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डॉ. अरोड़ा ने कहा- 'एंटीबॉडी टेस्ट कराने का कोई फायदा नहीं, इससे असली चीज पता ही नहीं चलती'

Kunti Dhruw
15 Aug 2021 5:19 PM GMT
डॉ. अरोड़ा ने कहा- एंटीबॉडी टेस्ट कराने का कोई फायदा नहीं, इससे असली चीज पता ही नहीं चलती
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क्या आप भी अपने शरीर में कोरोना वायरस के खिलाफ बनी एंटीबॉडी को जांचने के लिए टेस्ट करवाने जा रहे हैं या करवा चुके हैं।

क्या आप भी अपने शरीर में कोरोना वायरस के खिलाफ बनी एंटीबॉडी को जांचने के लिए टेस्ट करवाने जा रहे हैं या करवा चुके हैं। अगर जवाब हां में है तो देश के प्रमुख विशेषज्ञों की नजर में इस जांच का कोई भी मतलब या औचित्य नहीं है, क्योंकि यह रिपोर्ट आपके शरीर में वायरस से लड़ने के लिए तैयार गई रोग प्रतिरोधक क्षमता का सही आकलन नहीं करती है। विशेषज्ञों का कहना है कि शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का आकलन करने के लिए टी सेल्स की उपलब्धता के बारे में जानना बेहद जरूरी है।

बीते दिनों देश के अलग-अलग राज्यों के कुछ शहरों में इस तरीके की घटनाएं सामने आईं, जिनमें वैक्सीन लगाने के बाद या कोरोना संक्रमण होने के बाद भी शरीर में एंटीबॉडीज नहीं मिलीं। इस बारे में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा गठित नेशनल कोविड टास्क फोर्स टीम की रिसर्च विंग के चेयरपर्सन डॉक्टर एनके अरोड़ा कहते हैं कि इस तरीके के टेस्ट से शरीर में बनी रोग प्रतिरोधक क्षमता का आकलन तो किया ही नहीं जा सकता।
शरीर में दो तरीके की एंटीबॉडी
डॉ. अरोड़ा ने बताया कि शरीर में दो तरीके से रोग प्रतिरोधक क्षमताओं का आकलन किया जाता है। इसमें एक दृश्य रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है और दूसरी अदृश्य रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है। दृश्य रोग प्रतिरोधक क्षमता का आकन एंटीबॉडीज के टेस्ट के तौर पर होता है, जबकि अदृश्य रोग प्रतिरोधक क्षमता का आकलन टी सेल्स (लिंफोसाइट्स, एक तरीके की व्हाइट ब्लड सेल्स) की मौजूदगी का आकलन करके होता है।
डॉ. अरोड़ा का कहना है कि दूसरी तरीके की रोग प्रतिरोधक क्षमता का आकलन सामान्य लैब में नहीं किया जा सकता। वह कहते हैं कि पूरे देश में सिर्फ चार लेबोरेटरी में ही टी सेल्स की मौजूदगी का आकलन हो सकता है। इन कोशिकाओं की मौजूदगी का मतलब आपके शरीर में वायरस से लड़ने की पूरी क्षमता का होना होता है।
डॉ. अरोड़ा से बातचीत की अहम बातें
डॉ. अरोड़ा ने बताया कि जिस एंटीबॉडी का टेस्ट देश की ज्यादातर लेबोरेटरी में होता है, उनको न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी कहते हैं। जो लोग न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी का टेस्ट कराते हैं उससे इस बात का अंदाजा हो जाता है कि शरीर में बनी हुई है एंटीबॉडी मौजूदा वायरस को खत्म करने में सहायक है।
हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे भी बहुत से मामले सामने आ रहे हैं, जिसमें लोगों में इस तरीके की एंटीबॉडी नहीं मिलती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उनके अंदर वायरस से लड़ने की क्षमता नहीं हुई है।
डॉ. अरोड़ा के मुताबिक, जिन लोगों में न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी नहीं बनी है, उनमें टी सेल्स भी डिवेलप हो जाती हैं। जिसका सामान्य एंटीबॉडी टेस्ट जांच में कोई आकलन नहीं होता है।
उन्होंने बताया कि इस तरीके की जांच कराने से लोगों में संशय पैदा होता है। इसलिए सामान्य एंटीबॉडी का टेस्ट कराने का कोई भी मतलब नहीं बनता है।
उन्होंने बताया कि हमारे देश में लगाई जाने वाली सभी वैक्सीन से एंटीबॉडी बन रही है। इसलिए अमूमन जो लोग अपना टेस्ट सिर्फ एंटीबॉडी को जांचने के लिए कराते हैं, उन्हें इससे बचना चाहिए।
विशेषज्ञों का कहना है कि कई बार ऐसे मामले सामने आते हैं जिनमें न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी दिखती ही नहीं है और लोगों में एंटीबॉडी ना बनने की जानकारी मिलने पर खौफ पैदा हो जाता है।
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