200 की रिश्वत लेकर फंसे इंजीनियर को 40 साल बाद मिली राहत, कोर्ट ने सुनाया ये फैसला
जोधपुर। कहते हैं अगर न्याय में देरी हो तो उस न्याय का कोई मतलब नहीं होता. (Justice Delayed Is Justice Denied) एक इंजीनियर 40 साल बाद भ्रष्टाचार के मामले में बरी हुआ है. मामला राजस्थान का है. ये मामला महज 200 रूपये की रिश्वत का है. जोधपुर हाईकोर्ट में 32 साल बाद अपील का निस्तारण हुआ. राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर मुख्यपीठ ने ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ पेश अपील को 32 साल बाद निस्तारित करते हुए अपीलकर्ता को एक साल की सजा से बरी किया है.
जस्टिस डॉ पुष्पेन्द्रसिंह भाटी की अदालत में अपीलकर्ता प्रकाश मनिहार के अधिवक्ता एमएस राजपुरोहित ने पैरवी की. अधिवक्ता ने कहा कि वर्ष 1982 में अपीलकर्ता सहायक इंजीनियर आरएसईबी गंगरार में कार्यरत था, इस दौरान एक शिकायत पर एसीबी चित्तौडगढ ने 04 मार्च 1982 को महज 200 रूपये रिश्वत के आरोप में गिरफ्तार किया था. एसीबी कोर्ट भीलवाडा ने मामले पर करीब 10 साल बाद 02 दिसंबर 1991 को फैसला सुनाते हुए दोषी करार देते हुए एक साल की सजा के आदेश दिए थे.
जिसके खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर मुख्यपीठ में अपील पेश की गई थी, हाईकोर्ट जोधपुर में पिछले 32 साल से अपील विचाराधीन है, लेकिन मुकदमे का निस्तारण नहीं हो पाया, अधिवक्ता ने कहा कि न्याय में देरी के लिए सुना था, लेकिन इस मामले में तो 32 साल से अपीलार्थी चक्कर काट रहा है. जबकि ट्रायल कोर्ट ने दोषी करार देते हुए समय एसीबी की धाराओं में जिन बिन्दू पर सजा होती है उनको देखा ही नही, एक तो रिश्वत की राशि रंगे हाथो बरामद होना और दूसरा मांग का सत्यापन होना आवश्यक है. जबकि इस केस में मांग का सत्यापन हुआ ही नहीं. केवल एसीबी ने 200 रूपये दिए थे. मांग की गई कि ट्रायल कोर्ट द्वारा जो सजा दी गई है वो निरस्त करते हुए बरी किया जाए. जोधपुर हाईकोर्ट ने भी अपने फैसले में माना कि एसीबी के मामले में मांग सत्यापन होना आवश्यक है. लेकिन इस केस में ऐसा नही हुआ इसीलिए 02 दिसंबर 1991 को दिए गए ट्रायल कोर्ट के आदेश को अपास्त करते हुए अपीलार्थी को बरी करने का आदेश पारित किया.