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Maharaja Ranjit Singh के सिंहासन को वापस लाने की मांग

Jyoti Nirmalkar
25 July 2024 8:30 AM GMT
Maharaja Ranjit Singh के सिंहासन को वापस लाने की मांग
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दिल्ली DELHI :संसद सत्र के दौरान बुधवार को राज्यसभा में स्पेशल मेंशन के दौरान कई जरूरी मुद्दे उठाए गए। आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा ने इस बीच महाराजा रणजीत सिंह के 19वीं सदी के स्वर्ण सिंहासन को ब्रिटेन से वापस लेने की मांग की है। सोने की चादर से ढका यह सिंहासन फिलहाल लंदन के एक म्यूजियम में है। राघव चड्ढा ने केंद्र से महाराजा रणजीत सिंह के स्वर्ण सिंहासन को वापस लाने के लिए ब्रिटेन सरकार के साथ बातचीत करने का अनुरोध किया है। यह फिलहाल लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय में रखा हुआ है। राघव चड्ढा ने इसकी जानकारी देते हुए X पर लिखा, "आज संसद में मैंने महाराजा रणजीत सिंह जी के शाही सिंहासन को वापस लाने की मांग की है, जो वर्तमान में लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय में है। मैंने भारत सरकार से अनुरोध किया है कि वह इसके लिए
United Kingdom यूनाइटेड किंगडम के साथ अपने मजबूत रिश्ते का फायदा उठाए। उन्होंने कहा, "महाराजा रणजीत सिंह जी के महान शासन ने पंजाब को एकजुट किया, धर्मनिरपेक्ष मूल्यों, न्याय, समानता, सांस्कृतिक विरासत और सुशासन को बढ़ावा दिया। मैंने यह भी मांग की कि हम अपने इतिहास में महाराजा रणजीत सिंह जी की विरासत और उनके योगदान को स्कूली पाठ्यपुस्तकों में शामिल करें ताकि छात्र उनके बारे में जान सकें।"
महाराजा के भव्य दरबार का प्रतीक थी सिंहासन उस वक्त के प्रसिद्ध सुनार हाफ़िज़ मुहम्मद मुल्तानी ने 1805 और 1810 के बीच रणजीत सिंह के लिए शानदार सिंहासन बनाया था जो महाराजा के दरबार की भव्यता का प्रतीक थी। यह यूरोपीय शाही फर्नीचर से अलग है जिसमें अक्सर सोने की तरह दिखने के लिए उन पर सोने का पानी चढ़ाया जाता है। यह सिंहासन सोने की मोटी चादर से ढका हुआ है और इस पर सजावट भी की गई है। सिंहासन के निचले हिस्से में कमल की
Petals
पंखुड़ियों के डिज़ाइन है जो पवित्रत का प्रतीक है। कैसे पहुंच गया था यह अंग्रेजों तक? 1849 में जब ब्रिटेन ने पंजाब पर कब्ज़ा किया था तब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस सिंहासन को जब्त कर लिया था। सिंहासन को लीडनहॉल स्ट्रीट पर ईस्ट इंडिया कंपनी के संग्रहालय में प्रदर्शित करने के लिए लंदन भेजा गया था। वहीं गहने, चांदी के फर्नीचर और हथियारों सहित अन्य कलाकृतियों को लाहौर में नीलाम कर दिया गया था। 1879 में संग्रहालय के संग्रह के बंटवारे के बाद सिंहासन को दक्षिण केंसिंग्टन संग्रहालय में भेज दिया गया था जिसे अब विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय के रूप में जाना जाता है।
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