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स्कूल टीचर से असम के राज्यपाल तक: गुलाब चंद कटारिया ने बताया अपना सफर

jantaserishta.com
19 Feb 2023 6:45 AM GMT
स्कूल टीचर से असम के राज्यपाल तक: गुलाब चंद कटारिया ने बताया अपना सफर
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फाइल फोटो

जयपुर (आईएएनएस)| राजस्थान के एक छोटे से स्कूल में भूगोल शिक्षक होने से लेकर असम के राज्यपाल नियुक्त होने तक गुलाब चंद कटारिया ने एक लंबा सफर तय किया है। आठ बार विधायक और एक बार सांसद चुने जाने व मेवाड़ क्षेत्र में राजनीतिक दिग्गज होने के बावजूद कटारिया अपनी सादगी और विनम्र प्रोफाइल के लिए जाने जाते हैं।
कम ही लोग जानते हैं कि कटारिया ने राजस्थान के एक छोटे से स्कूल में भूगोल शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया, लेकिन धीरे-धीरे मेवाड़ क्षेत्र के भूगोल से अवगत हो गए।
जब वे राजस्थान में विपक्ष के नेता के रूप में कार्यरत थे, तब उन्हें असम के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया।
एक विनम्र पृष्ठभूमि से आने वाले कटारिया को संगठन को मजबूत करने और लोगों तक पहुंचने के लिए मेवाड़ के पहाड़ी इलाकों में मीलों पैदल चलना पड़ा, साइकिल और बाइक की सवारी करनी पड़ी। पेश हैं इंटरव्यू के अंश:
आईएएनएस: राजस्थान के एक छोटे से कस्बे के एक स्कूल शिक्षक से लेकर असम के राज्यपाल तक, आप इस यात्रा को कैसे बयां करते हैं?
कटारिया: निश्चित रूप से जीवन में शुरू से ही कई चुनौतियां रही हैं। वास्तव में, मेरा मानना है कि हमारा जीवन विकसित होता है और चुनौतियों से उभरता है। शुरुआती दौर में जब हमने काम करना शुरू किया, तो सपने में भी नहीं सोचा था कि बीजेपी देश की सबसे बड़ी पार्टी बनेगी।
वास्तव में, जिन्होंने हमें (हमारे वरिष्ठों ने) आकार दिया और ढाला, उन्होंने हमें सिखाया कि संघर्ष जीवन का गहना है, जो हमारे व्यक्तित्व को सुशोभित करता है।
मैंने अपने गांव में कक्षा 8 तक पढ़ाई की। कक्षा 9 में पापा की पोस्टिंग के कारण मुझे शहर शिफ्ट होना पड़ा। बाद में, जब मैं उदयपुर में अकेला रह रहा था, जहां मैंने अपनी शिक्षा पूरी की, तो मैंने छोटी उम्र में ही खाना बनाना भी शुरू कर दिया था।
आईएएनएस: आप आरएसएस में कब शामिल हुए?
कटारिया: 1961 में मैं आरएसएस के संपर्क में आया, जिसने मेरी जिंदगी बदल दी। मैं अपने कॉलेज के दिनों से ही आरएसएस से जुड़ा हुआ हूं। इस बीच, मैंने अपना बी.एड पूरा किया और भूगोल शिक्षक के रूप में चुना गया। मैं तब आरएसएस की शाखा भी चला रहा था।
1971 के लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने एक मुद्दा उठाया कि या तो यह मास्टर रहेगा या स्कूल को अनुदान बंद होगा। मुझे दो में से एक को चुनने के लिए कहा गया और मैंने शाखा चलाने का चयन किया और मेरी सेवाएं समाप्त कर दी गईं। लेकिन मैं नाराज नहीं था, क्योंकि मैं जानता था कि स्कूल चलाना उनकी प्राथमिकता है। फिर मैंने एलएलबी करते हुए एक निजी स्कूल में दाखिला लिया।
मैं साथ-साथ संघ कार्य भी कर रहा था। मैं वहां अटल बिहारी वाजपेयी और एल.के. आडवाणी जैसे कद्दावर नेताओं को सुनने जाता था। इस बीच आपातकाल के दौरान जेल से बाहर आने के बाद संघ ने टिकट दिलाने में मेरी मदद की।
आईएएनएस: जनता के प्रतिनिधि होने के नाते आप किस दिनचर्या का पालन करते हैं?
कटारिया: मेरा दिन सुबह 5.30 बजे शुरू होता है। अपनी सुबह की दिनचर्या के बाद, यह सुनिश्चित करता हूं कि मैं लोगों से जुड़ा रहूं। दरअसल, मैं ज्यादातर समय अपने परिवार से दूर रहता हूं। हालांकि, मैं यह सुनिश्चित करता हूं कि मैं एक विधायक, सांसद या अपने निर्वाचन क्षेत्र में काम करते समय अपना सर्वश्रेष्ठ दूं।
आईएएनएस: एक स्कूल शिक्षक, फिर एक राजनेता। क्या आपने कभी सोचा था कि आपको संवैधानिक पद दिया जाएगा?
कटारिया: मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे संवैधानिक पद दिया जाएगा। मैं एक छोटी, विनम्र पृष्ठभूमि से आता हूं और मैंने अपने काम के लिए ख्याति अर्जित की है। मेरे जैसे छोटे से कार्यकर्ता को पार्टी ने आगे बढ़ाया है और लाखों कार्यकर्ताओं को प्रेरित कर इस बात से अवगत कराया है कि मेहनत का सम्मान होता है।
आईएएनएस: राजस्थान से असम तक इस खबर पर आपके परिवार की क्या प्रतिक्रिया रही?
कटारिया: मेरा परिवार, खासकर मेरी पत्नी काफी गुस्से में है! हालांकि, हम थोड़ी देर में एडजस्ट कर लेंगे।
आईएएनएस: आप दशकों से मेवाड़ की राजनीति के पर्याय रहे हैं। क्या आप इसे याद करेंगे?
कटारिया: मैं असम के राज्यपाल के तौर पर संवैधानिक दायरे में रहते हुए ईमानदारी से काम करूंगा। कहीं न कहीं मेवाड़ की कमी खलेगी, लेकिन मुझे अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर बहुत भरोसा है, जो इस विरासत को आगे बढ़ाएंगे।
आईएएनएस: जब आप प्रचारक थे, तो साइकिल से मेवाड़ घूमने के अपने अनुभव के बारे में कुछ बताएं?
कटारिया: प्रचारकों को देश के लिए दिन-रात काम करते देखकर मैं उनसे बहुत प्रभावित हुआ, तो, मैंने भी आक्रामक तरीके से काम करना शुरू कर दिया और मैं अपनी बाइक से पहाड़ी इलाकों का भ्रमण करता था। मेरे काम को देखते हुए भैरों सिंह शेखावत पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा करते थे कि किसी दिन मैं बाइक चलाते-चलाते कहीं मर जाऊंगा।
इसलिए, उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से मुझे जीप दिलवाने के लिए योगदान देने को कहा। फिर मुझे एक सांसद के रूप में एक मारुति मिली, मुझे कुछ रियायत मिली, और मैंने वर्षों तक वही गाड़ी चलाई। दरअसल, एक समय लोगों को पता चला कि धोती और मारुति चलाने वाला यह शख्स कटारिया है।
मैं सुंदर सिंह भंडारी से बहुत प्रेरित था, जिन्हें मैंने ट्रेनों में सामान्य श्रेणी में यात्रा करते देखा है। मैंने उनसे सीखा कि जीवन सादा होना चाहिए और काम पूरी ईमानदारी से करना चाहिए।
मैं दृढ़ता से महसूस करता हूं कि जिन्होंने जीवन में संघर्ष किया है उन्होंने देश में सम्मान अर्जित किया है। 'अच्छा सोचो' और 'गलत रास्ते पर मत जाओ' युवा पीढ़ी को मेरा संदेश है।
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