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24 साल बाद रंग लाया पिता का संघर्ष, बेटी की हत्या के केस में फिर होगी जांच, कोर्ट का आदेश

jantaserishta.com
13 Nov 2021 5:10 AM GMT
24 साल बाद रंग लाया पिता का संघर्ष, बेटी की हत्या के केस में फिर होगी जांच, कोर्ट का आदेश
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अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव पर चल रहे एक बुजुर्ग को बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा।

नई दिल्ली: अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव पर चल रहे एक बुजुर्ग को बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा। हालांकि बुजुर्ग का यह प्रयास प्राथमिक स्तर पर है लेकिन इसे न्याय की तरफ पहला कदम जरूर कहा जा सकता है। दरअसल इस बुजुर्ग की बेटी की 24 साल पहले संदिग्ध अवस्था में उसके ससुराल में मौत हो गई थी।

पिता लगातार इस मौत को हत्या बता विभिन्न मंचों पर सुनवाई की गुहार लगाता रहा। लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी। पुलिस ने भी महज दहेज प्रताड़ना का मुकदमा दर्ज कर अपने कर्तव्य का निर्वाहन कर दिया। आरोपी बच निकले। लेकिन बुजुर्ग नहीं हारा। उसने फिर जिला न्यायाधीश के यहां याचिका दायर की और इस बार उसकी सुनी गई।
तकरीबन ढाई दशक बाद जिला न्यायाधीश ने इस मुकदमे को दोबारा खोलने के निर्देश दिए हैं। द्वारका स्थित प्रिंसीपल जिला एवं सत्र न्यायाधीश नरोत्तम कौशल की अदालत ने पीड़िता की मौत को संदिग्ध करार देते हुए मुकदमे पर दोबारा सुनवाई के आदेश दिए हैं। अदालत ने कहा है कि इस मामले में उन साक्ष्यों की अनदेखी की गई जिसमें मृतका के मौत की वजह सीधेतौर पर संदिग्ध थी।
मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने मृतका के ससुरालवालों के खिलाफ महज दहेज प्रताड़ना के मामले की सुनवाई की और उन्हें बरी कर दिया। जबकि यह मामला मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में सुना ही नहीं जाना चाहिए था। यही दलील मृतका के पिता ने भी लगातार विभिन्न अधिकारियों के समक्ष पेश की। परंतु उसकी अनेदखी की। अब जिला न्यायाधीश ने मृतका के ससुरालवालों को बरी करने के आदेश को रद्द करते हुए दोबारा सुनवाई शुरु करने आदेश दिए हैं।
इस मामले में जिला न्यायाधीश ने सुनवाई करते हुए पाया कि पीड़िता की मौत के बाद उसका पोस्टमार्टम करने वाली डॉक्टर के बयान से साफ जाहिर था कि पीड़िता की मौत प्राकृतिक या आत्महत्या नहीं थी। उसके शरीर पर कई जगह चोट के गंभीर निशान थे।जबकि परिवार वालों का कहना था कि कूलर में आए कंरट की वजह से उसकी मौत हुई थी। अदालत ने पूरे तथ्यों को देखने के बाद कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पीड़िता के दोनों फेंफड़ों व सांस की नली में जमाव था।
इसके अलावा मृतका के मुंह, गर्दन व गर्दन के पीछे गहरे जख्म थे। पोस्टमार्टम करने वाली महिला डॉक्टर का कहना था कि ये करंट लगने की वजह नहीं हो सकते। यहां तक की उसने अपने बयानों में यह कहा कि पीड़िता की त्वचा की हिस्टोपैथोलॉजिकल जांच व इसके अलावा विसरा को संरक्षित किया गया है उससे ही मौत की वजह पता चलेगी। लेकिन पुलिस ने यह रिपोर्ट कभी अदालत के समक्ष पेश ही नहीं की।
इस मामले में ससुरालवालों का कहना था कि पीड़िता को पता था कि कूलर में करंट आ रहा है उसने फिर भी उसे छुआ जिसकी वजह से वह कूटर के स्टैंड की धारदार कोने से जा टकराई। जबकि घटना के समय पुलिस द्वारा लिए गए फोटो में दिख रहा है कि कूलर के स्टैंड पर मोटा कपड़ा पड़ा था। उस पर कोई खून का धब्बा नहीं था। अदालत ने कहा कि आरोपियों की यह दलील बेबुनियाद है।
वहीं, पुलिस को आड़े हाथों लेते हुए अदालत ने कहा कि इतने सालों बाद भी पुलिस ने अभी तक मृतका की त्वचा की हिस्टोपैथोलॉजिकल जांच रिपोर्ट व विसरा रिपोर्ट नहीं ली है। हालांकि पुलिस की तरफ से कहा गया कि एफएसएल लैब की खामी की वजह से रिपोर्ट नहीं मिली। परंतु अदालत ने कहा कि दूसरी लैब से भी जांच कराई जा सकती थी। वहीं पुलिस की इस दलील को भी खारिज कर दिया गया कि पीड़िता की शादी को 9 साल हो गए थे इसलिए दहेज हत्या का मामला नहीं बनाया गया।
इस मामले में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के फैसले पर टिप्पणी करते हुए जिला न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले में तमाम सबूत प्रथमदृष्टया हत्या का मुकदमे की तरफ इशारा कर रहे थे। लेकिन इसको नजरअंदाज कर दिया गया। इस मामले में हत्या के आरोप तय होने चाहिए थे। जिसके मुताबिक मामले की सुनवाई सत्र अदालत में होती ना कि मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत के समक्ष।

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