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नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि दवाइयों, ड्रग और दुलर्भ बीमारियों के उपचार के दौरान उपयोग में आने वाली थेरेपी पर कस्टम ड्यूटी और अन्य शुल्क नहीं लगाए जाएंगे। बता दें कि कोर्ट के इस निर्णय को डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी और हंटर सिंड्रोम जैसी बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए बड़ा राहत के रूप में देखा जा रहा है।
जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह इस मुद्दे को उठाते हुए केंद्रीय वित्त मंत्रालय के गत वर्ष के उस गैजेट का जिक्र किया, जिसमें सीमा शुल्क अधिनियम 1962 के तहत दुर्लभ बीमारियों के लिए दवाएं और दवाएं शामिल थीं। यह स्पष्टीकरण सुनिश्चित करता है कि मरीज और अस्पताल अतिरिक्त लागत के बोझ के बिना आवश्यक उपचार प्राप्त कर सकें।
इसके साथ ही कोर्ट ने कस्टम अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह चिकित्सकीय उपकरण मरीजों तक उपलब्ध कराने के कार्य को प्राथमिकता से लें, ताकि उनके उपचार में किसी भी प्रकार का विलंब ना हो। यह आदेश तत्काल अनुपालन के लिए केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) को सूचित किया जाना है। यह फैसला दुलर्भ बीमारियों से जूझ रहे बच्चों को मुफ्त में चिकित्सकीय उपकरण उपलब्ध कराने की दिशा में अहम माना जा रहा है। इस विषय पर साल 2020 से विचार-विमर्श किया जा रहा है। ये उपचार, जो अक्सर अत्यधिक महंगे होते हैं, रोगी के अस्तित्व और जीवन की गुणवत्ता के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
इससे पहले कोर्ट ने एआईआईएमएस को निर्देश दिया कि वो ऐसी स्थिति में मरीजों की देखभाल के लिए दवाओं को खरीदे। इसके लिए सरकार की ओर से दुर्लभ रोग नीति के अंतर्गत बाकायदा प्रति मरीज 50 लाख रुपए भी आवंटित किए गए। इन दवाओं के उचित दाम निर्धारित करने के लिए दवा कंपनियां से बातचीत की जा चुकी है। जल्द ही उचित कीमत पर मरीजों के लिए दवाएं उपलब्ध होंगी। दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए राष्ट्रीय नीति 2017 का कुशल कार्यान्वयन करने के लिए जस्टिस सिंह द्वारा गत वर्ष मई में पांच सदस्यीय समिति का गठन किया गया था, ताकि सभी जरूरतमंदों को चिकित्सकीय लाभ मिल सकें।
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