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दीदी की जीत दिल्ली वाले दादा के लिए खतरे की घंटी तो नहीं...?

jantaserishta.com
3 May 2021 6:14 AM GMT
दीदी की जीत दिल्ली वाले दादा के लिए खतरे की घंटी तो नहीं...?
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ममता के जीतने से एक सशक्त विपक्षी नेता की दरकार पूरी हुई.

हारकर सत्ता जीतने वाली दीदी ने जीतोड़ों को दिखाया बाहर का रास्ता.
ज़ाकिर घुरसेना
रायपुर। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले से ही सियासी पारा हाई था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित लगभग सभी केंद्रीय मंत्री और भाजपा शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री सहित आधे से ज्यादा मंत्रियों का हुजूम पश्चिम बंगाल में डटा रहा लेकिन नतीजा निराशा जनक ही कहा जायेगा। भारतीय जनता पार्टी परिवर्तन यात्रा और रैलियों से अपने पक्ष में माहौल बनाने कोई कसर नहीं छोड़े थे, खुद प्रधानमंत्री ने ममता बनर्जी को जय श्री राम के नारों से चिढऩे वाली बता कर हिन्दुओं को एकजुट करने की काफी कोशिश की थीे, जब ममता बैनर्जी ने मुस्लिमों को एकजुट होने की अपील की थी तब एक रैली में प्रधानमंत्री ने सभी हिन्दुओं को भाजपा के पक्ष में वोट करने की अपील करना पड़ा था, दबी जुबान से उन्होंने सारे हिन्दुओं को भाजपा को वोट देने कहा था, लेकिन बंगाल में ये सारे अपील नकारे साबित हुए, अब देखने में ये आ रहा है कि आम जनता को मंदिर मस्जिद, हिन्दू मुसलमान की राजनीति नहीं बल्कि रोजगार,शिक्षा और स्वास्थ्य की ज्यादा फिक्रमंद होने लगी है। बंगाल चुनाव परिणाम यही बताते है कि अब इस प्रकार नारों से चुनाव कुछ हद तक ही जीता जा सकता है। ध्रुवीकरण की राजनीति के दिन अब लदने लगे हैं ऐसा महसूस हो रहा है। इस बीच टीएमसी नेताओं का पार्टी से इस्तीफे और हिंसा की घटनाओं को लेकर राजनीतिक छिंटाकशी भी बंगाल में देखा गया । पश्चिम बंगाल की जनता ने ये बता दिया है कि हुलिया आप टैगोर जैसी बनाओ या मंदिर में माथा टेको सब अपने जगह सही है सरकार चलने के लिए स्वास्थ्य,शिक्षा और रोजगार का होना जरुरी है। ममता बैनर्जी प्रारम्भ से ही कह रही थी कि पूर्ण बहुमत से सरकार में वापसी तृणमूल ही करेगी जो सच साबित हुई और भाजपा के चाणक्य के सारे दावों की हवा निकल दी। कांग्रेस और वामदल को जनता पूरी तरह से नकार चुकी है । जनता से रिश्ता ने लोगों के मन को टटोलने की कोशिश की थी और 15 फरवरी 21 के अंक में इस बात को प्रकाशित भी किया गया था कि बंगाल की जनता ममता बनर्जी से नाराज तो हैं और उसे सबक भी सिखाना चाहते हैं लेकिन वे इसके लिए उसे सत्ता से बेदखल करने के मूड में नहीं हैं। बहरहाल विधानसभा चुनाव में भाजपा-टीएमसी के बीच जबर्दस्त द्वंद के आसार शुरू से दिख रहे थे। भाजपा जहां टीएमसी को सत्ता से बेदखल कर राज्य में परिवर्तन लाने की बात कह कर टीएमसी को राज्य से बाहर का रास्ता दिखाने हर पैंतरा आजमा चुकी।
पश्चिम बंगाल का पूरा वोट गणित
पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए 42 में से 18 लोकसभा सीटों पर कब्जा किया, लेकिन कभी लेफ्ट और अब ममता के किले में उसकी यह जीत इससे भी कहीं बढ़कर है। चुनाव नतीजों के बाद विधानसभावार वोटों का विश्लेषण राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए परेशान करने वाले संकेत जरूर दे रहा था इसी बात को लेकर भाजपाई काफी उत्साहित नजर आ रहे थे । राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को 42 में से मात्र 22 सीटों में ही संतोष करना पड़ा था ।लोकसभा चुनाव में विधानसभावार चुनावी आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मात्र 28 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी, जबकि इस बार के लोकसभा चुनाव में 128 क्षेत्रों में कमल खिला था । विधानसभा चुनाव में पुर प्रचार के दौरान ममता बनर्जी को भाजपा ने मुस्लिम भी बताया था और घोर हिन्दू विरोधी बोला गया था इसके जवाब में ममता को बताना पड़ा कि वह ब्राम्हण हैं और उनका गोत्र शाडिल्य है। एक मंच पर प्रधानमंत्री मोदी ने ममता को दीदी ओ दीदी कहकर काफी कड़े प्रहार करना भी भारी पड़ गया. बंगाल के साथ पूरे देश में इसकी तीखी आलोचना की गई थी। एक प्रकार से महिलाओं ने अपना अपमान माना और उसका करारा जवाब वोट के जरिए दिया। चुनाव के बीच ही बंगलादेश जाकर मतुआ समुदाय के मंदिर भी गए क्योकि बंगाल में लगभग दो करोड़ इस समुदाय के लोग रहते हैं, बंगाल के लोगों से नजदीकी दिखने रविंद्र नाथ टैगोर का भी रूप धारण करना पड़ा लेकिन सब तैयारी धरी की धरी रह गई। प्रधानमंत्री व भाजपा को इस बात का यकीन था की अगर मुस्लिम वोटर्स तृणमूल कांग्रेस की तरफ जाते हैं तो निश्तित तौर पर हिन्दू भाजपा को सपोर्ट करेंगे लेकिन बंगाली समुदाय ने इस बात पर ध्यान न देकर विकास, रोजगार, और स्वास्थ्य पर ही ध्यान केंद्रित रखा। ममता बनर्जी को महिलाओं,मुस्लिमों और मतुआ समुदाय ने भरपूर सपोर्ट किया यही वजह ममता के जीत का कारण बना। भाजपा की कोशिश इस बात की भी थी कि टीएमसी का कांग्रेस और वामदलों से गठबंधन किसी भी सूरत में न होने पाए ताकि वोटों के बंटने का रास्ता बना रहे और मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण न होने पाए। लेकिन मुस्लिम ,मतुआ और महिला ने आंखमूंद कर दीदी पर भरोसा जताया।
90 विधानसभा सीटों पर मुसलमानों का बाहुल्य
पश्चिम बंगाल में 90 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं की बाहुल्यता है। इस सीटों पर टीएमसी की पकड़ काफी मजबूत है। भाजपा पूरी कोशिश की कि मुस्लिम वोटर बंटे रहें लेकिन वे सफल नहीं हुए और ममता इस बार मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट करने में सफल रही असुद्दीन ओवेसी की पार्टी के विधानसभा चुनाव लडऩ़े तथा टीएमसी के एक मुस्लीम नेता का पार्टी से अलग होकर चुनाव लडऩ़े से भी मुस्लीम वोट बाटने का चांस था लेकिन ओवैसी भी कुछ खास असर बंगाल में नहीं दिखा पाए । पिछले लोकसभा चुनाव में टीएमसी ने मुस्लीम बाहुल्य 81 सीटों पर बढ़त दर्ज की थी जिसे वह विधानसभा चुनाव में बरकरार रखी । देखा जाये तो बंगाल में ममता बनर्जी की जीत को राजनीतिक पंडित मोदी और शाह की व्यक्तिगत हार बता रहे हैं।
हमें अपनों ने लुटा गैरों में कहां दम था...
दूसरी ओर असम चुनाव परिणाम में भी सियासी भूचाल आने की खबर है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जिन नेताओं पर भरोसा जताया था, वे सब फिसड्डी निकल गएअसम प्रदेश कांग्रेस कमेटी में गुटबाजी चरम पर होने के बावजूद जिन विधानसभा क्षेत्रों में भूपेश बघेल गए थे, उनमें अधिकतर जगहों में कांग्रेस की जीत हुई है, लेकिन दूसरी जगहों में छत्तीसगढ़ के धाकड़ नेता गए थे वहां पर बुरी तरह से चुनाव हार गए हैं।
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