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डॉक्टर उम्रकैद की सजा से बरी, दामाद की हत्या मामले में बंद था जेल में

Nilmani Pal
24 May 2024 2:04 AM GMT
डॉक्टर उम्रकैद की सजा से बरी, दामाद की हत्या मामले में बंद था जेल में
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यूपी। आत्मरक्षा का अधिकार प्रयोग करने के लिए कोई स्वर्णिम मानक या गणितीय फार्मूला तय नहीं किया जा सकता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह बात कही है। यह घटना के वक्त की परिस्थितियों, आत्मरक्षा का प्रयोग करने वाले व्यक्ति की मन:स्थिति, उसकी जान पर उत्पन्न खतरे की आशंका जैसी तमाम बातों पर निर्भर करता है कि उसने आत्मरक्षा के अधिकार का प्रयोग करते समय आवश्यकता से अधिक शक्ति का उपयोग किया अथवा नहीं। कोर्ट ने इस निर्णय के साथ अपने ही दामाद की हत्या में उम्रकैद की सजा पाए शाहजहांपुर के डॉक्टर जेएन मिश्रा को बरी कर दिया है।

डॉ जेएन मिश्रा को अधीनस्थ न्यायालय ने उम्रकैद और 50 हज़ार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। इस सजा के खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी। अपील पर न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी और न्यायमूर्ति नंद प्रभा शुक्ला की खंडपीठ ने सुनवाई की। मामले के अनुसार डॉक्टर जेएन मिश्रा के खिलाफ उनके समधी अशोक कुमार दुबे ने 2 मार्च 2010 को प्राथमिक की दर्ज कराई थी। जिसमें कहा गया कि उनके बेटे सुधांशु की शादी डॉक्टर जेएन मिश्रा की बेटी निधि के साथ हुई थी। शादी के बाद डॉक्टर मिश्रा सुधांशु को अपना घर जमाई बनना चाहते थे। जिससे उसने मना कर दिया। घटना वाले दिन इसी बात पर पंचायत थी। जिसके लिए वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ मिश्रा के क्लीनिक पर गए थे । बातचीत के दौरान डॉ मिश्रा ने तैश में आकर निधि और सीमा के उकसाने पर अपनी लाइसेंसी राइफल से सुधांशु को गोली मार दी जिससे उसकी मौत हो गई।

घटना शाम 6 बजे की थी जिसकी प्राथमिकी रात में लगभग 11:30 बजे लिखाई गई। जबकि घटना स्थल से थाने की दूरी लगभग 500 मी ही थी। विवेचना के दौरान जांच अधिकारी ने मिश्रा की पत्नी सीमा और बेटी निधि का नाम अभियुक्तों की सूची से निकाल दिया क्योंकि उनकी घटनास्थल पर उपस्थिति साबित नहीं पाई गई। कोर्ट ने घटना के बाद लगभग 5:30 घंटे की देरी से प्राथमिकी करने को संदेहास्पद पाया।

बचाव पक्ष की दलीलों से यह बात सामने आई कि वास्तव में सुधांशु अपने ससुर डॉक्टर मिश्रा पर उनका नवनिर्मित नर्सिंग होम अपने नाम करने के लिए दबाव बना रहा था। इसके लिए वह अक्सर गाली गलौज, झगड़ा भी करता था। घटना वाले दिन सुधांशु हाथ में 315 बोर का तमंचा लेकर डॉक्टर के घर पहुंचा और उनके ऊपर तमंचा तानकर धमकाने लगा । यह स्थिति देख मौके पर मौजूद डॉक्टर के प्राइवेट गनर ने इस आशंका में की कहीं सुधांशु डॉक्टर को गोली ना मार दे। सुधांशु को राइफल से गोली मार दी।

अपील पर सुनवाई करते हुए कोर्ट के समक्ष यह प्रश्न था की क्या वास्तव में डॉक्टर की जान पर खतरा उत्पन्न हुआ था । और क्या उन परिस्थितियों में उन्होंने अपने आत्मरक्षा के अधिकार का प्रयोग करने में उचित शक्ति का प्रयोग किया या आवश्यकता से अधिक शक्ति का प्रयोग किया गया। कोर्ट ने कहा कि इसका कोई तय मानक नहीं हो सकता है यह पूरी तरह से घटना के समय की परिस्थितियों, व्यक्ति की मानसिक स्थिति, उसके स्वभाव, उसे अपनी जान पर उत्पन्न खतरे की आशंका आदि पर निर्भर करता है। घटना के समय सुधांशु के हाथ में तमंचा था जिसे दिखाकर वह डॉक्टर को धमका रहा था। पुलिस ने घटनास्थल से 315 बोर का तमंचा और दो कारतूस बरामद भी किए हैं। भले ही उसने फायर नहीं किया। मगर उसके ओर से किए गए इस उकसावे से आत्मरक्षा के अधिकार का प्रयोग करने का पर्याप्त आधार बनता है ।और इस स्थिति में सामने वाले के मन में यह भय उत्पन्न होना स्वाभाविक है कि यदि उसने आत्मरक्षा नहीं की तो उसकी हत्या हो जाएगी। व्यक्ति के मन में खुद की जान पर वास्तविक खतरा होने की आशंका उत्पन्न होना उसके द्वारा आत्मरक्षा का अधिकार प्रयोग करने का पर्याप्त आधार है। कोर्ट ने अपीलार्थी डॉक्टर जे एन मिश्रा को उम्र कैद की सजा से बरी कर दिया है।


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