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पत्नी के निधन की खबर जानकर भी नहीं छोड़ा फर्ज, कोर्ट में पूरी की बहस, भावुक कर देगी पहले गृह मंत्री की ये कहानी

Renuka Sahu
23 Aug 2021 6:07 AM GMT
पत्नी के निधन की खबर जानकर भी नहीं छोड़ा फर्ज, कोर्ट में पूरी की बहस, भावुक कर देगी पहले गृह मंत्री की ये कहानी
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फाइल फोटो 

देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल पटेल के बारे में कहा जाता है कि उनके ऐसे नेता और कुशल प्रशासक बेहद कम होते हैं

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Patel) पटेल के बारे में कहा जाता है कि उनके ऐसे नेता और कुशल प्रशासक बेहद कम होते हैं. पटेल की तुलना जर्मनी की एकता के सूत्रधार बिस्मार्क से की जाती है. इतिहास गवाह है कि बिस्मार्क ने कभी मूल्यों से समझौता किया और ना ही सरदार पटेल ने. आजादी के दौरान 562 रियासतें थीं, पटेल ने सभी को एकता के धागे में पिरोया और वो कर दिखाया जिसके बारे में कल्पना करना भी आसान नहीं था.

'लौह पुरुष' का सफर
सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात में हुआ. पिता झावेर भाई और माता का नाम लाडबा पटेल की चौथी संतान वल्लभ भाई बेहद होशियार थे. पढ़ाई लिखाई में उनकी बचपन से बहुत रुचि थी. लॉ की डिग्री हासिल करने के बाद वो वकालत करने लगे. साल 1917 के आखिरी महीनों में गुजरात अकाल की समस्या से जूझ रहा था. तभी नवंबर में सरदार पटेल की महात्मा गांधी से मुलाकात हुई. अन्य लोगों की तरह महात्मा गांधी भी उनकी प्रशासकीय क्षमता से प्रभावित हुए.
पटेल ने एक अस्थाई अस्पताल बनवाया. इन्फ्लूएंजा जैसी उस दौर की घातक बीमारी का इलाज इस अस्पताल में हुआ था. आगे चलकर खेड़ा में उन्होंने अंग्रेज सरकार के खिलाफ 'नो टैक्स' मूवमेंट चलाया. पटेल ने बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व किया. वो गुजरात प्रदेश कांग्रेस के पहले अध्यक्ष भी बने. कहा जाता है कि 1928 में बारडोली सत्याग्रह के वक्त ही वहां के किसानों ने उन्हें 'सरदार' की उपाधि से सम्मानित किया था.
पत्नी के निधन की खबर सुनकर भी नहीं छोड़ा फर्ज
अब जिक्र पटेल की कर्तव्य परायणता जिसकी कई मिसालें मौजूद हैं. यहां जिक्र उस बात का जिसकी जानकारी बेहद कम लोगों को होगी. ये दिन था 11 जनवरी 1909 का उस समय पटेल की पत्नी गंभीर रूप से बीमार थीं. इसी तारीख को उन्हें एक एक केस की सुनवाई के लिए कोर्ट जाना था. वो पहुंचे, जिरह करने लगे इसी दौरान अदालत का एक कर्मचारी आया जिसने जज की इजाजत से एक तार यानी टेलिग्राम पटेल के हाथ में रखा और चला गया.
इस पर लिखा था कि उनकी पत्नी का निधन हो गया है. पटेल ने उसे पढ़ा फिर संभालकर जेब में रख लिया और जिरह पूरी की. बाद में जज को ये घटना पता लगी तो उन्होंने सरदार से पूछा, आपने ऐसा क्यों किया? पटेल साहब ने जवाब दिया- ये तो मेरा फर्ज था. मेरे मुवक्किल को झूठे मामले में फंसाया गया है. मैं अन्याय के पक्ष में कैसे जा सकता हूं. इस किस्से का जिक्र इतिहास की कई किताबों के साथ कांग्रेस पार्टी की वेबसाइट inc.in में भी किया गया है
सख्त प्रशासक थे पटेल
भारतीय संघ में रियासतों का विलय करवाने में वल्लभभाई पटेल ने कभी-कभी सख्ती से भी काम लिया. हैदराबाद का नवाब भारत में विलय के लिए तैयार नहीं हो रहा था. तब पटेल ने कहा कि हैदराबाद भारत के पेट में मौजूद कैंसर का रूप लेता जा रहा है. इसका इलाज करना होगा. पटेल ने कहा कि वहां सर्जिकल ऑपरेशन होना चाहिए. मीटिंग में शामिल एक सेनाध्यक्ष इसके लिए तैयार नहीं था. उसने कहा कि अगर मेरी मर्जी के खिलाफ सैन्य कार्रवाई हुई तो मैं कल इस्तीफा दे दूंगा.
जवाब में सरदार पटेल ने कहा कि बेशक आप आज ही इस्तीफा दे दीजिए लेकिन कल हर हाल में हैदराबाद में सर्जिकल ऑपरेशन शुरू किया जाएगा. आखिरकार सैन्य हस्तक्षेप के बाद ही हैदराबाद का भारत में विलय करवाया जा सका.


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