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बड़ी आँखों से देखे सपने नहीं मरते

Nilmani Pal
30 Aug 2023 10:44 AM GMT
बड़ी आँखों से देखे सपने नहीं मरते
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बतकही की ओर से अजय कुमार पाण्डेय का कविता पाठ

लखनऊ। हिंदी के चर्चित कवि अजय कुमार पाण्डेय (बलिया) 27 अगस्त को लखनऊ में थे। बतकही की ओर से उस दिन गोमती नगर स्थित किसान बाजार में उनके कविता पाठ का आयोजन किया गया। यह बतकही की अठारहवीं कड़ी थी। इस मौके पर उन्होंने

छोटी-बड़ी को मिलाकर एक दर्जन से अधिक कविताओं का पाठ किया। ज्ञात हो कि अजय पांडे के कई कविता संग्रह आ चुके हैं। हाल में न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन की ओर से 'समकाल की आवाज - चयनित कविताएं ' शीर्षक से उनका संग्रह आया है।

अजय पाण्डेय ने कविता पाठ की शुरुआत एक छोटी कविता "स्त्री और नदी" से की। इसमें स्त्री और नदी को एक-दूसरे से नाभिनालबद्ध बताते हुए कहा : "जब कोई नदी सूखती है,/उसे एक स्त्री में बहते हुए पाता हूँ "। नदी-माँ-बेटी से जुड़ी एक दूसरी छोटी कविता "माँ : एक नदी" सुनाते हुए उन्होंने कहा : "माँ/इस समय/लेटे-लेटे/बेटी का ध्यान कर रही है/एक नदी बह रही है "। उन्होंने "एक स्त्री" में कामकाजी स्त्री को चिड़िया के रूप में उकेरा : "जब किसी स्त्री को देखता हूँ , /वह चिड़िया रही होती है/कुछ तिनके चोंच में दबाये/एक घोसले की तरफ उड़ रही होती है।"

अजय पाण्डेय ने पारिवारिक संबंधों को लेकर भी कई कविताएँ सुनाईं। माँ-बेटी, पिता-पुत्र के नेह-नातों

को उन्होंने अपनी कविता में अलग तरह से परिभाषित किया। "पिता" को लेकर लिखी कविता में उन्होंने अपना मार्मिक अनुभव सुनाते हुए कहा : "पहले उनके भाइयों ने/उनको बाँटा/बाद में हम भाइयों ने,/ता-उम्र/और..../सम्पूर्ण नहीं/हो पाए पिता।" आगे उन्होंने भारतीय लोकतंत्र के चुनाव में अपराधियों की बढ़ती घुसपैठ को लेकर चिंता जाहिर करने वाली कविता "लोकतंत्र पर थूक गया" सुनाया। उन्होंने क्रांतिधर्मी लोक बुद्धिजीवी की बौद्धिक जुगाली को लेकर लिखी व्यंग्य कविता 'जुगाली' का भी पाठ किया।

"राजनीति में युवाओं की भागीदारी" की विडंबना का चित्र खींचते हुए वे कहते हैं : " उन्हें लोकतंत्र की/मजबूती की चिंता है,/इसके लिए/राजनीति में/युवाओं की दरकार है/और/चुनाव के मद्देनज़र/ "एक बूथ - चार यूथ" की उनकी तैयारी है/राजनीति में/युवाओं को/बस इतनी सी भागीदारी है।' आम आदमी के प्रतिरोध को "नहीं" कविता में सुनाते हुए उन्होंने कहा : " हमारे मुँह से

निकला -' नहीं ' /और वे गुस्से में/पैर पटकते चलते बने/फिर कभी दिखाई नहीं दिए/'नहीं '- महज एक शब्द /भर नहीं/वह मुक्ति की युक्ति है " । अंत में अजय पाण्डेय ने एक लंबी कविता "बड़ी आँखों से देखे सपने नहीं मरते " सुनाई। इस कविता में उन्होंने अमरोहा जिले के ख्यातिलब्ध जन चित्रकार सैयद सादेकैन नकवी, जो विभाजन के वक्त पाकिस्तान चले गए, के बहाने हिंदू-मुसलमानों के संघर्ष, इतिहास, संस्कृति और जीने की शर्तों के साझे होने को बहुत गहराई तथा संवेदनशील ढंग से रेखांकित किया।

काव्य पाठ के बाद परिचर्चा हुई। प्रतिष्ठित कवि चंद्रेश्वर ने कहा कि अजय पाण्डेय की कविताएं अपने आसपास के परिवेश, जीवन और समाज से सीधे जुड़ती हैं । उनमें अपने समय की बदलती सामाजिक वास्तविकताओं एवं सच्चाइयों की कई छवियां देखी जा सकती हैं । वे बहुत ही सरल-सहज लोक जीवन में बरते जाने वाले शब्दों के ज़रिए अपनी कविताओं में बिम्बों की रचना करते हैं। वे अपनी लघु कविताओं की रचना में ज़्यादा सफल दिखाई देते हैं । उनकी कविताओं में अभिव्यक्ति की सरलता के बावजूद भाव-संवेदना में गहराई है ।

सामाजिक कार्यकर्ता और चिंतक धनंजय शुक्ल ने रेखांकित किया कि अजय की कविताओं में उनके जीवन अनुभव का यथार्थ बड़ी साफगोई और ईमानदारी से अभिव्यक्त हुआ है। यथार्थ चित्रों और अनुभव बिंबों के माध्यम से वे छोटी कविताओं में भी गहरी बात कह जाते हैं। बिंबों, चित्रों के माध्यम से वे जीवन के यथार्थ और विसंगति को गहराई से उकेरते हैं तथा पाठक को सोचने के लिए उकसाते हैं।

डा.अजीत प्रियदर्शी ने कहा कि अजय पाण्डेय की कविताएँ चिंतन, मनन और विचार-दृष्टि से सम्पन्न कविताएं हैं। उन्होंने अजय कुमार पाण्डेय को बदलाव की कामना और सपनों का जुझारू कवि के रूप में रेखांकित किया तथा कहा कि छोटी कविताएं खास तौर पर बेधक यथार्थ की कविताएं हैं।

अजय कुमार पाण्डेय के साथ बलिया जिले से पधारे दो अधिवक्ता साथी - राजू भारती एवं शिवचरण यादव -- भी बतकही में शामिल रहे। उनके द्वारा की गई टिप्पणियां और उनके साथ विचार -विमर्श काफी महत्वपूर्ण रहे।

डॉ अजीत प्रियदर्शी

बतकही

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