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दिल्ली हाईकोर्ट ने दहाड़ी मजदूरों को जब्ती के खिलाफ अपील के लिए जुर्माना जमा कराने से दी छूट

jantaserishta.com
2 May 2023 8:22 AM GMT
दिल्ली हाईकोर्ट ने दहाड़ी मजदूरों को जब्ती के खिलाफ अपील के लिए जुर्माना जमा कराने से दी छूट
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नई दिल्ली (आईएएनएस)| दिल्ली हाईकोर्ट ने गरीब दिहाड़ी मजदूरों को बिना जुर्माना जमा कराए जब्ती के खिलाफ अपील की अनुमति दी है। न्यायमूर्ति राजीव शकधर और तारा वितस्ता गंजू की खंडपीठ ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि अपील के लिए पूर्व अर्हताओं को पूरा करना कानूनी तौर पर जरूरी हो सकती है, लेकिन बेहद कठिन अर्हता होने से अपील का अधिकार बेमानी हो सकता है।
याचिकाकर्ता असम के होजाई के इस्लाम नगर के रहने वाले गरीब दिहाड़ी मजदूर हैं जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। वे खेती और थोड़ी बहुत अगर की लकड़ियां बेच कर अपना गुजर-बसर करते हैं।
उन्होंने दावा किया कि कस्टम अधिकारियों ने उनके पास से जो सामान बरामद किया था वे उन्होंने खरीदे थे जिसकी रसीद कारण बताओ नोटिस के जवाब के साथ संलग्न किए गए हैं।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सामग्रियों की गलत कीमत के आधार पर उन पर जुर्माना लगाया गया है जो उनके बाजार मूल्य से काफी अधिक है।
उन्होंने कहा कि उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण वे अपील के लिए जुर्माने की राशि जमा कराने में सक्षम नहीं हैं और इसलिए कस्टम एक्ट की धारा 129ई के तहत अपील नहीं कर सकते।
उन्होंने सेक्शन 129ई की संवैधानिक वैधता पर भी सवाल उठाए हैं।
उन्होंने कहा कि खेती से प्राप्त अगर की लकड़ी और तेल का निर्यात प्रतिबंधित नहीं है।
याचिकाकर्ताओं ने अपने तर्क के समर्थन में 29 नवंबर 2021 की एक अधिसूचना का हवाला दिया और कहा कि इस अधिसूचना के जरिए संशोधन के बाद इन सामग्रियों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा है। कस्टम अधिकारियों द्वारा जब्ती के समय 20 सितंबर 2019 को यह नीति लागू नहीं थी।
कस्टम विभाग ने 20 सितंबर 2019 के वाइल्ड लाइफ इंस्पेक्टर की एक रिपोर्ट के हवाले से कहा कि ये सामग्रियां कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन इंडेंजर्ड स्पीसीज ऑफ वाइल्ड फौना एंड फ्लोरा के दूसरे एपेंडिक्स में शामिल हैं और इसलिए संरक्षित की श्रेणी में हैं।
जिला मजिस्ट्रेट ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि याचिकाकर्ताओं की वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं है और वे कस्टम एक्ट की धारा 129ई के तहत अपील करने में सक्षम नहीं हैं।
अदालत ने कहा कि कस्टम विभाग के अधिकारियों ने अस्थाई तौर पर अगर की लकड़ी की कीमत पांच लाख रुपए और उसके तेल की कीमत आठ लाख रुपए प्रति किलोग्राम तय की है। इस कीमत के समर्थन में उन्होंने कोई दस्तावेज या तर्क नहीं दिया है। कीमत के बारे में अंतिम रिपोर्ट भी नहीं दी गई है। यह कीमत असम सरकार की अगर की लकड़ी संबंधित नीति के अनुरूप नहीं है।
खंडपीठ ने कहा कि जुर्माने के निर्धारण के लिए ठीक से गणना नहीं की गई। इसलिए इसका कोई कानूनी आधार नहीं है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा, इसलिए, याचिकाकर्ता को मूल्य निर्धारण के खिलाफ अपना पक्ष रखने का अवसर मिलना चाहिए जो उनकी आर्थिक स्थिति को देखते हुए अन्यथा संभव नहीं है। इसलिए हम उनके मामले को उचित मानते हैं कि उन्हें जुर्माने की राशि जमा किए बिना अपील की अनुमति मिलनी चाहिए।
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