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पांचवीं रैंक: न कोई कोचिंग, न कोई गाइड...आईएएस बनीं ममता यादव, जानें इनके बारे में...

jantaserishta.com
26 Sep 2021 2:36 AM GMT
पांचवीं रैंक: न कोई कोचिंग, न कोई गाइड...आईएएस बनीं ममता यादव, जानें इनके बारे में...
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नई दिल्ली: देशभर में यूपीएससी के नतीजों का बेसब्री से इंतजार था और वह इंतजार आखिरकार शुक्रवार देर रात खत्म हुआ. परीक्षा में कुल 761 उम्मीदवार पास हुए हैं, जिनमें 545 पुरुष और 216 महिलाएं हैं. खास बात यह है कि इस बार टॉप फाइव में लड़कियों ने बाजी मारी है. आइए आपको मिलाते हैं ऐसे दिल्ली के टॉपर्स से जिनकी कहानी कुछ अलग है.

24 वर्षीय ममता अपने पूरे गांव में आईएएस बनने वाली पहली महिला बन गई हैं. ममता ने यूपीएससी की परीक्षा में पांचवीं रैंक हासिल की है. दरअसल, ममता की यह सफलता इसलिए भी खास है, क्योंकि उन्होंने साल 2020 में भी यह परीक्षा दी थी, लेकिन उस वक्त उन्होंने 556 रैंक हासिल की थी. सिलेक्ट होने के बाद वह भारतीय रेलवे कार्मिक सेवा के लिए प्रशिक्षण लेने लगीं. लेकिन ममता इतने से ही सन्तुष्ट नहीं रहीं. उन्हें यह मंजूर नहीं था. इसलिए उन्होंने फिर से प्रयास किया और सफलता हासिल की.
बसई गांव निवासी ममता यादव के पिता अशोक यादव एक निजी कंपनी में काम करते हैं और उनकी मां सरोज यादव गृहिणी हैं. ममता ने अपनी पूरी पढ़ाई दिल्ली से ही पूरी की है. ममता की पूरी पढ़ाई दिल्ली में ही हुई है और वे दिल्ली ही डीयू (दिल्ली यूनिवर्सिटी) के हिंदू कॉलेज से पास आउट हैं.
ममता की मां सरोज का कहना है कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि उनकी बेटी इतना आगे जाएगी. उनके पिता अशोक अपनी बेटी की सफलता का श्रेय ममता की मां को देते हैं. उनके पिता बताते हैं कि ममता ने उनका सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है. खास बात यह है कि वे अपने गांव की पहली ऐसी लड़की है जिसने इतनी पढ़ाई की और यूपीएससी में इतनी बड़ी सफलता हासिल की और शिक्षा की क्षेत्र में इतना आगे गई.
जानिए कैसी है अनिल बसक की कहानी
वहीं, 'Tough time do not last but tough people do : Dr. Robert Schuller' की किताब के इस शीर्षक को अपना सक्सेस मंत्र बनाकर अनिल बसक ने यूपीएससी की परीक्षा में 45वीं रैंक हासिल की. बिहार के किशनगंज के रहने वाले अनिल के यहां तक की पहुंचने की कहानी बेहद प्रेरणादायक है जिसके एक नहीं कई कारण हैं.
अनिल को तीसरे प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा में सफलता मिली है. पहले प्रयास में उन्‍हें प्री परीक्षा में भी सफलता नहीं मिली थी जबकि दूसरे प्रयास में 616 वीं रैंक मिली थी. इसके बाद भी उन्‍होंने हार नहीं मानी और प्रयास जारी रखा. वह तीसरी बार सिविल सेवा परीक्षा में बैठे और 45वीं रैंक लाए.
आपको इस बात को जानकर हैरानी होगी कि अनिल बेहद मध्यम वर्गीय परिवार से आते हैं. एक दौर था जब उनके पिता बिनोद बसक कपड़े की फेरी लगा कर गांव-गांव बेचते थे. उनके पिता का जीवन बड़ा ही संघर्षमय रहा. अनिल नहीं चाहते थे कि उनके पिता को और संघर्ष करना पड़े. अनिल पूरे खानदान में दूसरे ऐसे शख्स है जिसने 10वीं कक्षा पास की और जाहिर सी बात है पहले ऐसे लड़के हैं जिसने यूपीएससी में इतनी बड़ी सफलता हासिल की. 2018 के बाद आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने पर उन्‍होंने किसी संस्‍थान से कोचिंग नहीं ली. अनिल का चयन वर्ष 2014 में आईआईटी दिल्ली में सिविल इंजीनियरिंग के लिए हुआ था और उसके कुछ समय बाद से ही वह यूपीएसएसी की तैयारी में लग गए थे. वे अपनी सफलता का श्रेय माता-पिता और दोस्तों को देते हैं.
यूपीएससी परीक्षा में डॉक्टर अपाला मिश्रा ने देशभर में नौवां स्थान हासिल किया है. अपाला की यह सफलता इसलिए खास है क्योंकि डॉ अपाला ने तीसरे प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा में सफलता हासिल की है. उनका पहला प्रयास असफल रहा. दोबारा में फिर यूपीएससी की परीक्षा दी तो उसमें भी असफल रहीं. उसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अक्टूबर 2020 में तीसरी बार परीक्षा दी और 9वीं रैंक हासिल की.
वसुंधरा सेक्टर-5 में रहने वाली डॉ. अपाला मिश्रा मूलरूप से बस्ती के पुराना डाकखाना सिविल लाइन की रहने वाली हैं. अपाला विदेश में बेहतर नीति बनाकर देश सेवा करना चाहती हैं. उनका मानना है कि वो कुछ ऐसा करे जिससे वे कुछ अच्छा और बड़ा बदलाव ला सके. शुरुआती दौर में उन्होंने बीडीएस की पढ़ाई की, लेकिन बाद में विचार आया कि वैश्विक स्तर पर देश सेवा करने के लिए सिविल सर्विसेस की तैयारी की जाए. अपाला के पिता अमिताभ मिश्रा आर्मी में कर्नल और बड़े भाई अभिलेख मेजर हैं. माता अल्पना मिश्रा दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी फैकल्टी में प्रफेसर हैं. डॉ. अपाला मिश्रा ने 10वीं तक की पढ़ाई देहरादून और 11वीं व 12वीं की पढ़ाई दिल्ली से की.

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