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नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को उस जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 66 की व्याख्या पर सवाल उठाया गया था।
याचिका दायर करने वाले अशोक कुमार सिंह और एक अन्य व्यक्ति ने आरोप लगाया था कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 66 के तहत शेयर की गई जानकारी के आधार पर एफआईआर के लिए पुलिस और सीबीआई सहित अन्य एजेंसियों को अनुचित तरीके से प्रभावित कर रही है।
याचिका में ईडी पर एफआईआर दर्ज करने के लिए एजेंसियों पर दबाव डालकर कई परस्पर विरोधी भूमिकाओं में काम करने का आरोप लगाया गया था। इसमें पीएमएलए में निर्धारित सीमाओं के उल्लंघन की बात कही गई।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि ऐसे व्याख्या संबंधी मुद्दों को उपयुक्त अदालत के समक्ष पेश किया जाना चाहिए। ईडी के वकील ज़ोहेब हुसैन ने दलील दिया कि जनहित याचिका सार्वजनिक कल्याण के बजाय निजी हितों के बारे में है।
उन्होंने दावा किया कि याचिका एकल न्यायाधीश के समक्ष लंबित एक अलग याचिका में पहले से ही उठाई गई चिंताओं को प्रतिबिंबित करती है। हुसैन ने कहा कि जनहित याचिका का इस्तेमाल व्यक्तिगत शिकायतों के समाधान के लिए नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने ऐसे कार्यों को कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करार दिया।
दूसरी ओर, याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि किसी विशिष्ट कानूनी मुद्दे पर किसी क्लाइंट की वकालत करना, उसी मुद्दे को जनहित याचिका के रूप में उठाने से नहीं रोकता है। अंततः, खंडपीठ का निष्कर्ष रहा कि मामले को एकल न्यायाधीश द्वारा प्रभावी ढंग से हल किया जा सकता है।
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