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बुजुर्ग ने कोरोना को हौसले से दे दी मात, वार्ड में सुसाइड करने का आता था ख्याल, गीता ज्ञान से ऐसे जीती जंग

jantaserishta.com
4 May 2021 1:16 PM GMT
बुजुर्ग ने कोरोना को हौसले से दे दी मात, वार्ड में सुसाइड करने का आता था ख्याल, गीता ज्ञान से ऐसे जीती जंग
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पूरे देश में कोरोना कहर बरपा रहा है. इस महामारी की वजह से रोज हजारों लोगों की जान जा रही है. इस बार काफी युवाओं की भी जानें जा रही हैं. ऐसे में लोग काफी डरे हुए हैं. राजस्थान में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने यह साबित किया है कि अगर हौसले से बीमारी का सामना किया जाए तो मौत को टाला जा सकता है. हार्ट का ऑपरेशन, डायबिटीज की बीमारी और 22 के सीटी स्कोर के बाद भी अपने जवान बेटे के साथ अस्पताल में भर्ती बुजुर्ग ने कोरोना को हौसले से मात दे दी.

जयपुर के राहुल राजपुरोहित को मार्च के दूसरे सप्ताह में बुखार आना शुरू हुआ था. जब सात दिनों तक बुखार नहीं उतरा तो उन्होंने टेस्ट कराया और कोरोना पॉजिटिव निकले. इसके बाद उनके 71 साल के पिता गिरधारी सिंह राजपुरोहित को भी बुखार आया उन्होंने भी जांच कराया तो वो भी कोरोना पॉजिटिव निकले.
राहुल की तबीयत ज़्यादा बिगड़ रही थी. उनके पिता का पहले से ही हार्ट का ऑपरेशन हुआ था और डायबिटीज के मरीज़ थे. इसलिए दोनों को जयपुर के नारायणा हॉस्पिटल में ICU में भर्ती कराया गया. कोरोना पॉज़िटिव होने के बावजूद राहुल की स्थिति में सुधार पर उन्हें ICU से बाहर कर गंभीर मरीज को बेड दे दिया गया और पिता अकेले रह गए.
डॉक्टरों ने बताया कि इनके लंग्स में इंफेक्शन की स्थिती गंभीर है. इनका सीटी स्कोर 22 है और ऑक्सीजन लेवल लगातार गिर रहा है. ऐसे में इनका इलाज लंबा चलेगा. बेटे के बाहर जाने के बाद अकेले पड़ गए गिरधारी सिंह परेशान हो उठे और डॉक्टरों पर चिल्लाते थे. मगर अब ठीक होकर वापस आने के बाद बताते हैं कि डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ़ की मदद की वजह से आज वह ज़िंदा हैं.
अकेले रहने के बाद उनके मन में आत्महत्या का ख़्याल आता था पर रोज़ाना गीता पढ़ने वाले गिरधारीलाल के मन में गीता की वह बातें याद आती थी जिसमें आत्महत्या करने पर अगले जन्मों में भी दंड भुगतना पड़ता है. बताते हैं कि बिस्तर पर चारों तरफ़ से मशीनों के बीच जकड़े रहना आसान नहीं होता है. वह क़रीब क़रीब हिम्मत हार चुके थे तभी तो एक युवक भर्ती हुआ जिसकी स्थिति बिलकुल ही नाज़ुक थी और ऐसा लग रहा था कि जल्द ही वह लाश के रूप में बाहर आएंगे.
बगल में एक और युवक भर्ती हुआ जिसका डायलेसिस भी चल रहा था. मगर डॉक्टर और नर्सिंगकर्मियों ने दिन रात मेहनत कर दोनों को अपने पैरों पर खड़ा कर दिया. उसके बाद गिरधारी लालपुरोहित को लगा कि डॉक्टर जब उन्हें ठीक कर सकते हैं तो हमें क्यों नहीं और उन्हें ठीक होने की ठानी.
इसके पहले वह अपने घरवालों को बता रहे थे की उनकी मौत के बाद क्या क्या करना है? मगर अब घरवालों के साथ हौसला रखने की बातें करने लगे थे और आख़िर में यही काम आया. गीता का ज्ञान, डॉक्टर और नर्सिंग कर्मियों की मेहनत और परिवार का साथ इन्हें 15 दिन बाद ICU से बाहर निकाल लाया.
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