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धरती की निगरानी करने वाले उपग्रह EOS-03 का मिशन फेल, जानें कितना बड़ा झटका है ये?

jantaserishta.com
12 Aug 2021 9:28 AM GMT
धरती की निगरानी करने वाले उपग्रह EOS-03 का मिशन फेल, जानें कितना बड़ा झटका है ये?
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इसरो (ISRO) ने 12 अगस्त 2021 की सुबह 5:43 बजे GSLV-F10 रॉकेट से EOS-3 (Earth Observation Satellite-3) की लॉन्चिंग तो सफलतापूर्वक की लेकिन रॉकेट के तीसरे स्टेज यानी क्रायोजेनिक इंजन के अपर स्टेज में तकनीकी खामी आने की वजह से उससे संपर्क टूट गया. सैटेलाइट और उसके साथ क्रायोजेनिक इंजन अंतरिक्ष में अपनी तय कक्षा में पहुंचने से पहले ही लापता हो गया. इसरो ने अपने बयान में कहा कि मिशन जिस हिसाब से पूरा होना चाहिए था, वह नहीं हुआ. आइए जानते हैं कि आखिर धरती से सही सलामत निकले अंतरिक्षयान को अंतरिक्ष में क्या और कब हुआ?

सुबह 5:43 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड से GSLV-F10 रॉकेट सटीकता के साथ उड़ा. दो मिनट तक उड़ने के बाद पहले स्टेज यानी रॉकेट के सबसे निचले हिस्से में लगे स्ट्रैपऑन बूस्टर्स 2 मिनट 29 सेकेंड के बाद अलग हो गए.
इसके बाद पहला स्टेज रॉकेट को तेजी से अंतरिक्ष की ओर लेकर तेजी से ऊपर जा रहा था. उस समय गति थी 2688 मीटर प्रति सेकेंड यानी 9679 किलोमीटर प्रतिघंटा. लॉन्च के करीब 2 मिनट 31 सेकेंड के बाद बाद रॉकेट का पहला स्टेज यानी जीएस-1 (GS-1) यान से अलग हो गया. दूसरा स्टेज पहले स्टेज के अलग होने से एक सेकेंड पहले शुरु हो चुका था.
दूसरे स्टेज यानी जीएस-2 (GS-2) के साथ EOS-3 सैटेलाइट 3813 मीटर प्रति सेकेंड यानी 13,729 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से अपने तय स्थान की ओर जा रहा था. इसी समय सैटेलाइट के ऊपर बने हीटशील्ड यानी रॉकेट के सबसे ऊपरी हिस्से का कवर हट गया.
लॉन्च के करीब 4 मिनट 51 सेकेंड के बाद दूसरा स्टेज बंद हुआ. इसके 4 सेकेंड के बाद दूसरा स्टेज रॉकेट को छोड़कर अलग हो गया. यहां तक सबकुछ ठीक चल रहा था. इस समय रॉकेट की गति 5206 मीटर प्रति सेकेंड यानी 18,741 किलोमीटर प्रतिघंटा थी. श्रीहरिकोटा स्थित मिशन कंट्रोल सेंटर में वैज्ञानिक खुशियां मना रहे थे. हालांकि, सारे वैज्ञानिक अपने-अपने कंप्यूटर पर नजर गड़ाए हुए थे कि जब तक सैटेलाइट अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच जाता तब तक डेटा पर ध्यान देते रहना है.
लॉन्च के करीब 4 मिनट 56 सेकेंड के बाद तीसरा स्टेज यानी जीएस-3 (GS-3) जिसे क्रायोजेनिक इंजन कहते हैं. उसने अपनी शुरुआत कर दी. लेकिन अचानक मिशन कंट्रोल सेंटर से उसका संपर्क टूट गया. सेंटर में सन्नाटा पसर गया. फिर भी टेलिमेट्री स्क्रीन पर ग्राफ में डेटा बीच-बीच में आ रहा था. वैज्ञानिक सोच रहे थे कि ये ठीक हो सकता है.
रॉकेट के लॉन्च के करीब 18 मिनट 24 सेकेंड पर क्रायोजेनिक इंजन को बंद होना था. इसके पांच सेकेंड यानी 18 मिनट 29 सेकेंड पर क्रायोजेनिक इंजन को बर्न आउट करना था, जो नहीं हुआ. फिर 18.39 सेकेंड पर EOS-3 से अलग होकर हट जाना था. ये भी नहीं हुआ. यानी 18 मिनट 29 सेकेंड और मिशन पूरा होने के आखिरी समय 18 मिनट 39 सेकेंड के बीच इंजन और सैटेलाइट से संपर्क टूट गया.
इसके बाद मिशन कंट्रोल सेंटर में वैज्ञानिकों के चेहरों पर तनाव की लकीरें दिखने लगीं. थोड़ी देर तक वैज्ञानिक आंकड़ों के मिलने और अधिक जानकारी का इंतजार करते रहे. फिर मिशन डायरेक्टर ने जाकर सेंटर में बैठे इसरो चीफ डॉ. के. सिवन को सारी जानकारी दी. इसके बाद इसरो प्रमुख ने कहा कि क्रायोजेनिक इंजन में तकनीकी खामी पता चली है. जिसकी वजह से यह मिशन पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया.
इसके बाद इसरो ने घोषणा की कि मिशन आंशिक रूप से विफल रहा है. तत्काल इसरो द्वारा चलाया जा रहा लाइव प्रसारण बंद कर दिया गया. अगर यह मिशन कामयाब होता तो सुबह करीब साढ़े दस बजे से यह सैटेलाइट भारत की तस्वीरें लेना शुरु कर देता. इस लॉन्च के साथ इसरो ने पहली बार तीन काम किए थे. पहला- सुबह पौने छह बजे सैटेलाइट लॉन्च किया. दूसरा- जियो ऑर्बिट में अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट को स्थापित करना था. तीसरा- ओजाइव पेलोड फेयरिंग यानी बड़े उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजना.
इसरो ने पहली बार सुबह 5:45 बजे अपना कोई सैटेलाइट लॉन्च किया. इससे पहले कभी भी इस समय पर कोई अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट नहीं छोड़ा गया था. सुबह लॉन्चिंग से मौसम के साफ रहने का फायदा तो मिला लेकिन बीच रास्ते में क्रायोजेनिक इंजन ने धोखा दे दिया. दूसरा सूरज की रोशनी में अंतरिक्ष में उड़ रहे अपने सैटेलाइट पर नजर रखने में आसानी होती.
इसरो ने अभी तक जियो ऑर्बिट यानी धरती से 36 हजार किलोमीटर दूर की स्थैतिक कक्षा में किसी रिमोट सेंसिंग यानी अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट को नहीं तैनात किया था. यह पहली बार होता जब EOS-3 (Earth Observation Satellite-3) इतनी दूरी पर भारत की तरफ अपनी नजरें गड़ाकर निगरानी करता. आप यूं भी कह सकते हैं कि भारत अपनी सुरक्षा के लिए अंतरिक्ष में सीसीटीवी लगा रहा था.
यह सैटेलाइट पूरे दिन भारत की तस्वीरें लेता रहता. हर आधे घंटे में यह पूरे देश की तस्वीर लेता रहता. जिसे जरूरत के हिसाब से इसरो के वैज्ञानिक या देश के अन्य मंत्रालय या विभाग प्रयोग कर सकते थे. पहली बार 4 मीटर व्यास वाले ओजाइव (Ogive) आकार का सैटेलाइट को जीएसएलवी की नाक में रखा गया था. यानी EOS-3 सैटेलाइट OPLF कैटेगरी में आता है. इसका मतलब ये है कि सैटेलाइट 4 मीटर व्यास के मेहराब जैसा दिखाई देगा.
यह सैटेलाइट प्राकृतिक आपदाओं और मौसम संबंधी रियल टाइम जानकारी देता. यह तस्वीरें रियल टाइम में इसरो के केंद्रों को प्राप्त होंगी. जिनका उपयोग जलीय स्रोतों, फसलों, जंगलों, सड़कों-बांधों-रेलवे के निर्माण में भी किया जा सकता था. इतना ही नहीं इस सैटेलाइट की ताकतवर आंखें हमारे जमीनी और जलीय सीमाओं की निगरानी भी करतीं. इसकी मदद से दुश्मन की हलचल का पता भी किया जा सकता था.
इस सैटेलाइट की खास बात हैं इसके कैमरे. इस सैटेलाइट में तीन कैमरे लगे थे. पहला मल्टी स्पेक्ट्रल विजिबल एंड नीयर-इंफ्रारेड (6 बैंड्स), दूसरा हाइपर-स्पेक्ट्रल विजिबल एंड नीयर-इंफ्रारेड (158 बैंड्स) और तीसरा हाइपर-स्पेक्ट्रल शॉर्ट वेव-इंफ्रारेड (256 बैंड्स). पहले कैमरे का रेजोल्यूशन 42 मीटर, दूसरे का 318 मीटर और तीसरे का 191 मीटर. यानी इस आकृति की वस्तु इस कैमरे में आसानी से कैद हो जाती.
विजिबल कैमरा यानी दिन में कान करने वाला कैमरा जो सामान्य तस्वीरें खीचेंगा. इसके अलावा इसमें इंफ्रारेड कैमरा भी लगा है. जो रात में तस्वीरें लेगा. यानी भारत की सीमा पर किसी तरह की गतिविधि हुई तो EOS-3 सैटेलाइट के कैमरों की नजर से बचेगी नहीं. ये किसी भी मौसम में तस्वीरें लेने के लिए सक्षम है. इसके अलावा इस सैटेलाइट की मदद से आपदा प्रबंधन, अचानक हुई कोई घटना की निगरानी की जा सकती है. साथ ही साथ कृषि, जंगल, मिनरेलॉजी, आपदा से पहले सूचना देना, क्लाउड प्रॉपर्टीज, बर्फ और ग्लेशियर समेत समुद्र की निगरानी करना भी इस सैटेलाइट का काम था.

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