चर्चा के बाद इस पर कदम बढ़ाया जाएगा.तलाक के विभिन्न प्रकारों में मौजूदा समय अपनायी जा रही प्रक्रिया को बेहतर किया जाएगा. मौजूदा समय तलाक-ए-हसन, तलाक अहसन और तलाक-ए-बाइन को लेकर पूरी प्रक्रिया को काजी देखते हैं. उनकी मंजूरी से ही तलाक को संपन्न माना जाता है. सूत्रों की माने तो सरकार सीधे तौर पर इस प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी, लेकिन तलाक का एक प्रमाण-पत्र जारी करने का नियम लाएगी.
इसमें यह स्पष्ट किया जाएगा कि तलाक के समय कौन गवाह मौजूद थे. तारीख, समय, दिन, स्थान, कारण और तरीका क्या था, जिस तलाक की प्रक्रिया को अपनाया गया. वह प्रक्रिया क्या थी और उसे किस तारीख से शुरू किया गया और उसकी मियाद क्या थी.आने वाले दिनों में पति द्वारा जबानी, पत्र लिखकर, व्हाट्सऐप संदेश या अन्य तरीकों से दिए जाने वाले तलाक मान्य नहीं होगा. तलाक के लिए धर्म प्राधिकार यानी काजी द्वारा प्रमाण पत्र दिया जाना अनिवार्य किया जाएगा. तलाक-ए-हसन, तलाक अहसन और तलाक-ए-बाइन की पीड़ित महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की है. कानून मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक अदालत में सरकार अपने जवाब में स्पष्ट करेगी कि वह इस दिशा में काम कर रही है. भविष्य में एकतरफा तलाक मान्य नहीं होगा. याद रहे कि सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत आने वाले तलाक के विभिन्न प्रकारों को पीड़ित महिलाओं ने चुनौती दी है. जहां इन सभी प्रकारों को प्रतिबंधित करने की मांग लंबित है. जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच इन याचिकाओं पर सुनवाई करने की सहमति भी दे चुकी है. केंद्र सरकार, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और अन्य चार से एक माह के भीतर जवाब तलब भी किया गया था. हालांकि अब तक जवाबी हलफनामे नहीं दाखिल किए गए हैं.
तलाक की इस प्रक्रिया में तीन महीने लगते हैं. पुरुष तीन महीने में हर महीने एक-एक बार करके तीन बार तलाक बोलकर विवाह तोड़ सकता है. पहली बार तलाक बोलने पर भी पति पत्नी एक साथ रहते हैं. अगर इन तीन महीनों में दोनों में सुलह हो गई तो पति तलाक लेना रद्द हो जाएगा, अन्यथा तीसरे माह में आखिरी बार तलाक बोलकर रिश्ता खत्म कर दिया जाएगा.इस तरह के तलाक के बाद पति पत्नी दोबारा निकाह कर सकते हैं, लेकिन पत्नी को हलाला से गुजरना पड़ता है यानी अपने पिछले पति से दोबारा विवाह करने पहले किसी दूसरे मर्द से शादी करके उससे तलाक लेना पड़ता है. तलाक-ए-अहसन भी तीन महीने की प्रक्रिया है, इसमें तलाक ए हसन की तरह तीन बार तलाक कहने की जरूरत नहीं होती. बल्कि पति एक बार ही तलाक कहता है, जिसके बाद पति पत्नी एक ही छत के नीचे तीन महीने तक रहते हैं। इस अवधि में अगर दोनों में सुलह हो जाती है तो तलाक नहीं होता, वरना तीन महीने बाद तलाक हो जाता है. इस तलाक के बाद पति-पत्नी दोबारा निकाह कर सकते हैं. अगर इस्लाम के तीनों तलाक प्रक्रिया की तुलना करें तो ये काफी अलग हैं. तीन तलाक झटके में किसी भी माध्यम से तीन बार तलाक बोलकर दिया जा सकता है. इसमें तो कई बार लोग फोन पर मैसेज या कॉल के माध्यम से तलाक दे दिया करते थे.तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-अहसन में तलाक की एक प्रक्रिया और निश्चित अवधि होती है. इन दोनों प्रक्रियाओं में पति पत्नी को फैसला लेने के लिए वक्त मिलता है.
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Shantanu Roy
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