दिल्ली : देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विवादित और राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा माना जाता रहा है। यूसीसी का अर्थ एक पंथनिरपेक्ष (सेक्युलर) कानून होता है जो सभी पंथ के लोगों के लिए समान रूप से लागू होता है। देश में गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है जहां समान नागरिक संहिता लागू है। शेष भारत में धार्मिक या सामुदायिक पहचान के आधार पर विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों का पालन किया जाता है।
कानून में समरूपता लाने के लिए विभिन्न न्यायालयों ने अक्सर अपने निर्णयों में कहा है कि सरकार को समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयास करना चाहिए। 1985 में शाह बानो मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि संसद को समान नागरिक संहिता पर आगे बढ़ना चाहिए।
2015 में भी उच्चतम न्यायालय ने इसकी जरूरत को रेखांकित किया था। गत 14 जून को विधि आयोग ने यूसीसी पर जनता और संगठनों के विचार मांगे। इसे लागू कराने के पक्ष में कहा जा रहा है कि यूसीसी सभी नागरिकों के बीच एक समान पहचान और अपनेपन की भावना पैदा करके राष्ट्रीय एकता एवं धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देगी। यह सभी के लिए समानता, बंधुता और गरिमा के संवैधानिक मूल्यों को भी स्थापित करेगी। यह उन प्रथाओं को समाप्त कर देगी जो भारत के संविधान में निहित मानव अधिकारों और मूल्यों के विरुद्ध हैं, जैसे तीन तलाक़, बहुविवाह, बाल विवाह आदि। साथ ही यूसीसी का विरोध भी शुरू हो गया।
वास्तव में यूसीसी को लागू करने के लिए भारत में प्रचलित विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों और प्रथाओं का मसौदा तैयार करने, उन्हें संहिताबद्ध करने, उनके बीच सामंजस्य लाने और उन्हें तर्कसंगत बनाने की व्यापक कवायद की आवश्यकता होगी।कई विश्लेषकों का मत है कि समान नागरिक संहिता की मांग केवल सांप्रदायिकता की राजनीति के संदर्भ में की जाती है।
समाज का एक बड़ा वर्ग सामाजिक सुधार की आड़ में इसे बहुसंख्यकवाद के रूप में देखता है। विरोधी कह रहे हैं कि समुदायों के साथ उचित परामर्श के बिना समान नागरिक संहिता का कार्यान्वयन, जल्दबाजी में उठाया गया कदम है। यह विभिन्न समुदायों, आदिवासियों और विशेष रूप से धार्मिक व सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों के मौलिक अधिकारों, रीति-रिवाजों और परंपराओं का उल्लंघन कर कमजोर करेगा। कहा जा सकता है कि यूसीसी को लाने और उसे लागू करने के संबंध में सर्वसम्मति की कमी है। यूसीसी के कार्यान्वयन की चुनौतियों को कम करके नहीं आंकना चाहिए। परस्पर विश्वास के निर्माण के लिए सरकार और समाज को कड़ी मेहनत करनी होगी।