निर्मल रानी
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले दिनों दिल्ली में एक कार्यक्रम को संबोधित करने के दौरान कहा कि वह सड़क पर 'ग़लत तरीक़े ' से वाहन खड़े करने की 'प्रवृत्ति' को रोकने के लिए एक क़ानून लाने पर विचार कर रहे हैं। इस क़ानून के तहत जो व्यक्ति 'ग़लत तरीक़े' से गाड़ी की पार्किंग करेगा, उस वाहन मालिक के ख़िलाफ़ 1000 रूपये का जुर्माना लगाया जायेगा। साथ ही यह भी की जो व्यक्ति 'ग़लत तरीक़े' से पार्क की गयी गाड़ी की फ़ोटो खींच कर भेजेगा यानी 'सरकार की मुख़बिरी' करेगा,सरकार उसे 500 रुपये की धनराशि इनाम के तौर पर भी देगी। गडकरी ने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से एक कंप्लेंट नंबर भी जारी किया जायेगा। गोया इस क़ानून के बनने के बाद अब रोड साइड पर केवल चार पहिया वाहन ही नहीं बल्कि मोटरसाइकिल स्कूटर व स्कूटी आदि खड़ी करने वाले लोगों को भी जुर्माना देना होगा। इस क़ानून को लाने के पीछे गडकरी का तर्क है कि लोग अपने वाहनों के लिए पार्किंग नहीं देखते हैं। कहीं भी बाइक या अन्य वाहन खड़ा कर देते हैं। अतः इस नियम के शुरू होने से लोगों को ध्यान रहेगा कि ग़लत जगह पार्किंग करने पर एक हज़ार रुपये देना होगा। साथ ही इनाम के कारण लोग जागरूक भी होंगे। गडकरी के इस बयान के बाद ही आमलोगों में इस प्रस्तावित क़ानून को लेकर चर्चा शुरू हो गयी है। लोग यह बातें करने लगे हैं कि ऐसा क़ानून जनहितकारी होगा या इससे जनता में परेशानी और वैमनस्य बढ़ेगा ? कहीं यह क़ानून भी नोटबंदी की तरह जन अहितकारी तो साबित नहीं होगा ?
इसमें कोई शक नहीं कि हमारे देश के आम लोग जनसाधारण से जुड़ी तमाम बातों को लेकर काफ़ी लापरवाह हैं। अतिक्रमण,इसके चलते बाज़ारों में जाम की समस्या,ग़लत तरीक़े से गाड़ी पार्क कर देना,जहां चाहा वहीं खड़े होकर मूत्र विसर्जन करने लगना,कूड़ा करकट सड़कों,गलियों व नालियों में फेंकना यहाँ तक कि पान,तंबाकू खैनी आदि खाकर कहीं भी थूक देना जैसी असहज करने वाली अनेक प्रवृति गोया लोगों का स्वभाव बन चुकी है। कोई भी सभ्य समाज इसे क़तई अच्छा नहीं कह सकता। परन्तु यह एक सच्चाई है। अंग्रेज़ों ने इन सबसे बचने का दूसरा तरीक़ा निकाला था जिसे हम भारतीय नापसंद करते थे। उदाहरण के तौर पर इलाहाबाद के सिविल लाइंस क्षेत्र में शहरी क्षेत्र से प्रवेश करने के मुख्य द्वारा यानी निरंजन सिनेमा के निकट रेलवे ओवर ब्रिज के नीचे ब्रिटिश शासनकाल में एक बोर्ड लगाया गया था जिसपर लिखा था कि कोई भी भारतीय सायंकाल 5 बजे से रात्रि 10 बजे तक सिविल लाइन क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकता। और भारतीय लोगों को रोकने के लिए इसी जगह पर दो भारतीय घुड़सवार खड़े होते थे जो अंग्रेज़ों के इस आदेश को अमल में लाते थे। बुज़ुर्ग बताते हैं कि ऐसा नियम इसी लिये था कि शाम के वक़्त अंग्रेज़ों का परिवार सैर सपाटा और शॉपिंग करने निकलता था और अंग्रेज़ नहीं चाहते थे कि उस दौरान कोई सड़कों पर खड़े होकर मूत्र विसर्जन करता या थूक कर सार्वजनिक स्थलों को लाल पीला करता या अनर्गल चीख़ता चिल्लाता या अंग्रेज़ मेम्स की नंगी टांगें या उनके लिबास को निहारता दिखाई दे।
अतः हम भारतवासियों के एक बड़े वर्ग की असहज व विचलित करने वाली इस तरह की प्रवृत्तियों से निश्चित रूप से इंकार नहीं किया जा सकता। परन्तु स्वतंत्र देश में पार्किंग नियंत्रित करने के लिये प्रस्तावित ऐसे क़ानून वह भी जनता को सुख पहुँचाने वाले कम और सरकारी राजस्व को बढ़ाने वाले व जनता को परेशान करने वाले अधिक प्रतीत होते हैं। इसके लिये तो सरकार को ही जगह जगह पार्किंग का प्रबंध करना चाहिये। ठीक वैसे ही जैसे कि निश्चित रूप से सड़क पर कहीं भी शौच या मूत्र विसर्जन ग़लत है। परन्तु यदि किसी को कहीं अचानक इसकी ज़रुरत महसूस हो तो इसके लिये जगह जगह साफ़ सुथरा शौचालय उपलब्ध कराना भी तो आख़िर सरकार की ही ज़िम्मेदारी है ? इसी तरह सरकार ने विभिन्न अलग अलग मार्गों व क्षेत्रों में वाहन की गति नियंत्रण के अलग अलग मापदंड बना रखे हैं। कहीं अधिकतम गति सीमा 40 किलोमीटर प्रति घंटा है तो कहीं 60,80 या 100 किलोमीटर। परन्तु यदि कोई वी आई पी या वी वी आई पी इनमें से किसी भी मार्ग अथवा क्षेत्र से गुज़र रहा हो तो उसके लिये गति सीमा का कोई निर्धारण नहीं ? यहां तक कि फ़ायर ब्रिगेड की गाड़ी को भी अति विशिष्ट व्यक्ति के क़ाफ़िले के साथ 100 और 120 किलोमीटर की रफ़्तार से भागना पड़ता है जोकि उसकी क्षमता के बाहर है। परन्तु कैमरा चालान प्रणाली से तो आम आदमी के वाहन के एक ही दिन में ओवर स्पीड के कई कई चालान हो जाते हैं ? जनता को परेशान करने वाला क़ानून का यह दोहरा मापदंड नहीं फिर आख़िर क्या है ?
गडकरी द्वारा प्रस्तावित क़ानून में जहाँ पार्किंग स्थल की कमी एक समस्या साबित होगी वहीं किसी के फ़ोटो खींचकर भेजने से आपसी रंजिश व वैमनस्य बढ़ने की भी पूरी संभावना है। इसके चलते समाज में रंजिश व मनमुटाव भी बढ़ सकता है। साथ ही बेरोज़गारी के इस दौर में लोग 500 रूपये इनाम की लालच में पैसे कमाने के चक्कर में इसी 'अवैध पार्किंग मुख़बिरी' को ही अपना व्यवसाय भी बना सकते हैं। 'व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी' में तो इस विषय पर लोग यह भी पूछ रहे हैं कि यदि कथित अवैध रूप से पार्क किये गये एक ही वाहन की एक ही समय में एक से अधिक 'मुख़बिरों ' ने सरकार को फ़ोटो भेजी तो क्या सारे ही मुख़बिर इनाम के हक़दार होंगे ? सरकार नोटबंदी,जी एस टी और कृषि सुधार अध्यादेश जैसे कई विवादित क़ानूनों पर पहले ही काफ़ी आलोचना झेल चुकी है। अब यदि फिर सरकार, वाहन पार्किंग को लेकर ऐसे क़ानून बनाती है तो वह भी शर्तिया तौर पर असफल भी होगा और आम लोगों के लिये कष्टकारी भी साबित होगा। ख़ासतौर पर पहाड़ी इलाक़ों में और महानगरों या बड़े शहरों में तो सफल होने की बिल्कुल उम्मीद नहीं।