सरकार ने चीन से निपटने के लिए अरुणाचल सीमा पर बढ़ाई विकास की रफ्तार
दिल्ली: चीन के चालबाज तेवरों और बीते दिनों तवांग में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर हुए संघर्ष के बीच भारत देश के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश में बुनियादी ढांचा तेजी से मजबूत कर रहा है। इस बुनियादी ढांचे के विकास में सड़कों से लेकर ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट तक शामिल हैं, जिनसे देश की सीमा पर मौजूद इलाकों तक पहुंचना आसान हो जाएगा। चीन को भले ही यह खटक रहा हो, लेकिन भारत इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। इससे सीमा तक पहुंच में सुधार हो रहा है। इसका लाभ नागरिकों को मिलेगा ही, देश की सैन्य क्षमताएं भी बढ़ेंगी।
रक्षा मंत्रालय व सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे इन बड़े और दुरूह विकास कार्यों का अहम हिस्सा है। इस पर साल 2022 में काम शुरू हुआ, इसे तेजी देने के लिए कई जगह भारी मशीनरी तैनात की गई। 2,000 किमी लंबी इस सड़क का निर्माण भूटान के निकट मागो से शुरू हुआ है। यह तवांग, ऊपरी सुबनसिरी, तूतिंग, मेचुका, ऊपरी सियांग, दिबांग घाटी, दसली, चगलागाम, किबिथू, डोंग से होती हुई म्यांमार सीमा के निकट विजयनगर पर पूरी होगी।
सेला टनल से घटेगी दूरी, बचेगा एक घंटे का समय: अरुणाचल में सीमा सड़क संगठन द्वारा 13,700 फुट ऊंचाई पर बनाई जा रही सेला टनल जुलाई 2023 तक पूरी होने की उम्मीद है। प्रोजेक्ट के मुख्य इंजीनियर ब्रिगेडियर रमन कुमार ने बताया कि परियोजना में सिंगल-लेन सड़क डबल हो रही हैं, सेला बाईपास के लिए दो टनल और कई हेयरपिन-बैंड यानी तीखे मोड़ भी बन रहे हैं। 475 मीटर और 1790 मीटर लंबी यह दो टनल तवांग से वेस्ट कामेंग को बांटने वाली सेला-चाब्रेला पर्वत पर बन रही हैं। इनसे दूरी नौ किमी घटेगी, जिससे करीब एक घंटे का समय भी बचेगा। पूरी होने पर सेला टनल विश्व की सबसे लंबी बाई-टनल कहलाएगी।
ये मिलेंगे लाभ:
इससे नागरिकों को तो मदद मिलेगी ही, करीब 40 हजार करोड़ रुपये की यह परियोजना देश की सैन्य क्षमताओं में भी इजाफा करेगी। जरूरत के वक्त सैनिकों और भारी उपकरणों का परिवहन आसान होगा।
फ्रंटियर हाईवे से प्रदेश का राजमार्ग विभाग भी अपने गलियारे जोड़ेगा, जिससे सीमा पर स्थित कई शहर और गांव हाईवे से जुड़ेंगे। इससे काम और रोजगार बढ़ेगा, लोगों का पलायन भी रुकेगा।
13,700 फुट ऊंचाई पर बनाई जा रही सेला टनल जुलाई 2023 तक पूरी होने की उम्मीद है