Coronavirus Vaccine: विशेषज्ञ ने बताया...भारत की कोवैक्सीन सफलता के कितनी करीब है?
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | दुनियाभर में अब कोरोना संक्रमण के मामले बढ़कर चार करोड़ 29 लाख से ऊपर हो गए हैं जबकि मरने वाले की संख्या भी 11 लाख 54 हजार के पार हो गई है। भारत में भी इसके संक्रमण के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। यहां अब तक 78 लाख 64 हजार से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं जबकि एक लाख 18 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। ऐसे में सभी को सिर्फ वैक्सीन का ही इंतजार है ताकि इस वायरस से निजात मिल सके। देश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने उम्मीद जताई है कि कोरोना वैक्सीन देश में अगले साल जनवरी तक उपलब्ध हो जाएगी। आइए जानते हैं कि भारत की कोवैक्सिन सफलता के कितनी करीब है और साथ ही कोरोना से जुड़े अन्य सवालों के जवाब भी जानने की कोशिश करते हैं।
भारत की कोवैक्सिन सफलता के कितनी करीब है?
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रमन आर. गंगाखेडकर बताते हैं, 'देश में तीन वैक्सीन पर काम चल रहा है, पहली कैडिला वैक्सीन, दूसरी सीरम इंस्टीट्यूट की और तीसरी भारत बायोटेक की कोवैक्सीन। इन तीनों में किसे ज्यादा सफलता मिलेगी या दूसरे देश की वैक्सीन पहले आ जाएगी, हमारी बाद में, इन बातों के चक्कर में न ,बल्कि हमें ध्यान यह देना है कि हमारे यहां वैक्सीन की उत्पादन क्षमता इतनी अधिक है कि वैक्सीन सफल किसी भी देश में हो, उत्पादन के लिए भारत में आना ही पड़ेगा। यानी हम बनाएं या कोई और देश, उसका उत्पादन भारत में ही होगा, तो जाहिर है देशवासियों को बाकियों की तुलना में जल्दी मिलेगी।'
देश में सक्रिय मरीजों की संख्या और नये मामलों में कमी आई है, इसे कैसे देखते हैं?
डॉ. रमन आर. गंगाखेडकर कहते हैं, 'नए केस कम आ रहे हैं और इसमें एक अच्छाई ये है कि अस्पतालों में बेड खाली हैं और जो भी नए मरीज आ रहे हैं, तो उन्हें आसानी से बेड मिल रहे हैं। यह टेस्टिंग और लोगों की मेहनत की वजह से ही संभव हुआ है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि कोरोना का संक्रमण कम हो गया, बल्कि आने वाले महीनों में काफी सतर्क रहना है। इस वक्त त्योहार का मौसम है, लोग भी इतने दिन बाद अब एकदम से त्योहार के जश्न की तैयारी में लगे हैं। इसमें अगर लोग किसी बाहरी से मिलते जुलते हैं तो केस बढ़ सकते हैं।'
इस वक्त डायबिटीज के मरीजों के लिए क्या सलाह है?
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रमन आर. गंगाखेडकर कहते हैं, 'जब तक कोरोना की दवा नहीं आ जाती है, तब तक कोमोरबिडिटी वाले लोगों को, फिर चाहे डायबिटीज हो, कैंसर, ब्लड प्रेशर हो, खास एहतियात रखनी है। अगर घर में कई सारे सदस्य हैं और अलग-अलग जगहों पर काम पर जाते हैं, तो घर में भी मास्क लगाएं। जब तक वैक्सीन नहीं आ जाती, खुद को नेगेटिव रखने की कोशिश करें।'
कोरोना की जंग में टेस्टिंग की कितनी बड़ी भूमिका है?
डॉ. रमन आर. गंगाखेडकर बताते हैं, 'कोरोना वायरस ड्रॉपलेट के जरिए फैलता है। इसमें ज्यादातर लोगों में लक्षण नहीं दिखते हैं। ऐसे में किसी को आइसोलेट करना काफी मुश्किल होता है, क्योंकि एसिम्प्टोमेटिक मरीजों के अंदर संक्रमण को पहचानना मुश्किल होता है। लेकिन जब टेस्टिंग बढ़ाई गई तो ऐसे लोग भी पकड़ में आए जो संक्रमित थे और उनमें लक्षण नहीं थे। अगर लोगों की जांच नहीं बढ़ाते तो अब तक समाज के आधे से अधिक लोग संक्रमित हो चुके होते। एक समय था जब एक हजार जांच करना बड़ी बात थी, आज एक दिन में लाखों लोगों का टेस्ट हो रहा है और देश के हर कोने में टेस्टिंग की व्यवस्था कराने की कोशिश की जा रही है। इसलिए लक्षण आने पर टेस्ट कराएं।'
मास्क को पहनने के बाद किन बातों का ध्यान रखना है?
डॉ. रमन आर. गंगाखेडकर के मुताबिक, 'मास्क पहनने से ज्यादा अहम उसे पहनने के बाद की सतर्कता है। अक्सर लोग मास्क ऊपर नीचे करते रहते हैं। ऐसे में मास्क की बाहरी सतह पर मौजूद वायरस आपके हाथ पर आ सकता है। फिर जब आप वही हाथ मुंह पर या नाक पर लगाते हैं तो वायरस शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। इसलिए हाथ धोकर ही मास्क छुएं और उतारने के बाद फिर से हाथ धोएं। खासकर किसी के भी सामने मास्क न उतारें। हमेशा अपने साथ दो या तीन मास्क रखें और एक के इस्तेमाल के बाद उसे साबुन से धोकर एक दिन के अंतराल पर ही दोबारा इस्तेमाल करें।'