महाराष्ट्र के किसान इन दिनों बाजार में सही भाव न मिलने से परेशानी में हैं और अपनी उपज को फेंकने को मजबूर हो गए हैं. राज्य में एक तरह जहां पर प्याज (Onion) उत्पादक किसान कम दाम मिलने से निराश होकर अपने 200 क्विंटल प्याज लोगों को मुफ्त में बाट देने का मामला सामने आया था. वहीं अब तरबूज (Watermelon) उत्पादक किसानों की भी यही हालत है. सीजन के शुरुआत में तरबूज 15 से 17 रुपये प्रति किलो था, लेकिन अब कीमतों भारी गिरावट देखी जा रही है. हालात ये हैं कि 10 रुपये में 4 तरबूज बिक रहे हैं. कुछ जिलों में तो तरबूज की कीमत 3 रुपये से लेकर 6 रुपये प्रति किलो हो गई है.
कीमतों में इतनी गिरवाट देख उत्पादक चिंतित नजर आ रहे हैं. एक महिला किसान सुष्मित सोनवणे ने अपने डेढ़ एकड़ जमीन में तरबूज की खेती की थी, जिससे उन्हें अच्छा उत्पादन मिला था. उन्हें उम्मीद थी कि तरबूज का रेट अच्छा मिल रहा हैं तो उन्हें भी फायदा होगा. लेकिन उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया. शुरुआत में तो तरबूज को रिकॉर्ड भाव मिला, लेकिन अब ऐसा नहीं है. यहीं कारण है कि अब किसान तरबूज को बेचने के बजाय जानवरों को खिलना ज्यादा बेहतर समझ रहे हैं.
इस साल महाराष्ट्र के किसानों ने मुख्य फसलों को छोड़ मौसमी फसलों पर जोर दिया था ,जिनका उन्हें अच्छा दाम भी मिल रहा था. रिकॉर्ड रेट देख किसानों ने फसल पैटर्न में बदलाव भी कर लिया, लेकिन ये रेकॉर्ड रेट ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाया और कीमतों में भारी गिरावट आ गई. कुछ व्यापारियों का कहना है कि मार्केट में आम की मांग बढ़ने से तरबूज की मांग घट गई है. तरबूज का रेट जो पहले 15 रुपए किलो था, वो अब 10 रुपये में 4 बिक रहा है. इसिलए अब किसान अपने फल को फेंकने या जानवरों को खिलाने पर मजबूर हैं, क्योंकि इतने कम दाम से उनका लगात भी नही निकल पाएगा. महिला किसान सुष्मित सोनवणे ने बताया कि उन्होंने अपने ढेड़ एकड़ जमीन में तरबूज की खेती की थी. उससे उन्हें अच्छा उत्पादन भी मिला, लेकिन जैसे बाजार में बेचने का समय आया, वैसे ही रेट इतना नीचे गिर गया. अब 10 रुपये में 4 तरबूज बिक रहा है. इस खेती के लिए 80 हजार से 1 लाख तक खर्च आया है. ऐसे में इतना कम दाम मिलने से हमें कोई फायदा नहीं होगा. हमरा लगात भी नहीं निकल पाएगा और न ही परिवहन लगात निकलेगा. खेतों से मंडी तक लेकर जाने का ही खर्च 3 हजार तक हो जाता है. इसिलए हमने तरबूज को बेचने से बेहतर समझा कि जानवरों को खिला दिया जाए. मुख्य फसलों के साथ-साथ मौसमी फसलों ने भी किसानों को निराश किया है. तरबूज की मांग में तेजी से गिरावट आई है. इससे किसानों के लिए परिवहन पर खर्च करके बाजार के करीब पहुंचना भी मुश्किल हो गया है.