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एचईसी को बचाने के लिए रांची और दिल्ली में प्रदर्शन

Shantanu Roy
21 Sep 2023 3:15 PM GMT
एचईसी को बचाने के लिए रांची और दिल्ली में प्रदर्शन
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रांची(आईएएनएस)। मदर ऑफ ऑल इंडस्ट्री के रूप में मशहूर रहे रांची स्थित सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठान एचईसी (हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन) को बचाने की लड़ाई अब दिल्ली पहुंच गई है। गुरुवार को इंडिया गठबंधन के बैनर तले सैकड़ों लोगों ने इस मुद्दे पर जहां जंतर-मंतर पर धरना दिया, वहीं रांची में एचईसी मुख्यालय पर हजारों कर्मियों ने रोषपूर्ण प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने केंद्र सरकार पर एचईसी को बंद करने की साजिश का आरोप लगाया। 1963 में रांची में स्थापित हुई हेवी मशीन बनाने वाली इस कंपनी की गिनती केंद्र सरकार के गौरवशाली पीएसयू में होती थी। 22 हजार कर्मियों के साथ शुरू हुई इस कंपनी में अब सिर्फ 3400 कर्मचारी-अधिकारी हैं। इनमें भी 1500 से ज्यादा कर्मी अस्थायी हैं या ठेके पर काम करते हैं। कंपनी पर कर्ज और बोझ इस कदर है कि इनका तनख्वाह देने में भी कंपनी सक्षम नहीं है। यहां के अधिकारियों-कर्मचारियों का संस्थान पर 18 महीने का वेतन बकाया है। आज की तारीख में भी कंपनी के पास करीब 1200 करोड़ का वर्क ऑर्डर है, लेकिन इसे पूरा करने के लिए वर्किंग कैपिटल नहीं है।
धीरे-धीरे बंदी की ओर बढ़ती कंपनी को बचाने को लेकर अब आंदोलन तेज होने लगा है। गुरुवार को दिल्ली में जंतर-मंतर पर आयोजित धरना में झामुमो की राज्यसभा सांसद डॉ महुआ माजी, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय, दिल्ली से आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह, बिहार से जदयू के राज्यसभा सांसद खीरू महतो, सीपीआई के राष्ट्रीय महासचिव अतुल अंजान, सीपीआई के झारखंड राज्य सचिव महेंद्र पाठक, केरल के पूर्व राज्यसभा सांसद पी संतोष, कांग्रेस के खिजरी विधायक राजेश कच्छप सहित कई नेता-कार्यकर्ता मौजूद रहे। इन नेताओं ने कहा कि केंद्र की मौजूदा सरकार सभी सरकारी उपक्रमों को बेचने पर तुली है। भारतीय रेल, इंडियन एयरलाइंस, हवाई अड्डों, बंदरगाहों सहित केंद्र सरकार के उपक्रमों को निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। एचईसी से भी हाथ खींच लेने के पीछे की वजह यही है कि सरकार इसे निजी हाथों में बेचना चाहती है। रांची में एचईसी मुख्यालय पर प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों ने कहा कि हमारे सामने अब भुखमरी नौबत है। 18 महीने से तनख्वाह नहीं मिली है। कर्मचारी जी-जान लगाकर काम कर रहे हैं, लेकिन न तो सरकारें सुन रही हैं और न ही प्रबंधन। इतने गंभीर आर्थिक संकट के बावजूद यहां के डायरेक्टर को कर्मचारियों की कोई चिंता नहीं है।
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