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नई दिल्ली: रूस ने अफगानिस्तान पर वार्ता के लिए बने ट्रॉइक प्लस में भारत को नहीं रखा था. भारत को इसमें रखने की मांग भी हुई थी लेकिन रूस ने अनसुना कर दिया था. अब तालिबान जब सत्ता में आया तो रूस ने एक बार फिर मॉस्को फॉर्मैट वार्ता के लिए कई देशों को बुलाया. हालांकि, अमेरिका इसमें शामिल नहीं हुआ लेकिन इस बार भारत को बुलाया गया था.
बुधवार को हुई इस वार्ता के बाद जो बयान जारी किया गया, उसके बारे में कहा जा रहा है कि यह भारत को असहज करने वाला है. हालांकि, भारत ने इस बयान पर रूस का लिहाज करते हुए कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई. मॉस्को फॉर्मैट के बयान में भारतीय हितों की पूरी तरह से उपेक्षा की गई है. कहा जा रहा है कि मॉस्को फॉर्मैट के बयान से तालिबान को असली शासक मान लिया गया है.
लाइव मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बयान में कहा गया है कि अफगानिस्तान के साथ व्यावहारिक जुड़ाव में इस देश की नई वास्तविकता को भी ध्यान में रखना होगा और अफगानिस्तान की नई सच्चाई ये है कि इसे तालिबान का प्रशासन चला रहा है. इसका मतलब यह है कि इस देश के लोगों के लिए खाद्य सहायता भेजने के लिए भी अफगानिस्तान की नई वास्तविकता को ध्यान में रखना होगा.
भारत की चिंता यह है कि तालिबान पाकिस्तान की कठपुतली है और अफगानिस्तान में उसकी इतनी जल्दी स्वीकार्यता किसी चुनौती से कम नहीं है. भारत रूस का खास दोस्त है इसलिए सार्वजनिक रूप से रूस के बयान से खुद को अलग नहीं करना चाहेगा या मॉस्को में हुई मीटिंग के बाद दिए गए बयान की आलोचना नहीं करना चाहेगा. भारत ये भी चाहता है कि वो अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर बने अहम समूहों का हिस्सा हो.
इस बयान को लेकर अभी ये साफ नहीं हुआ है कि ये बयान वहां उपस्थित देशों के बीच आम सहमति से जारी किया गया या फिर ये मेजबान रूस का इस मीटिंग को लेकर सारांश था.
बता दें कि अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को अब तक अंतर्राष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली है. रूस के बयान में ये भी कहा गया है कि तालिबान सरकार को शासन में सुधार और समावेशी सरकार बनाने के लिए कदम उठाने चाहिए और एक ऐसी सरकार बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो देश के सभी प्रमुख जातीय-राजनीतिक ताकतों के हितों को दर्शाती हो.
इस बयान में आगे लिखा था कि मॉस्को मीटिंग में भाग लेने वाले देशों को इस बात को लेकर खुशी थी कि तालिबान सरकार ने अपने पड़ोसी देशों, क्षेत्र के अन्य राज्यों और दुनिया के बाकी हिस्सों के खिलाफ अफगानिस्तान की धरती के उपयोग को रोकने के लिए अपनी पिछली प्रतिबद्धताओं की पुष्टि की है. बता दें कि इस बैठक में भाग लेने वाले देशों ने अफगानिस्तान में बिगड़ती आर्थिक और मानवीय स्थिति पर भी चिंता जताई और इसे लेकर संयुक्त राष्ट्र से जल्द से जल्द इंटरनेशनल डोनर कॉन्फ्रेंस बुलाने की मांग भी की है.
मॉस्को वार्ता में रूस, चीन, पाकिस्तान, ईरान, भारत, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान के विशेष प्रतिनिधियों और वरिष्ठ अधिकारियों ने मौजूदगी दर्ज कराई थी. इसके अलावा तालिबान के डिप्टी प्रधानमंत्री मौलवी अब्दुल सलाम हनफी की अध्यक्षता वाली अंतरिम अफगान सरकार का एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भी इस बैठक में मौजूद था. गौरतलब है कि तालिबान के साथ भारत की पहली औपचारिक बैठक 31 अगस्त को दोहा में हुई थी. हालांकि, तालिबान की अंतरिम कैबिनेट के ऐलान के बाद दोनों के बीच ये पहली मुलाकात थी. भारतीय विदेश मंत्रालय के पाकिस्तान-अफगानिस्तान-ईरान डिविजन के संयुक्त सचिव जेपी सिंह की अध्यक्षता वाले प्रतिनिधिमंडल ने रूस के निमंत्रण पर इस बैठक में हिस्सा लिया और तालिबान के नेताओं से बात की.
भारतीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात के बाद तालिबान ने बयान में कहा था कि भारत अफगानिस्तान में मानवीय संकट को देखते हुए मदद करने के लिए तैयार है. हालांकि, भारत की तरफ से तब भी कोई आधिकारिक बयान नहीं आया था.
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