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नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का खुलासा, भारत सरकार के इस मंत्री ने दी थी धमकी

jantaserishta.com
21 Sep 2021 8:45 AM GMT
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का खुलासा, भारत सरकार के इस मंत्री ने दी थी धमकी
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नई दिल्ली: नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारत पर गंभीर आरोप लगाए हैं. ओली ने दावा किया है कि साल 2015 में भारत के तत्कालीन विदेश सचिव और वर्तमान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने नेपाल के नए संविधान में भारत की मांग के अनुरूप संशोधनों को लेकर दबाव बनाया था.

ओली ने कहा है कि एस. जयशंकर ने नेपाल के शीर्ष नेताओं को धमकी दी थी कि वे मौजूदा प्रारूप में संविधान को लागू ना करें. केपी शर्मा ने कहा है कि हमें ये भी चेतावनी दी गई थी कि अगर नेपाल के संविधान को भारत के सुझावों के खिलाफ बनाया गया तो इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा.
गौरतलब है कि नेपाल ने 20 सितंबर 2015 को अपना नया संविधान लागू किया था. हालांकि, नेपाल के नए संविधान के खिलाफ भारत से सटे दक्षिण नेपाल के जिलों में काफी विरोध प्रदर्शन भी देखने को मिला था.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, केपी शर्मा ओली ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-यूएमएल की स्थायी समिति को कुछ 'राजनीतिक दस्तावेज भेजे थे. इन्हीं दस्तावेजों में उन्होंने इस बात का खुलासा किया है. उन्होंने 19 सितंबर को ये डॉक्यूमेंट्स भेजे थे और इस दिन नेपाल ने अपना सातवां संविधान दिवस मनाया था.
रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 में भारत के तत्कालीन विदेश सचिव एस. जयशंकर ने काठमांडू का दौरा किया था और पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' समेत कई राजनीतिक दलों के नेताओं से मुलाकात की थी. ओली के भेजे गए दस्तावेज में बताया गया है कि जयशंकर ने नए संविधान को लेकर नेपाल से कहा था कि इसके नतीजे बुरे होंगे. इसमें ये भी कहा गया है कि 'भारत सरकार ने नेपाल के संविधान को लेकर असंतोष जाहिर किया था और संविधान की ड्राफ्टिंग के बाद से ही नेपाल सरकार पर इसे ना अपनाने के लिए दबाव बना रही थी.
गौरतलब है कि नेपाल की मधेस आधारित पार्टियों ने इस संविधान को लेकर छह महीने लंबा प्रोटेस्ट किया था. इन प्रदर्शनकारियों ने कहा था कि वे नेपाल के दक्षिण तराई क्षेत्र के निवासियों के हितों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे और अपनी मांगों को पूरा करने के लिए संविधान में संशोधन के लिए सरकार पर दबाव डाल रहे थे. इन प्रदर्शनकारियों की मांगों में, प्रांतीय सीमाओं को फिर से बनाना, क्षेत्रीय भाषाओं को मान्यता देना, नागरिकता से जुड़े मुद्दों को संबोधित करना और नेशनल एसेंबली में प्रतिनिधित्व जैसी कुछ डिमांड शामिल थीं. इन प्रदर्शनों में 60 लोगों की मौत हो गई थी.
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