नई दिल्ली. देश में वेतनभोगी कर्मचरियों का पसंदीदा निवेश विकल्प एंप्लॉयीज प्रॉविडेंट फंड (EPF) होता है. इसमें किया गया निवेश टैक्स-फ्री (Tax Free Investment) होता है. इसमें आयकर कानून (IT Act) की धारा-80सी के तहत टैक्स डिडक्शन का फायदा (Tax Benefits) भी मिलता है. दरअसल, ज्यादातर कंपनियां आपकी सैलरी का एक हिस्सा काटकर आपके ईपीएफ खाते (EPF Account) में ट्रांसफर कर देती हैं. साथ ही कंपनियां भी उतना ही हिस्सा अपनी तरफ से इस अकाउंट में डालती हैं. हालांकि, ईपीएफ में निवेश की तय सीमा है. अगर आप ईपीएफ में योगदान बढ़ाना चाहते हैं तो वॉलेंटरी प्रॉविडेंट फंड (VPF) के जरिये ऐसा कर सकते हैं.
वीपीएफ के जरिये आप अपने ईपीएफ खाते में हर महीने ज्यादा पैसा जमा कर सकते हैं. कंपनी बेसिक सैलरी का 12 फीसदी हिस्सा हर महीने काटकर ईपीएफ में आपके योगदान के तौर पर जमा कराती है. साथ ही कंपनियां भी अपनी तरफ से 12 फीसदी रकम आपके ईपीएफ खाते में जमा कराती हैं. इसका 8.33 फीसदी एंप्लॉयी पेंशन स्कीम (EPS) में जाता है, जो यह 15,000 रुपये की अधिकतम बेसिक सैलरी या 1,250 रुपये तक सीमित होता है. एंप्लॉयीज प्रॉविडेंट फंड्स एंड मिसलेनियस प्रोविजंस एक्ट, 1952 के तहत यह एक अनिवार्य जरूरत है.
मासिक योगदान (Monthly Contribution) और समय गुजरने के साथ इसमें जुड़ने वाला ब्याज (Interest) आपके रिटायरमेंट के लिए मोटा फंड तैयार (Retirement Fund) करता है. आपके 12 फीसदी के योगदान के अलावा आप अपनी सैलरी का ज्यादा हिस्सा ईपीएफ अकाउंट में सीधे जमा करा सकते हैं. यह अतिरिक्त स्वैच्छिक योगदान वॉलेंटरी प्रॉविडेंट फंड के तौर पर माना जाएगा. आपका अतिरिक्त निवेश ईपीएफओ की ओर से हर साल ईपीएफ स्कीम के लिए घोषित किए जाने वाले ब्याज का हकदार भी होगा. इस पर ईपीएफ की ही तरह टैक्स बेनेफिट्स भी मिलेंगे. साथ ही इस पर विद्ड्रॉल के भी समान नियम लागू होंगे.
वीपीएफ पर मिलने वाले फायदों को आसान शब्दों में समझें तो आपके योगदान पर ना सिर्फ धारा-80सी के तहत लाभ मिलेगा, बल्कि निवेश की अवधि में जमा हुए ब्याज पर भी कोई टैक्स नहीं लगेगा. साथ ही मैच्योरिटी की रकम भी टैक्स-फ्री होगी. सीधे तौर पर कहा जाए तो वीएफएफ आपकी ईपीएफ स्कीम का ही एक्सटेंशन है. इसमें निवेश, एक्युमुलेशन और मैच्योरिटी स्टेटस तीनों पर टैक्स छूट मिलती है. अब सवाल ये उठता है कि किसी दूसरे विकल्प के बजाय वीपीएफ में ही निवेश क्यों किया जाए. बता दें कि आमतौर पर ईपीएफओ की घोषित ब्याज दर दूसरे डेट इंस्ट्रूमेंट्स के मुकाबले ज्यादा होती है. इसके अलावा ये सुरक्षित भी होता है, क्योंकि इसके पीछे केंद्र सरकार का समर्थन होता है.
मनी मैटर्स के फाउंडर तेजल गांधी कहते हैं कि कंपाउंड इंटरेस्ट के चलते आपके रिटायरमेंट फंड में तगड़ी बढ़ोतरी होती है. उदाहरण के लिए मान लीजिए कि आपकी बेसिक सैलरी 50,000 रुपये है और आपका ईपीएफ योगदान 6,000 रुपये महीना बनता है. आपके रिटायर होने में अभी 20 साल का वक्त है. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए 8.5 फीसदी की ब्याज दर से आपका रिटायरमेंट फंड 67.4 लाख रुपये हो जाएगा. हालांकि, अगर आप वीपीएफ योगदान के तौर पर अपनी बेसिक सैलरी का 4 फीसदी ज्यादा निवेश करते हैं तो ये फंड 79.94 लाख रुपये बनेगा, जो 12.54 लाख रुपये ज्यादा है.
कोई भी कर्मचारी अपनी कंपनी के जरिये वीपीएफ में योगदान करना शुरू कर सकता है. कई कंपनियां इसके लिए ऑनलाइन सुविधा भी देती हैं. इसके लिए केवाईसी की जरूरत भी नहीं पड़ती है. स्वैच्छिक होने के कारण वीपीएफ में आप कभी भी योगदान शुरू या बंद कर सकते हैं. साथ ही आप अपनी सहूलियत और जरूरत के मुताबिक योगदान की रकम हर महीने घटा-बढ़ा सकते हैं. हालांकि, कुछ कंपनियां इसके लिए वित्त वर्ष की शुरुआत में ही मौका देती हैं. ऐसे में आपको इस बात का पता अपनी कंपनी से करना पड़ेगा. अगर आपका ईपीएफ निवेश धारा-80C की 1.5 लाख रुपये की सीमा तक नहीं पहुंचता है तो वीपीएफ इस अंतर को पूरा कर सकता है.
सामान्य तौर पर कर्मचारी को अपने ईपीएफ और वीपीएफ से रकम रिटायरमेंट के वक्त ही निकालनी चाहिए. कोई भी आंशिक निकासी आपकी रिटायरमेंट प्लानिंग को पीछे धकेल देती है. फिर भी अगर आपको पैसे की जरूरत पड़ जाती है तो आप कुछ खास मकसद के लिए ऐसा कर सकते हैं. इनमें अपना घर खरीदने, घर की मरम्मत, रेनोवेशन, गंभीर बीमारी, अपनी, अपने भाई-बहनों या बच्चों की शादी और बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए इस पैसे का इस्तेमाल कर सकते हैं. ऐसे में यह सुनिश्चित कर लीजिए कि आप वही पैसा वीपीएफ में लगाएं, जिसका भविष्य में आपको कोई इस्तेमाल नहीं करना है.