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लड़कियों पर लॉकडाउन का असर: 67% नहीं ले पाईं ऑनलाइन क्लास, जल्दी शादी का खतरा बढ़ा

Kunti Dhruw
4 March 2022 10:03 AM GMT
लड़कियों पर लॉकडाउन का असर: 67% नहीं ले पाईं ऑनलाइन क्लास, जल्दी शादी का खतरा बढ़ा
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कोरोना वायरस (Coronavirus) लॉकडाउन (Lockdown) का बेहद बुरा प्रभाव लड़कियों की शिक्षा पर पड़ा है.

कोरोना वायरस (Coronavirus) लॉकडाउन (Lockdown) का बेहद बुरा प्रभाव लड़कियों की शिक्षा पर पड़ा है. इससे जुड़े कुछ आंकड़ों सामने आए हैं, जो काफी चिंताजनक हैं. एनजीओ सेव द चिल्ड्रन की रिपोर्ट के अनुसार, कम से कम 68 फीसदी टीनेज लड़कियों को स्वास्थ्य और पोषण से जुड़ी सेवाएं पाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. जबकि देशभर के चार राज्यों में 67 फीसदी लड़कियां लॉकडाउन के कारण अपनी ऑनलाइन क्लास (Girl Education in India) नहीं ले पाईं. इस रिपोर्ट का शीर्षक 'द वर्ल्ड ऑफ इंडियाज गर्ल्स- विंग्स 2022' है.

इसमें दिल्ली, महाराष्ट्र, बिहार और तेलंगाना की लड़कियों की कोविड-19 के दौरान शिक्षा से जुड़ी स्थिति के बारे में बताया गया है. इसमें कहा गया है कि 51 फीसदी टीनेज लड़कियों को लॉकडाउन के बाद स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. वहीं 56 फीसदी को इस दौरान आउटडोर खेल और मनोरंजक से जुड़ी गतिविधियों में शामिल होने का समय नहीं मिला. सर्वेक्षण में शामिल आधी से अधिक महिलाओं ने माना कि कोरोना के कारण लड़कों की बजाय लड़कियों की जल्दी शादी होने की संभावना अधिक है.
किस आधार पर तैयार हुई रिपोर्ट?
इन सभी चार राज्यों को कोविड-19 से जुड़ी गतिविधियां, बाल लिंग अनुपात, 18 साल से पहले शादी करने वाली महिलाओं, वार्षिक ड्रॉपआउट अनुपात और पीरियड्स के दौरान स्वच्छता से जुड़े उपाय अपनाने वाली 15 से 24 साल की महिलाओं के आधार पर चुना गया. समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए सेव द चिल्ड्रन के सीईओ सुदर्शन सुची ने कहा कि रिपोर्ट का उद्देश्य टीनेज लड़कियों की शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, खेल और मनोरंजन तक पहुंच और बाल विवाह के जोखिम पर महामारी के प्रभाव को समझना है.
जरूरी मुद्दों की तरफ ध्यान खींचना उद्देश्य
रिपोर्ट का उद्देश्य कुछ जरूरी मुद्दों जैसे लड़कियों की स्वास्थ्य, शिक्षा, और खेलने और मनोरंजक गतिविधियों से जुड़े अवसरों पर ध्यान केंद्रित करना है. सुची ने कहा, 'हमें उम्मीद है कि रिपोर्ट बच्चों, विशेष रूप से टीनेज लड़कियों के मुद्दों के बारे में व्यक्तियों, परिवारों, समुदायों, नागरिक समाज संगठनों, मीडिया और सरकार को संवेदनशील बनाने में मदद करेगी, जिससे भारत को हमारी लड़कियों के लिए एक समान और बेहतर स्थान बनाने के लिए परिवर्तन होगा.' महिलाओं के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाने के लिए अतीत में भी कई पहल की गई हैं.


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