दिल्ली: मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर केंद्रीय करों से दिल्ली को अधिक हिस्सेदारी देने की मांग की है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखकर सीएम केजरीवाल ने पिछले 23 वर्षों में दिल्ली के लोगों के साथ भेदभाव का जिक्र करते हुए आगामी 16वें केंद्रीय वित्त आयोग में इस पर ध्यान देने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि दिल्लीवासियों ने आयकर में 1.78 लाख करोड़ रूपए का भुगतान किया, लेकिन केंद्र ने वित्त वर्ष 2023-24 में दिल्ली की हिस्सेदारी जीरो कर दी है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय करों में दिल्ली का हिस्सा पिछले 23 वर्षों से रुका हुआ है। सीएम केजरीवाल ने कहा कि वित्त वर्ष 2022-2023 में दिल्ली को केवल 350 करोड़ रूपए मिले, जबकि उसे 7,378 करोड़ रूपए मिलने चाहिए थे। उन्होंने दिल्ली को एक अनूठा मामला मानकर इसे 16वें वित्त आयोग की शर्तों में शामिल करने का अनुरोध किया है।
भारत के राजकोषीय संघवाद की दृष्टि से 16वां वित्त आयोग महत्वपूर्ण है, जिसे जल्द गठित किया जाएगा। इसकी सिफारिशें 1 अप्रैल 2026 से आने वाले 5 सालों तक लागू रहेंगी। सीएम केजरीवाल ने पत्र में कहा कि आपका ध्यान उस भेदभाव की ओर आकर्षित करना चाहता हूं जो दिल्ली के लोग पिछले 23 वर्षों से झेल रहे हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार ने केंद्रीय करों में वैध हिस्से के लिए कई बार अनुरोध किया, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। अपने पत्र में सीएम ने लिखा कि दिल्ली के बजट की फंडिंग का पैटर्न कमोबेश दूसरे राज्यों के समान है। छोटे बचत ऋणों की सेवा सहित दिल्ली सरकार के वित्तीय लेनदेन अन्य राज्यों की तरह अपने स्वयं के संसाधनों से पूरे किए जा रहे हैं। दिल्ली अपनी आय में से स्थानीय निकायों को धन भी हस्तांतरित कर रही है। लेकिन इसके बावजूद दिल्ली सरकार को दूसरे राज्यों की तरह न तो केंद्रीय करों के हिस्से में से वैध राशि मिलती है और न ही अपने स्थानीय निकायों के संसाधनों की पूर्ति के लिए कोई हिस्सा मिलता है।
सीएम केजरीवाल ने पत्र में लिखा कि दिल्ली की तरह समान आबादी वाले पड़ोसी राज्यों की तुलना करने पर असमानता साफ नजर आती है। हरियाणा को वित्त वर्ष 2022-23 में केंद्रीय करों के पूल से 10,378 करोड़ और पंजाब को 17,163 करोड़ मिले, जबकि दिल्ली को केवल 350 करोड़ मिले। सीएम केजरीवाल ने जोर देकर कहा कि दिल्ली का हिस्सा 7,378 करोड़ होना चाहिए था। उन्होंने कहा कि एमसीडी को भी केंद्र सरकार से कुछ नहीं मिल रहा है। जबकि केंद्र दूसरे राज्यों के स्थानीय निकायों को पर्याप्त फंड देता है।