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पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी गोपाल भेंगरा का निधन

jantaserishta.com
9 Aug 2021 3:15 PM GMT
पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी गोपाल भेंगरा का निधन
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बड़ी खबर

रांची. हॉकी में अपने खेल के हुनर से देश का नाम दुनियाभर में रोशन करने वाले झारखंड के पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी गोपाल भेंगरा ने सोमवार को दुनिया को अलविदा कह दिया. 80 साल के गोपाल भेंगरा ने रांची के गुरु नानक अस्पताल में अंतिम सांस ली. खूंटी के तोरपा के रहने वाले गोपाल भेंगरापर की ब्रेन हेमरेज और पैरालाइसिस के साथ-साथ किडनी भी खराब हो चुकी थीं. करीब हफ्तेभर से अस्पताल में वेंटिलेटर पर थे. न्यूज़ 18 ने इस खबर को प्रमुखता से दिखाया था जिसमें गोपाल भेंगरा के बेटे अर्जुन ने राज्य सरकार से आर्थिक मदद की गुहार लगाई थी. परिजनों के पास इलाज के लिए पैसे नहीं थे. राज्य सरकार की ओर से परिवार को कोई मदद नहीं मिल सकी.

हाल यह था कि गोपाल भंगरा के गुजर जाने के बाद भी परिजनों के पास अस्पताल का बिल चुकाने के लिए पैसे नहीं थे. गुरुनानक अस्पताल प्रबंधन के मुताबिक पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी के इलाज का बिल 58 हजार के करीब था लेकिन परिजनों की ओर से महज 30 हजार रुपये का ही भुगतान किया गया. निधन के बाद जिला प्रशासन की ओर से अस्पताल प्रबंधन को एक फोन आया जिसके बाद परिजनों को शव सौंप दिया गया
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी ने अपने खेल से अपने प्रदेश के साथ-साथ देश का नाम रोशन किया. उस खिलाड़ी को अपने जीवन के आखिरी वक्त में राज्य सरकार ने भी भुला दिया.
आपको बता दें कि गोपाल भेंगरा के संघर्षों की दास्तां सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती. उन्होंने अपने परिवार की गुजर-बसर करने के लिए पत्थर तोड़ने तक का काम किया था. इसकी जानकारी मीडिया में आने के बाद देश के महान बल्लेबाज सुनील गावस्कर ने हर महीने उनके खाते में 10 हजार भेजना शुरू किया था. यह सिलसिला 2012 से लगातार चलता रहा.
गोपाल भेंगरा अपने पीछे परिवार में पत्नी और 5 बच्चे छोड़ गए हैं जिनमें तीन बेटे और दो बेटियां हैं. उन्होंने आर्मी में नौकरी की और फिर वही से हॉकी खेलने लगे. 1978 में हॉकी का वर्ल्ड कप तो खेला ही. उनका चयन ओलंपिक के लिए भी हो गया था लेकिन कुछ कारणों से वे ओलंपिक खेलने नहीं जा सके. 1986 में वे अपने गांव खूंटी के तोरपा लौट आए और पेंशन के पैसे से ही उनके परिवार का गुजर-बसर होने लगा. बाद में बढ़ती जिम्मेदारियों की वजह से उन्हें दिहाड़ी मजदूरी भी करनी पड़ी और उन्होंने एक मजदूर के तौर पर पत्थर तोड़ना शुरू कर दिया.
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