ललित गर्ग
आपराधिक छवि वाले या जघन्य अपराधों में लिप्त लोगों को राजनीति दलों का संरक्षण मिलना भारतीय लोकतंत्र की बड़ी विडम्बना है। तृणमूल कांग्रेस के नेता शाहजहां शेख को संदेशखाली हिंसा, जमीन घोटाले, स्कूल घोटाले, देह व्यापार के धंधे व यौन उत्पीड़न के आरोप में आखिर सीबीआइ के सुपुर्द कर दिया गया। लोकतंत्र की दुहाई देने वाली पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार लगातार अदालती आदेशों की धज्जियां उडाती रही, ममता ने शाहजहां शेख को सीबीआइ को सुपुर्द करने के मामले में जो गैरजिम्मेदाराना एवं अलोकतांत्रिक रवैया अपनाया वह आश्चर्यजनक और चिंताजनक है। यह कैसी विवशता है राजनीतिक दलों की? अक्सर राजनीति को अपराध मुक्त करने के दावे की हकीकत ऐसे ही अवसरों पर सामने आती है। कलकत्ता उच्च न्यायालय के दुबारा आदेश के बावजूद संदेशखाली मामले के आरोपी को सीबीआइ के सुपुर्द करने में देरी होना न केवल समझ से परे है बल्कि यह लोकतंत्र एवं न्याय व्यवस्था की अवमानना है। इस पूरे प्रकरण से राजनीति समझ में आती है जो एक आरोपी को लेकर हो रही है।
लोकसभा चुनाव आने वाले हैं और राज्य में भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस शेख के मामले को एक राजनैतिक मुद्दा बनाने पर तुले हुए हैं। आज भारत की आजादी का अमृत महोत्सव की परिसम्पन्नता पर एक बड़ा प्रश्न है भारत की राजनीति को अपराध मुक्त बनाने का। यह बेवजह नहीं है कि देशभर में अपराधी तत्त्वों के राजनीति में बढ़ते दखल ने एक ऐसी समस्या खड़ी कर दी है कि शेख पर गंभीर आरोपों के बावजूद ममता सरकार उसे बचाने में लगी रही। शेख अपने इलाके संदेशखाली में महिलाओं का उत्पीड़न करता था और देह व्यापार के धंधे में भी संलग्न था। ये आरोप गंभीर हैं जिनकी गहनता से जांच होनी चाहिए। मगर हो यह रहा है कि राज्य सरकार शेख की रक्षा में नजर आ रही है और भाजपा लगातार आक्रमण कर रही है। विडम्बना यह है कि शाहजहां शेख कोई समाजसेवी न होकर वर्तमान दौर का मुनाफेबाज नेता, व्यभिचारी, हिंसा एवं अराजकता फैलाने का आरोपी है। वैसे तो ममता दीदी की सरकार में कई घोटाले हुए हैं मगर स्कूल घोटाले में शाहजहां शेख का नाम आने पर प्रवर्तन निदेशालय ने उसके खिलाफ जब जांच शुरू की तो हंगामा बरपा हो गया। प्रवर्तन निदेशालय की टीम विगत जनवरी माह के पहले सप्ताह में जब शाहजहां शेख के यहां संदेशखाली पहुंची तो स्थानीय तृणमूल कार्यकर्ताओं ने उस टीम पर हमला बोल दिया। इनमें अधिसंख्य शेख के समर्थक ही थे।
तृणमूल कांग्रेस एवं उनके नेताओं पर लगे गंभीर आरोपों के बाद एक बार फिर इस सवाल ने जोर पकड़ा है कि जो लोग राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त बनाने की बात करते हैं, वे हर बार मौका मिलने पर अपने संकल्प एवं बेदाग राजनीति के दावों से पीछे क्यों हट जाते हैं? तृणमूल कांग्रेस में शेख जैसे नेताओं की कमी नहीं हैं। संदेशखाली से महिलाओं के यौन उत्पीड़न और जमीनों के कब्जे को लेकर आ रही खबरें डराने वाली हैं। इन खबरों में कितनी सच्चाई है, इसका फैसला तो अदालत ही करेगी। तो फिर आरोपी को बचाने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार एड़ी-चोटी का जोर क्यों लगाती रही? यहां सवाल तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी का अथवा किसी अन्य दल का नहीं है। सवाल है, महिलाओं की अस्मिता से खेलने के आरोपियों को सजा दिलाने का। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री स्वयं महिला हैं और उन्होंने एक महिला के अस्तित्व एवं अस्मिता को नौंचने वाले नेता को क्यों राजनीतिक संरक्षण दिया?
आज राजनीति की दशा बदतर है कि यहां जनता के दिलों पर राज करने के लिये नेता अपराध, भ्रष्टाचार एवं चरित्रहीनता का सहारा लेते हैं। जातिवाद, प्रांतवाद, साम्प्रदायिकता को आधार बनाकर जनता को तोड़ने की कोशिशें होती है। पर हम कितना भ्रम पालते हैं। पहचान चरित्र के बिना नहीं बनती। बाकी सब अस्थायी है। चरित्र एक साधना है, तपस्या है। जिस प्रकार अहं का पेट बड़ा होता है, उसे रोज़ कुछ न कुछ चाहिए। उसी प्रकार राजनीतिक चरित्र को रोज़ संरक्षण चाहिए और यह सब दृढ़ मनोबल, साफ छवि, ईमानदारी एवं अपराध-मुक्ति से ही प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन बड़ा सवाल है कि कब मुक्ति मिलेगी शेख जैसे अपराधी तत्वों से राष्ट्र को? राजनीति में चरित्र-नैतिकता सम्पन्न नेता ही रेस्पेक्टेबल (सम्माननीय) हो और वही एक्सेप्टेबल (स्वीकार्य) हो। राजनीतिक दलों के बीच टकराव समझ में आता है, लेकिन सरकार में बैठे लोगों से उम्मीद की जाती है कि वे कार्यकर्ताओं और अपराधियों के बीच के फासले को समझें। चंद वोटों की खातिर देश के अलग-अलग हिस्सों में अपराधियों को शह देने के नतीजे सामने आते रहे हैं। अपराधी का न कोई धर्म देखा जाना चाहिए और न ही विचारधारा। कानून को अपना काम करने देना चाहिए, तभी लोकतंत्र की सार्थकता है।
यह अजीब स्थिति है कि अक्सर साफ-सुथरी और ईमानदार सरकार देने के दावों के बीच आपराधिक छवि के लोगों को उच्च पद देने या अपने दल का नेता बनाने का सवाल उभर जाता है। सवाल है कि क्या ममता अपने ही दावों को लेकर वास्तव में गंभीर हैं? ऐसे जिम्मेदार राजनेता अपने दावों से पीछे हटेंगे तो राजनीति को कौन नैतिक संरक्षण देगा? हम ऐसे चरित्रहीन एवं अपराधी तत्वों को जिम्मेदारी के पद देकर कैसे स्वस्थ राजनीति मूल्यों को स्थापित करेंगे? कैसे आम जनता के विश्वास पर खरे उतरेंगे? इस तरह अपराधी तत्वों को महिमामंडित करने के बाद ममता के दावों एवं लम्बे संघर्षों की क्या विश्वसनीयता धूमिल नहीं हो जायेगी? केवल सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) शेख को छह साल के लिए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा कर अपनी पार्टी की अपराध-छवि को ढक नहीं सकती।
आज जिस तरह से हमारा राष्ट्रीय जीवन और सोच विकृत हुए हैं, हमारी राजनीति स्वार्थी एवं संकीर्ण बनी है, हमारा व्यवहार झूठा हुआ है, चेहरों से ज्यादा नकाबें ओढ़ रखी हैं, उसने हमारे सभी मूल्यों को धराशायी कर दिया। राष्ट्र के करोड़ों निवासी देश के भविष्य को लेकर चिन्ता और ऊहापोह में हैं। वक्त आ गया है जब देश की संस्कृति, गौरवशाली विरासत को सुरक्षित रखने के लिए कुछ शिखर के व्यक्तियों को भागीरथी प्रयास करना होगा। दिशाशून्य हुए नेतृत्व वर्ग के सामने नया मापदण्ड रखना होगा। अगर किसी हत्या, अपहरण या अन्य संगीन अपराधों में कोई व्यक्ति आरोपी है तो उसे राजनीतिक बता कर संरक्षण देने की कोशिश या राजनीतिक लाभ उठाने की कुचेष्ठा पर विराम लगाना ही होगा। राजनीति का यह हश्र आम लोगों के लिए गौर करने काबिल हो सकता है। यदि ऐसे मुद्दे प. बंगाल में लोकसभा चुनावों के केन्द्र में रहेंगे तो इससे बड़ा मजाक बंगाली जनता के साथ दूसरा नहीं हो सकता है क्योंकि बंगाली जनता देश की आजादी के आन्दोलन से लेकर स्वतन्त्र भारत तक में राजनीति के प्रगतिशील चेहरे एवं आदर्शवादी की पहचान रही है। इस राज्य ने एक से बढ़कर एक क्रान्तिकारी व गांधीवादी दिये हैं। इन साफ-सुथरी एवं प्रेरक स्थितियों के बीच शाहजहां शेख जैसे नेताओं के कुकृत्यों एवं तृणमूल कांग्रेस की दुर्दशा पर रोया ही जा सकता है। होना तो यह चाहिए था कि जब शाहजहां शेख के खिलाफ गंभीर महिला उत्पीड़न आदि के आरोप लगे थे तो तभी राज्य पुलिस त्वरित कार्रवाई करके उसे कानून के सामने पेश करती। बेशक आरोप गलत भी हो सकते हैं मगर प्रवर्तन निदेशालय की टीम पर हमला करने के लिए लोगों को उकसाना कैसे सही ठहराया जा सकता है?
ममता सरकार और बंगाल पुलिस कुछ भी दावा करे, इसमें संदेह नहीं कि उसने आपराधिक चरित्र वाले शाहजहां शेख का बचाव करने में कोई कसर नहीं उठा रखी। जब कोई सरकार किसी कुख्यात व्यक्ति का बचाव करने में हिचक दिखाने से भी इन्कार कर दे तो भला इसे राजनीतिक निर्लज्जता के अलावा और क्या कहा जा सकता है? ममता सरकार के रवैये को देखते हुए यह अनिवार्य हो गया था कि ईडी पर हमले के साथ संदेशखाली की अन्य शर्मनाक घटनाओं के आरोपी को सख्त से सख्त सजा मिले। इस तरह की आपराधिक राजनीति को प्रश्रय देने वाले तृणमूल कांग्रेस को भी उसकी जमीन दिखा देनी चाहिए। अपराधी तत्वों को संरक्षण एवं उच्च पदों पर स्थापित करना-ये गंभीर मसले हैं, जिन पर राजनीति में गहन बहस हो, राजनीति के शुद्धिकरण का सार्थक प्रयास हो, यह नया भारत -सशक्त भारत की प्राथमिकताएं होनी ही चाहिए।