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परीक्षा, प्रतिस्पर्धा, पढ़ाई का दबाव और टूटते परिवार- छात्रों में पैदा कर रहे हैं मानसिक विकार
jantaserishta.com
16 Oct 2022 6:14 AM GMT
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गणेश भट्ट
नई दिल्ली (आईएएनएस)| देशभर में लाखों छात्र मानसिक तनाव से ग्रस्त हैं। शिक्षण संस्थानों को भी इस बात की जानकारी है, यही कारण है कि केंद्र, विभिन्न राज्य व शिक्षण संस्थान छात्रों को मानसिक विकार से बचाने के लिए आगे आ रहे हैं। हालांकि कोरोना महामारी के बाद ऐसे छात्रों की संख्या में और अधिक वृद्धि हुई है। विशेषज्ञों के मुताबिक युवाओं एवं किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य विकार के अनेक कारण हैं। इनमें परीक्षा का दबाव, पढ़ाई का तनाव, सहपाठियों से प्रतिस्पर्धा और पारिवारिक दबाव प्रमुख हैं। इसके अलावा, जैसे-जैसे शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिए प्रतिस्पर्धा का स्तर बढ़ रहा है, वैसे वैसे छात्रों पर भी दबाव कई गुना बढ़ता जा रहा है। इसका दुष्परिणाम छात्रों में मानसिक विकार और उनका स्कूल ड्रॉपआउट होना है।
शैक्षिक संस्थानों ने छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए वित्तपोषण में वृद्धि की है। इससे मानसिक तनाव से जूझ रहे छात्रों को स्कूलों में ही प्राथमिक मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में सहायता मिलेगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के अनुसार, लगभग 10 प्रतिशत किशोर विश्व स्तर पर मानसिक विकार का अनुभव करते हैं। अधिक चिंताजनक बात यह है कि वे कोई सहायता या देखभाल नहीं चाहते हैं। आंकड़े आगे बताते हैं कि 15-19 वर्ष के व्यक्तियों में आत्महत्या मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण है। ये आंकड़े शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक चेतावनी हैं कि छात्रों में मानसिक स्वास्थ्य विकार एक महत्वपूर्ण संकट है और इसका समाधान आवश्यक है।
बाल रोग चिकित्सक डॉक्टर पी.के. शर्मा ने बताया कि महामारी ने किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य की परेशानियों को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई है। लॉकडाउन और कोविड-19 सुरक्षा मानदंडों के कारण उत्पन्न परिस्थितियों ने एक शून्यता पैदा कर दी है, जिसने मानसिक स्वास्थ्य से पीड़ित लोगों को और अधिक प्रभावित किया।
छात्रों के मानसिक तनाव के विषय पर सेठ आनंदराम जयपुरिया ग्रुप ऑफ एजुकेशनल इंस्टिट्यूशंस के विनोद मल्होत्रा ने कहा कि स्कूली छात्रों की वर्तमान पीढ़ी अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में अधिक स्मार्ट, और समझदार है, लेकिन शारीरिक रूप से अधिक नाजुक और मानसिक रूप से अधिक तनावग्रस्त है। इन कारणों को समझना कठिन नहीं है। दरअसल अच्छे शिक्षण संस्थानों में प्रवेश पाने के लिए छात्र-प्रतिस्पर्धा अत्यधिक उच्च स्तर तक बढ़ गयी है। अपरिचित कारणों से शिक्षा प्रणाली ने भी मौजूदा माहौल को प्रतिस्पर्धी बना दिया है और यह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बोझ डाल रहा है।
विनोद मल्होत्रा के मुताबिक एकल परिवार की प्रथा ने दादा-दादी और परिवार के अन्य वरिष्ठ सदस्यों से उपलब्ध भावनात्मक सहयोग को कम कर दिया है। बड़ों से लेकर युवाओं तक संस्कार-मूल्यों की अवधारणा बीती बातें हो गई है। इन मुद्दों पर ध्यान अनिवार्य रूप से स्कूल के माहौल में स्थानांतरित होना चाहिए।
शिक्षाविदों के मुताबिक स्कूल में बच्चों को प्रसन्न रखने और प्रसन्नता के माहौल में सीखने को प्रोत्साहित करने के लिए विजन स्टेटमेंट को संशोधित किया जा रहा है।
आईआईएलएम विश्वविद्यालय, गुरुग्राम की कुलपति डॉ सुजाता शाही ने कहा, "इन मुद्दों में पारिवारिक समस्याएं, वित्तीय कठिनाइयां, अलगाव की भावनाएं, सामाजिक दबाव, चिंता और पढ़ाई का तनाव शामिल हैं। छात्र समुदाय की सामाजिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक समस्याओं को समझने और उनका समाधान करने के इरादे से, अधिकांश विश्वविद्यालयों ने कॉलेज परिसर में परामर्श प्रकोष्ठ शुरू किया है। यह सक्रिय सुनवाई और समय पर प्रतिक्रिया के माध्यम से छात्रों को पर्याप्त सहयोग प्रदान करता है। एक अन्य शक्तिशाली उपकरण विशेषज्ञ संचालित प्रशिक्षण कार्यशाला है जो छात्रों को नियमित पाठ्यक्रम के साथ समस्या समाधान, संघर्ष समाधान, भावनात्मक बुद्धि और तनाव प्रबंधन के एकीकरण के साथ समस्याओं की पहचान, प्रबंधन और समाधान में सहायक होती है। साथ ही वेलनेस को प्राथमिकता देने के लिए एक अनुकूल वातावरण की आवश्यकता है।
इस समस्या पर टॉपरैंकर्स के करण मेहता का मानना है, तैयारी किसी भी परीक्षा को उत्तीर्ण करने का सबसे महत्वपूर्ण चरण है। हालांकि, कभी-कभी छात्र इसके बारे में चिंता का अनुभव करते हैं। मानसिक तनाव को कम करने के लिए व्यक्तिगत प्रेरणा बनाए रखने में छात्र की सहायता करना आवश्यक है। कभी-कभी, मानसिक स्वास्थ्य इस बात से प्रभावित होता है कि माता-पिता सम्पूर्ण तैयारी चक्र के दौरान घर पर विभिन्न स्थितियों पर किस प्रकार की प्रतिक्रिया देते हैं। इसकी निगरानी के लिए हम नियमित रूप से माता-पिता-शिक्षक की बैठकें आयोजित करते हैं ताकि उन्हें बच्चों को प्रेरित करने के लिए उनकी जिम्मेदारियों को याद दिला सकें।
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