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प्रदेश के 13 जिलों मे कृषि-बागवानी को नई करवट देगी ईआरसीपी परियोजना -कृषि एवं उद्यानिकी मंत्री

1 Feb 2024 5:51 AM GMT
प्रदेश के 13 जिलों मे कृषि-बागवानी को नई करवट देगी ईआरसीपी परियोजना -कृषि एवं उद्यानिकी मंत्री
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जयपुर । कृषि एवं उद्यानिकी मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा ने कहा कि ईआरसीपी परियोजना से प्रदेश में कृषि और बागवानी नई करवट लेगी। सिंचाई और पेयजल के लिए भरपूर पानी उपलब्ध होने से पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों के किसानों की तकदीर बदलेगी। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रदेश को ईआरसीपी के रूप में बड़ी …

जयपुर । कृषि एवं उद्यानिकी मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा ने कहा कि ईआरसीपी परियोजना से प्रदेश में कृषि और बागवानी नई करवट लेगी। सिंचाई और पेयजल के लिए भरपूर पानी उपलब्ध होने से पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों के किसानों की तकदीर बदलेगी। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रदेश को ईआरसीपी के रूप में बड़ी सौगात दी है। हमें पानी खर्च करने में मितव्यता दिखानी होगी। वहीं, बूंद-बूंद पानी संचय के साथ-साथ सदुपयोग को प्रोत्साहित करना होगा। कृषि मंत्री श्री मीणा राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान, दुर्गापुरा में गुरूवार से शुरू हुए तीन दिवसीय राष्ट्रीय बागवानी शिखर सम्मेलन, सह अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का फीता काटकर उद्घाटन करने के बाद आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राजस्थान देश का सबसे बड़ा प्रदेश है। लेकिन, जल उपलब्धता 0.1 फीसदी के करीब है। जबकि, यहां भूमि की उर्वरता काफी अच्छी है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित नई तकनीक और नई किस्मों को धरातल रूप देकर ना केवल किसानों की आय को बढाया जा सकता है। बल्कि, कृषि परिदृश्य में भी बड़ा बदलाव लाया जा सकता है।

कृषि मंत्री ने कहा कि प्रदेश में चंबल ऐसी नदी है, जिसमें पर्याप्त जलनिधी उपलब्ध है। प्रधानमंत्री द्वारा ईआरसीपी परियोजना के मंजूरी दिए जाने से अब पांच नदियां जोडक़र प्रदेश के 13 जिलों को पेयजल के साथ-साथ सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराया जायेगा। इससे पूर्वी राजस्थान में बागवानी के साथ-साथ कृषि फसलों के उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि संभव होगी। उन्होंने घटती कृषि जोत और उलपब्ध जल को देखते हुए किसानों से संरक्षित खेती, सूक्ष्म सिंचाई और बागवानी से जुडऩे का आव्हन किया। साथ ही, रिसर्च को लैब से लैण्ड तक पहुंचाने की आवश्यकता जताई। उन्होंने श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर द्वारा तैयार 60 करोड़ लीटर क्षमता वाले वाटर रिसाईक्लिंग प्लांट की प्रशंसा की। साथ ही, शिखर सम्मेलन में आने वाले सुझावों को सरकार के विजन डॉक्यूमेंट में शामिल करने का आश्वासन भी दिया।

कार्यक्रम को वाईएसआर बागवानी विश्वविद्यालय, गोदावरी, आंधप्रदेश के कुलपति डॉ. टी जानकीराम ने भी सम्बोधित किया। उन्होंने बागवानी फसलों का उत्पादन और उत्पादकता बढाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों से एआई, सेंसर और नैनो तकनीक को उपयोग में लाने पर जोर दिया। साथ ही, फूड इंडस्ट्रीज की मांग के अनुरूप प्रसंस्करण योग्य और पोषकता से भरपूर फल-सब्जी किस्मों के विकास की आवश्यकता जताई।

सम्मेलन में एसकेएनयू जोबनेर के कुलपति डॉ. बलराज सिंह ने देश-प्रदेश के बागवानी परिदृश्य पर प्रकाश डालते हुए कलस्टर आधारित बागवानी फसलों को बढ़ावा देने की जरूरत बताई। उन्होंने बताया कि राजस्थान जीरा, सौंफ, अनार, कैर, लसोड़ा, सांगरी, तरबूज-खरबूज, के साथ-साथ दहलन-तिलहन और खाद्यान्न फसलों के उत्पादन में अग्रणी प्रदेश है। लेकिन, प्रसंस्करण और सीधे निर्यात सुविधाओं के अभाव में किसानों को अपने उत्पाद की वाजिब कीमत नहीं मिल पा रही है। उन्होंने बताया कि राजस्थान शहद उत्पादन में भी अग्रणी है। देश में कुल उत्पादित शहद में प्रदेश की भागीदारी 50 फीसदी के करीब है। उन्होंने कहा कि बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए कृषि वैज्ञानिकों को वर्ष 2050 तक फल-सब्जी की मांग को देखते हुए रिसर्च का रोड़मैप तैयार करना होगा। साथ ही, बागवानी फसलों के उत्पादन और उत्पादकता को चुनौति दे रही विल्ट, ब्लाइट और निमेटॉड आदि बीमारियों का समाधान तलाशना होगा। इस मौके पर कुलपति सिंह ने विश्वविद्यालय और रारी जयपुर पर संचालित रिसर्च परियोजनाओं के बारे में भी जानकारी दी। उन्होने बताया कि सकल घरेलू उत्पादन में बागवानी फसलों की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत के करीब है।

सम्मेलन में आईसीएआर नई दिल्ली के सहायक महानिदेशक-बागवानी डॉ. सुधाकर पाण्डेय ने उत्पादन और उत्पादकता के अंतर को पाटने की आवश्यकता जताते हुए डेटा मैनेजमेंट, फार्मर स्किल डवलपमेंट, क्रेडिट सुविधाओं का विकास, एफपीओं की सक्रियता, फल-सब्जी की सेल्फ लाइफ बढ़ाने, आधारभूत सुविधाओं के विकास, कटाई उपरांत फसलोत्तर प्रबंधन और बाजार-उपभोक्ता और किसान को एक मंच पर लाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि किसानों की आय बढौत्तरी के लिए हमें फल-सब्जी मूल्य संवर्द्धन और प्रसंस्करण की दर को बढ़ाकर 18 फीसदी तक ले जाने की जरूरत है। साथ ही, किसानों की आय बढौत्तरी के लिए बागवानी आधारित ईको टूरिज्म पर भी फोकस करने की आवश्यकता है। सम्मेलन को आईसीएआर के सहायक महानिदेशक -बागवानी डॉ. वीबी पटेल, मेडिसनल प्लांट बोर्ड, भारत सरकार के सीईओ डॉ. महेश दाधीच, पूसा संस्थान के सब्जी विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. बीएस तोमर और सोसायटी फॉर हार्टिकल्चर रिसर्च एडं डवलपमेंट, गाजियाबाद, उत्तरप्रदेश के सचिव डॉ. सोमदत्त ने भी सम्बोधित किया। गौरतलब है कि राष्ट्रीय बागवानी शिखर सम्मेलन में देश के सभी बागवानी विश्वविद्यालयों के कुलपति और बागवानी रिसर्च संस्थानों के निदेशकों के साथ-साथ 350 से ज्यादा वैज्ञानिक, छात्र, कारोबारी और किसान भाग ले रहे है।

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