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सताने लगा मंकीपॉक्स का डर, भारत में अब तक मिल चुके है इतने मरीज

Nilmani Pal
26 July 2022 1:21 AM GMT
सताने लगा मंकीपॉक्स का डर, भारत में अब तक मिल चुके है इतने मरीज
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सोर्स न्यूज़ - आज तक 

दिल्ली। मंकीपॉक्स का खतरा अब भारत में भी सताने लगा है. दिल्ली के एक मरीज को मिलाकर भारत में अबतक मंकीपॉक्स के कुल चार मरीज सामने आ चुके हैं. केंद्र और राज्य सरकारें दोनों इसको लेकर अलर्ट हैं और लोगों को सावधान रहने और चिंता ना करने को कह रही हैं. मंकीपॉक्स का केस पहली बार 1958 में अफ्रीका में देखा गया था. जब मंकी के अंदर बीमारी पाई गई थी. 1970 में पहली बार ये बीमारी ह्यूमन में मिली. लेकिन मंकीपॉक्स नाम सुनकर बंदरों से डरने की जरूरत नही है. क्योंकि मंकी पॉक्स का मंकी से कोई लेना देना नहीं है. एक बार इंसान से इंसान में वायरस फैल जाए तो किसी जानवर का रोल बहुत कम हो जता है.

लैब में जांच के दौरान वायरस ने सबसे पहले वहां मौजूद बंदरों को संक्रमित किया और सभी से मंकीपॉक्स कहा जाना लगा. जबकि वायरस ज्यादातर जंगली जानवरों, जंगली चूहो और गिलहरी के जरिया फैलता है. जानकारी सामने आई है कि संक्रमण बड़े हों या बच्चे किसी को भी हो सकता है. हालांकि बच्चे और प्रेग्नेंट महिलाओं को संक्रमण गंभीर होने का खतरा है. निमोनिया, ब्लीडिंग या फिर आंख के अंदर इनफेक्शन हो जाए तो ब्लाइंडनेस का भी खतरा रहता है. नोएडा फेलिक्स अस्पताल के चैयरमैन डॉ. डी के गुप्ता का कहना है कि जिन बच्चों की उम्र 5 साल से कम है उनमें खतरे की संभावना ज्यादा है. बच्चों में संक्रमण का खतरा बड़ों के बराबर भले हो लेकिन कॉम्प्लिकेशन और डेथ होने का खतरा बड़ों से अधिक है.

सफदरजंग अस्पताल के प्रोफेसर डॉ जुगल किशोर ने कहा कि 40 वर्ष से नीचे के लोगों और बच्चों में मंकीपॉक्स फैलने का खतरा ज्यादा है. क्योंकि बच्चे एक दूसरे के संपर्क में ज्यादा आते हैं. ब्रेस्टफीडिंग मदर, प्रेग्नेंट महिला दोनों में संक्रमण हो सकता है जबकि ब्रेस्टफीडिंग बच्चे को भी इनफेक्शन का खतरा ज्यादा है.

अफ्रीका में पाए जाने वाले मंकीपॉक्स केसेस में कोरोना से ज्यादा मॉर्टलिटी होती है जो की शून्य से 10% के बीच रही है. एक्सपर्ट कहते हैं कि अगर स्मॉल पाक्स का टीका लगा है तो घबराने की जरूरत नहीं है. उजाला सिगनस ग्रुप के फाउंडर डॉ सुचिन बजाज का कहना है कि 1980 में स्मॉल पॉक्स खत्म हो गया था यानी इसके बाद जिनका भी जन्म हुआ वह सभी वल्नरेबल ग्रुप हैं. यही वजह है कि बच्चों में इसका रिस्क ज्यादा बना रहेगा.

मंकीपॉक्स की वैक्सीन पहले से मौजूद

मंकीपॉक्स की वैक्सीन भी मार्केट में अवेलेबल है. यह कोई नया वायरस नहीं है लिहाजा पैंडमिक बनने के चांस भी बहुत कम हैं. स्मालपॉक्स वैक्सीन जिनको लगा है उनको यह लॉन्ग टर्म इम्यूनिटी देता है. यह बहुत ही क्लोज स्किन टू स्किन कांटेक्ट से फैलता है. बहुत ही रेयर होगा जब रेस्पिरेटरी ड्रॉपलेट से यह फैले.

इसमें फीवर, सर में दर्द, जोड़ों में दर्द, मसल में दर्द, पसीना आना, ठंड लगना, गला खराब रहना और खांसी रहना आम है फिर स्किन में रैशेज आ जाते हैं. उसे ही पॉक्स बोलते हैं.

आंकड़ा कहता है कि 75 मुल्कों में करीब 17000 केस डिडक्ट हो चुके हैं और लेकिन सिर्फ पांच मौतें हुई हैं. सुचिन का कहना है कि इसके केसेस बढ़ेंगे और फिर घटने भी लगेंगे.

मंकीपाक्स वायरस का सोर्स मंकी नहीं

जुगल किशोर का कहना है कि Cow pox और buffalo pox जानवरों में कॉमन हैं. घर के अंदर कोई इनफेक्टेड है तो उसे पालतू जानवर को दूर रखना चाहिए. नहीं तो परिवार के दूसरे सदस्यों को वायरस चपेट में ले लेगा या फिर इंसानों के साथ ही दूसरे जानवरों को भी. इसके अलावा Ant eater, कुत्ता, गिलहरी भी संक्रमित हो सकते हैं. एक्सपर्ट कहते हैं कि ह्यूमन से ह्यूमन और एनिमल से ह्यूमन में ट्रांसमिशन कॉमन है. वहीं ह्यूमन टू एनिमल ट्रांसमिशन रेयर है. लेकिन सस्पेक्टेड व्यक्ति एनिमल को भी इनफेक्शन दे सकते हैं. यह भी कहा गया है कि मंकीपॉक्स Gay रेव पार्टी में फैलता है. हेट्रोसेक्सुअल को भी हो सकता है. समलैंगिक में सैक्सुअल ट्रांसमिटेड डिजीज के जरिए भी फैलता है.


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