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सिविल सर्विस में नहीं भर पाए उड़ान, पर गारमेंट उद्योग में लगे पंख, जानें स्टोरी
jantaserishta.com
15 April 2023 9:31 AM GMT
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मनचाही सफलता न मिलने के कारण निराश नहीं हुए।
गोरखपुर (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश के संतकबीरनगर जिले के रहने वाले अखिलेश दुबे मनचाही सफलता न मिलने के कारण निराश नहीं हुए। बल्कि इसका पीछा छोड़ घर आकर रेडीमेड गारमेंट का अपना उद्यम स्थापित किया और सफलता की नई इबारत भी लिख रहे हैं। उनको सफलता के नए पंख लग गए हैं। संतकबीरनगर जिले के किठुऊरी (हैसर बाजार) के रहने वाले अखिलेश दुबे ग्रेजुएशन के बाद सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए 2014 में दिल्ली चले गये। वहां रहने वाले चाचा के यहां अखिलेश का आना-जाना होता रहता था। बातचीत के दौरान उनको गारमेंट इंडस्ट्री की कुछ समझ हो गई। सिविल सेवा में सफलता नहीं मिली। लौटकर गोरखपुर आये, तो सूरजकुंड में गारमेंट की एक यूनिट डाल दी। 2017 में सरकार बदल चुकी थी। अपने ही शहर के योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन चुके थे। वह कहते हैं कि यहां का होने के नाते मैं योगी जी के सांसद के रूप में टेक्सटाइल पार्क, फूडपार्क, बंद खाद कारखाने को फिर से चलाने के उनके संघर्षो और प्रतिबद्धताओंसे वाकिफ था। लिहाजा उद्योग जगत के बेहतरी की उम्मीद थी। उम्मीद के अनुसार कारोबार के लिए इकोसिस्टम भी बदलने लगा था।
उन्होंने बताया कि संतकबीरनगर किसी जमाने में अपने हैंडलूम उत्पादों के लिए जाना जाता था। उनके बाबा स्वर्गीय झिनकू दूबे कोलकाता की एक नामचीन टेक्सटाइल कंपनी के डिजाइन सेक्शन में काम कर चुके थे। चाचा शत्रुध्न दूबे दिल्ली के एक्सपोर्ट हाउस में प्रोडक्शन के हेड हैं। ऐसे में जब संकट का दौर आया, तब घर के बड़े लोगों का अनुभव काम आया।
पूर्वांचल के सबसे बड़े पर्व मकर संक्रांति के अवसर पर गुरु गोरक्षनाथ का आशीर्वाद लेकर मात्र 2.5 लाख रुपये की पूंजी से उन्होंने रेडीमेड गारमेंट की एक छोटी सी इकाई डाली थी। पांच साल में आज उनका कारोबार 24 गुना उछाल हासिल कर चुका है। बेहद कठिन चुनौतियों के उस दौर के मद्देनजर खुद के कारोबार को संभालना और बाद में उसे बढ़ाना, 'दिन दूना रात चौगुना' मुहावरे का जीवंत प्रमाण है। 9 अप्रैल को उन्हें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष अपने उत्पाद प्रदर्शित करने का अवसर मिला। सीएम उनके स्टाल पर आए और उनके द्वारा तैयार अच्छी क्वालिटी के उत्पादों को देखकर खुश हुए और आगे बढ़ते रहने को प्रेरित किया।
अखिलेश ने बताया कि 2018 में 2.5 लाख रुपये से शुरू रेडीमेड गारमेंट का काम आज करीब 60 लाख रुपये तक पहुच गया है। दो साल के वैश्विक महामारी कोरोना के ब्रेक के बावजूद अखिलेश की यह उपलब्धि खुद में खास है। बकौल अखिलेश, हमारे जैसे नये कारोबारी के लिए कोरोना का वह दो साल का कार्यकाल किसी दु:स्वप्न जैसा था। लॉकडाउन के कारण पूरी आपूर्ति चेन ठप थी। प्रोडक्शन लगभग शून्य पर आ गया। पर कुछ करने की दृढ़ इच्छाशक्ति, घर वालों के सहयोग और उनके अनुभव से संभल गया।
युवा होने के नाते वह तकनीक में भी दक्ष हैं। इसके नाते ऑनलाइन कारोबार के जरिए पूरा भारत ही उनके उत्पादों का बाजार है। पर सीधी आपूर्ति गोरखपुर, बस्ती, आजमगढ़ मंडल के कई जिलों में है। वाराणसी मंडल के कुछ जिलों के अलावा रक्सौल, बगहा, बेतिया तक भी उत्पाद जाते हैं। ओडीओपी के तहत अनुदान पर 25 लाख रुपये का लोन भी हो चुका है। मेन्स वियर शर्ट, कुर्ता, सदरी, बॉक्सर, लोवर के उत्पादन पर उनका फोकस है। उत्पाद की जरूरत के अनुसार अहमदाबाद, भिवंडी आदि जगहों से कपड़ा आता है। पैकेजिंग के आइटम दिल्ली से आते हैं। उनकी इकाई में 30 लोग काम करते हैं, जिनमें से 7 महिलाएं हैं। खुद आगे बढ़ रहे अखिलेश, रेडीमेड गारमेंट कारोबार के संबंध में किसीको सुझाव देने को भी तत्पर हैं।
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