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गाजियाबाद/नोएडा: उत्तर प्रदेश का शो विंडो और दिल्ली एनसीआर का मुख्य पार्ट गाजियाबाद और नोएडा, राज्य के राजस्व में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये दोनों जिले प्रदेश के सबसे हाईटेक जिलों में शामिल हैं। लेकिन फिर भी यहां पर कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिनके कारण आम जनता परेशान है। न ही गाजियाबाद का नगर निगम और न ही नोएडा का प्राधिकरण इन समस्याओं को हल कर पाने में सफल साबित हुआ है।
कागजी कार्रवाई खूब होती है लेकिन आम जनता को राहत मिलती दिखाई नहीं दे रही है। नोएडा और गाजियाबाद इधर कुछ दिनों से अगर सुर्खियों में है तो डॉग अटैक के लिए। रोजाना कई ऐसे वीडियो सामने आते हैं जिसमें बच्चों को बुजुर्गों और आम लोगों को सड़कों पर, सोसाइटियों के अंदर और पार्कों में घूम रहे आवारा कुत्ते अपना निशाना बनाते दिखाई देते हैं। दोनों ही जिलों से सामने आने वाले मामलों की बात करें तो तकरीबन 400 से ज्यादा मामले रोजाना डॉग बाइट के सामने आते हैं। साथ ही करीब 1.25 लाख से ज्यादा कुत्ते दिनों जिलों की सड़को पर घूम रहे हैं।
गाजियाबाद के विजयनगर थाना क्षेत्र में चरण सिंह कॉलोनी है। यहां रहने वाले 14 साल के शाहवेज को करीब डेढ़ महीने पहले पड़ोसी के कुत्ते ने काट लिया था। डर के चलते शाहवेज ने यह बात परिजनों को नहीं बताई। धीरे-धीरे रेबीज इन्फेक्शन पूरे शरीर में फैल गया। 1 सितंबर को शाहवेज को दिक्कत होनी शुरू हो गई। परिजनों ने एम्स दिल्ली, जीटीबी दिल्ली और मेरठ-गाजियाबाद के कई बड़े हॉस्पिटल में दिखाया। मगर, डॉक्टरों ने शाहवेज को लाइलाज घोषित कर दिया। आखिरकार 4 सितंबर को शाहवेज ने एम्बुलेंस में पिता याकूब की गोद में दम तोड़ दिया। इस घटना के बाद लोग अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर बेहद सचेत हो गए हैं।
इस मामले को लेकर उत्तर प्रदेश प्रशासन भी चिंता में आ गया और प्रमुख सचिव स्वास्थ्य ने भी इस घटना में गाजियाबाद के चिकित्सा अधिकारियों से जवाब-तलब किया है। वहीं, डॉग मालिक फैमिली पर एफआईआर दर्ज कर ली गई है। भारत में रेबीज़ के बहुत से मामले देखने को मिलते हैं। विश्व में रेबीज़ से होने वाली कुल मौतों में 36 प्रतिशत मौतें भारत में होती हैं। रेबीज़ से प्रत्येक वर्ष 18,000-20,000 मृत्यु हो जाती है।
भारत में रिपोर्ट किये गए रेबीज़ के लगभग 30-60 प्रतिशत मामले एवं मौतों में 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चे शामिल हैं। बच्चों में काटने के निशान को अक्सर पहचाना नहीं जाता एवं रिपोर्ट नहीं किया जाता है। भारत में मानव रेबीज़ के लगभग 97 प्रतिशत मामलों के लिये कुत्ते ज़िम्मेदार हैं, इसके बाद बिल्लियाँ (2 प्रतिशत), गीदड़, नेवले एवं अन्य (1 प्रतिशत) हैं।
रेबीज एक बीमारी है जो कि रेबीज नामक विषाणु से होता है। यह मुख्य रूप से पशुओं की बीमारी है। लेकिन संक्रमित पशुओं द्वारा मनुष्यों में भी हो जाती है। यह विषाणु संक्रमित पशुओं के लार में रहता है और जब कोई पशु मनुष्य को काट लेता है यह विषाणु मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाता है। यह भी बहुत मुमकिन है कि संक्रमित लार से किसी की आँख, मुहँ या खुले घाव से संक्रमण हो सकता है। इस बीमारी के लक्षण मनुष्यों में कई महीनों से लेकर कई वर्षों तक दिखाई देते हैं। लेकिन साधारणतः मनुष्यों में ये लक्षण 1 से 3 महीनों में दिखाई देते हैं। रेबीज से संक्रमित जानवर के काटने से रेबीज का संक्रमण फैलता है। ज्यादातर मामलों में मनुष्यों में यह बीमारी कुत्ते के काटने या खरोंचने से भी होती है (90 प्रतिशत से ज्यादा)।
रेबीज बीमारी के लक्षण संक्रमित पशुओं के काटने के बाद या कुछ दिनों में लक्षण प्रकट होने लगते हैं, लेकिन अधिकतर मामलों में रोग के लक्षण प्रकट होने में कई दिनों से लेकर कई वर्षों तक लग जाते हैं। रेबीज बीमारी का एक खास लक्षण यह है कि जहां पर पशु काटते हैं, उस जगह की मासपेशियों में सनसनाहट पैदा हो जाती है। विषाणु के रोगों के शरीर में पहुंचने के बाद यह मष्तिक में पहुच जाता है और कई लक्षण दिखाई देने लगते हैं जैसे दर्द होना, थकावट महसूस करना, सिरदर्द होना, बुखार आना, मांसपेशियों में जकड़न होना, घूमना-फिरना ज्यादा हो जाता है, चिड़चिड़ा होना था उग्र स्वाभाव होना, व्याकुल होना, अजोबो-गरीबो विचार आना, कमजोरी होना तथा लकवा होना, लार व आंसुओं का बनना ज्यादा हो जाता है।
साथ ही तेज रौशनी और तेज आवाज से भी चिढ़ होने लगती है। इस बीमारी से ग्रसित मरीज को बोलने में बड़ी तकलीफ होती है। वह अचानक आक्रमण कर किसी पर भी धावा बोल सकता है। जब संक्रमण बहुत अधिक हो जाता है और नसों तक पहुंच जाता है तो सभी चीजों/वस्तुएं आदि दो दिखाई देने लगती हैं। मुंह की मांसपेशियों को घुमाने में परेशानी होने लगती है। लार ज्यादा बनने लगती है और मुंह में झाग बनने लगते हैं।
रेबीज बीमारी कुत्तों, बंदरों और बिल्लियों के काटने पर इंसानों में फैलती है। आमतौर पर कुत्तों के काटने पर इंसानों में यह बीमारी फैलती है। एक बार संक्रमण होने के बाद रेबीज का कोई इलाज नहीं है। हालांकि कुछ लोग जीवित रहने में कामयाब रहे हैं, बीमारी आमतौर पर मृत्यु में परिणत होती है। अगर आपको लगता है कि आप रेबीज के संपर्क में आ गए हैं, तो आपको बीमारी को घातक बनने से रोकने के लिए कई टीके लगवाने होंगे।
किसी भी जानवर को पालने के लिए सबसे जरूरी होता है उसका खानपान और उसको दिया जाने वाला माहौल। ताकि आपका पालतू जानवर किसी को अपना शिकार न बनाये। किसी भी जानवर को पालने के बाद पहला और सबसे जरूरी काम है वैक्सीनेशन, ताकि घर में रहने वाले किसी सदस्य या बाहर से आने वाले किसी इंसान के साथ खेलते हुए गलती से या जानबूझकर काटने से कोई गंभीर समस्या न हो, अगर आपके पालतू जानवर का वैक्सीनेशन प्रॉपर समय से होता है तो आप रैबीज जैसी बीमारी से लगभग निश्चिन्त हो सकते हैं।
जब भी कुत्ता काटे तो सबसे पहले उस जगह को धो लेना चाहिए। इसके लिए डिटर्जेंट साबुन से इसे अच्छी तरह धो लें। अगर जख्म बहुत गहरा है तो इस जगह पर पहले साबुन से धोएं और उसके बाद बिटाडिन मलहम लगा लें। इससे रैबीज वायरस का असर थोड़ा कम हो जाता है। लेकिन इसे अच्छी तरह से क्लीन करना जरूरी है। इसके साथ ही कुत्ते काटने पर रेबीज का वैक्सीन, एंटीबाडीज़ एवं टिटनेस का इंजेक्शन लगवाना चाहिए।
24 घंटे के अंदर आपको रैबीज का वैक्सीन एवं इसकी 4 से 5 डोज़ का पूरा कोर्स करना चाहिए। आमतौर पर कुत्ते काटने के बाद 5 इंजेक्शन लगाने की जरूरत पड़ती है। इसके लिए पहला शॉट 24 घंटे के अंदर लगना चाहिए। इसके बाद तीसरे दिन, सांतवें दिन, 14 वें दिन और अंत में 28वें दिन में लगता है। ध्यान रखें कि कुत्ता काटने के बाद घाव पर पट्टी नहीं बांधना चाहिए। घाव पर तेल, हल्दी या किसी घरेलू चीज़ को लगाने से बचें। घाव को धोने के बाद तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। ताकि डॉक्टर इसकी गंभीरता के आधार पर इलाज कर सके।
गाजियाबाद नगर निगम ने बताया कि साल 2013 से कुत्तों की नसबंदी शुरू हुई, ताकि उनकी संख्या न बढ़ सके। पिछले 10 साल में नगर निगम 24,580 कुत्तों की नसबंदी कर चुका है। जबकि आवारा कुत्तों की संख्या यहां 60 हजार से ज्यादा है। ये संख्या हर साल बढ़ती जा रही है। गाजियाबाद नगर निगम के अनुसार, साल 2013 से कुत्तों की नसबंदी शुरू हुई, ताकि उनकी संख्या न बढ़ सके। फिर भी गली-मोहल्लों में इनकी संख्या बढ़ती दिखाई देती है। नोएडा प्राधिकरण के एनपीआर ऐप पर करीब 10 हजार पालतू कुत्तों का रजिस्ट्रेशन हुआ है। नोएडा प्राधिकरण ने दावा किया है कि अभी 40 से 45 हजार कुत्तों की नसबंदी की जा चुकी है। इसके बाद भी कुत्तों की तादाद कम नहीं हो रही। नोएडा अथॉरिटी ने कुत्ते पकड़ने के लिए दो एजेंसियां हायर की हैं। एजेंसियां दावा करती हैं कि हर महीने 1200 कुत्ते पकड़े जा रहे हैं। जिले के सरकारी अस्पताल में हर साल करीब 40 हजार एंटी रेबीज इंजेक्शन लगाए जाते हैं।
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