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गांधी पशुता की नहीं आत्म बल की बात करते हैं - प्रो रमेश दीक्षित

Shantanu Roy
26 Aug 2023 6:08 PM GMT
गांधी पशुता की नहीं आत्म बल की बात करते हैं - प्रो रमेश दीक्षित
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कलीम ख़ान
लखनऊ। गांधी संघर्ष का नाम है। उनका जीवन आंदोलन का जीवन है। उनकी मान्यता थी कि युद्ध से किसी समस्या का अंत नहीं हो सकता। वे युद्ध, हिंसा और बल को नकारते हैं और दया-प्रेम को शस्त्र बल से बड़ा मानते हैं। इसी राह पर चलते हुए उन्होंने देश की आजादी के लिए संघर्ष किया। उन्हें हिंदुस्तान की ताकत का भरोसा था। दलितों, मुसलमानों, अल्पसंख्यकों, कमजोर वर्ग के लोगों यहां तक की उन्होंने औरतों को आंदोलन का हिस्सा बनाया।
यह बात लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीतिक विज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर रमेश दीक्षित ने कही। वे कला एवं शिल्प महाविद्यालय, ललित कला संकाय (लखनऊ विश्वविद्यालय) के हल्दार हाल में 'वर्तमान दौर में गांधी की प्रासंगिकता' विषय पर बोल रहे थे । ज्ञात हो महाविद्यालय की ओर से 15 अगस्त से 2 अक्टूबर के मध्य 'समकालीन दौर में गांधी की प्रासंगिकता' पर लेक्चर, गोष्ठियां, चित्रकृतियां, मूर्तिशिल्प, फिल्म शो, फोटोग्राफी आदि के कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। इसमें प्रत्येक शनिवार को आमंत्रित अतिथियों द्वारा गांधी के विभिन्न पहलुओं पर छात्रों के मध्य व्याख्यान तथा विचार विनिमय किया जा रहा है। इसी के तहत आज प्रोफेसर रमेश दीक्षित का व्याख्यान आयोजित था।
प्रोफेसर रमेश दीक्षित ने गांधी के 1909 में लिखी 'हिंद स्वराज' के कुछ अंश का पाठ करते हुए कहा कि गांधी पशुता की नहीं आत्म बल की बात करते हैं। उसे जाग्रत करने की बात करते हैं। उनका मानना रहा कि हिंसा से किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। उन्होंने संघर्ष के नए औजार विकसित किया। अनशन, सत्याग्रह आदि उन्हीं में हैं। गांधी को को इस बात का एहसास था कि हिंदुओं और मुसलमान की एकता से ही आजादी मिलेगी और इसके लिए उन्होंने काम किया। उनके जीवन को खत्म कर देने के लिए उन पर पांच हमले हुए। इसी हमले में उनकी शहादत हुई।
प्रोफेसर दीक्षित का आगे कहना था कि 1914 में गांधी भारत आए। चंपारण के किसानों के आंदोलन से लेकर बम्बई के मजदूर आन्दोलन के साथ उनका सजीव रिश्ता बना। रूसी क्रांति के नायक लेनिन और चीनी क्रांति के नायक माओ के पास संगठन था, उसका ढांचा था। ऐसा संगठन या ढांचा गांधी के पास नहीं था। जिस रामराज्य या स्वराज के लिए उनका संघर्ष था, उसमें उनकी मान्यता थी कि इसमें शोषण नहीं होगा, युद्ध नहीं होगा। प्रेम और बराबरी होगी। मानवता होगी । उन्होंने अपने आंदोलन में जिस तरह से औरतों को हिस्सेदार बनाया, इससे उनका नारीवादी सोच सामने आता है। आज जब नफरत, उन्माद, हिंसा का माहौल है, ऐसे समय में गांधी और उनके विचार की बड़ी जरूरत है। गांधी को छोटा करने की कोशिश हो रही है लेकिन उनका और उनके विचारों का महत्व बढ़ा है। वे बापू, महात्मा और राष्ट्रपिता के रूप में हमारे बीच सम्मानित हैं। आज गांधी होते तो मणिपुर जैसी हिंसा और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार को देख वे चुप ना रहते।
प्रो दीक्षित ने पूछे गए सवालों का जवाब दिया और डॉक्टर अंबेडकर, शहीद भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस आदि के साथ उनके वैचारिक बहस पर भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की शुरुआत में कला महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉक्टर रतन कुमार ने प्रोफेसर रमेश दीक्षित को फूलों का गुलदस्ता देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम के संयोजक आलोक कुमार ने संचालन के साथ सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर कवि और आलोचक कौशल किशोर, कवि और लेखक भगवान स्वरूप कटियार, कहानीकार फरजाना महदी, मीडियाकर्मी कलीम खान सहित महाविद्यालय के अध्यापक, कलाकार और छात्र बड़ी संख्या में उपस्थित थे। कला महाविद्यालय के छात्रों की ओर से आरंभ में' गांधी जी का प्रिय भजन 'वैष्णव जन तो तेने कहिए' प्रस्तुत किया गया तथा समापन भी एक गीत से हुआ।
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