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फाइल फोटो
ये साल बीतने तक लाखों वयस्क लोगों को कोरोना वायरस का टीका लगाया जा चुका होगा, लेकिन 2021 के अंत तक इंतजार करना पड़ेगा
ये साल बीतने तक लाखों वयस्क लोगों को कोरोना वायरस का टीका लगाया जा चुका होगा, लेकिन बच्चों को 2021 के अंत तक इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि वे इस वैक्सीन के ट्रायल का हिस्सा नहीं हैं. डॉक्टरों का मानना है कि मौजूदा वैक्सीन बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं हो सकती है और दवा कंपनियों को उनके लिए अलग से ट्रायल शुरू करना होगा. हालांकि, ब्रिटेन ने फाइजर-बायोएनटेक की वैक्सीन को इस विकल्प के साथ अनुमति दी है कि आपातकालीन स्थिति में बच्चों का भी टीकाकरण किया जाए.
अमेरिका में एमोरी वैक्सीन सेंटर के निदेशक डॉ रफी अहमद का कहना है कि "फिलहाल बच्चों को टीके नहीं लगाए जाएंगे क्योंकि वे ट्रायल्स का हिस्सा नहीं हैं. दवा कंपनियों में से कुछ ने बच्चों पर अलग ट्रायल की योजना बनाई है."
वैक्सीन निर्माता फाइजर और मॉडर्ना ने हाल ही में बच्चों पर भी क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया है. अलग से किए जा रहे इस कठिन ट्रायल के तहत दवा कंपनियों को लंबी अवधि की सुरक्षा, स्वास्थ्य मापदंड, दो खुराक के बीच अंतर आदि की जांच करने की जरूरत होगी ताकि बच्चों पर वैक्सीन के प्रयोग का नतीजा बेहतर हो सके. इस प्रक्रिया में लगभग एक साल लगने की उम्मीद है.
संभावित वैक्सीन के ज्यादातर निर्माताओं ने 16 वर्ष या इससे ज्यादा उम्र के लोगों का नामांकन किया है. हालांकि, फाइजर ने अपने कुछ ट्रायल्स में 12-15 साल की उम्र के बच्चों को भी शामिल किया है.
वयस्कों के मुकाबले बच्चों को कम खतरा
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के आंकड़ों के मुताबिक, Covid-19 वायरस अब तक भारत में 97 लाख से ज्यादा लोगों को संक्रमित कर चुका है. ICMR आंकड़ों के आधार पर नेशनल कोऑपरेटिव डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (NCDC) के एक अनुमान के मुताबिक, करीब 12 प्रतिशत संक्रमित आबादी 20 वर्ष से कम उम्र की है. बाकी 88 प्रतिशत संक्रमित लोग 20 वर्ष से ज्यादा उम्र के हैं. ये आंकड़ा 8 दिसंबर, 2020 तक का है.
कोरोना महामारी की शुरुआत से ही वयस्कों की तुलना में बच्चों में ये बीमारी और इसकी मृत्यु दर काफी कम रही है. हालांकि, कोविड-19 से संक्रमित हो चुके कई बच्चों में अब एक नया लक्षण देखने में आया है जिसे मल्टीसिस्टम इनफ्लेमेटरी सिंड्रोम (PMIS) कहा जाता है.
अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (JAMA) के जर्नल में हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि "कोरोना संक्रमण के बाद बच्चों और वयस्कों- दोनों में ही एक दुर्लभ मल्टीसिस्टम इनफ्लेमेटरी बीमारी देखी गई है."
संक्रमित बच्चों में इस बीमारी के जोखिम को देखते हुए इस बात की जरूरत बढ़ जाती है कि कोरोना की वैक्सीन उनके लिए काफी सुरक्षित होनी चाहिए. विशेषज्ञ इस बात पर जोर दे रहे हैं कि बच्चों के लिए वैक्सीन की प्रभाविता और लंबे समय तक सुरक्षा सुनिश्चित हो.
न्यूयॉर्क के ट्रूडो इंस्टीट्यूट में वायरल डिजीज रिसर्च एंड ट्रांसलेशनल साइंस प्रोग्राम की प्रमुख इंवेस्टीगेटर डॉ प्रिया लूथरा ने इंडिया टुडे से कहा, "सुरक्षा सबसे जरूरी प्राथमिकता है, इसलिए बच्चों को दिए जाने से पहले हमारे पास वैक्सीन की व्यापक सुरक्षा और प्रभाविता पर पर्याप्त डेटा होना चाहिए. क्लीनिकल ट्रायल ये सूचना प्राप्त करने में मदद करेगा. आदर्श रूप से लक्ष्य यह होगा कि अमेरिका में अगले वर्ष स्कूली सत्र से पहले बच्चों के लिए एक वैक्सीन तैयार हो. अभी फोकस कमजोर आबादी, फ्रंट लाइन वर्कर्स और जरूरी सेवाओं के कर्मचारियों को वैक्सीन दिलाने पर है."
बच्चों के लिए वैक्सीन: पक्ष और विपक्ष
एम्स में कम्युनिटी मेडिसिन डिपार्टमेंट के प्रोफेसर और भारत बायोटेक के क्लीनिकल ट्रायल के मुख्य इंवेस्टीगेटर डॉ संजय राय ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि बच्चों को वैक्सीन की जरूरत है. पहली बात, कोरोना संक्रमण का खतरा बच्चों पर न्यूनतम है. दूसरे, ये देखा जाना बाकी है कि वैक्सीन का लंबे समय में प्रभाव क्या होता है."
ब्रिटेन ने फाइजर वैक्सीन के उपयोग को हरी झंडी दे दी है और ये भी कहा है कि जिन बच्चों पर ज्यादा खतरा है उन्हें वैक्सीन दी जाए.
ब्रिटेन सरकार की ज्वाइंट कमेटी ऑन वैक्सीनेशन और इम्युनाइजेशन (JCVI) ने अपने ताजा दिशा-निर्देश में कहा है, "समिति ये सलाह देती है कि वैक्सीन सिर्फ उन बच्चों को दी जानी चाहिए जिन पर संक्रमण के बाद गंभीर खतरा है, जैसे कि बड़े बच्चे जिन्हें गंभीर न्यूरो-विकलांगता है और जिन्हें आवासीय देखभाल की जरूरत है. डॉक्टरों को बच्चे के अभिभावक के साथ वैक्सीन के जोखिम और फायदे पर चर्चा करनी चाहिए, उन्हें बताना चाहिए कि 16 वर्ष से ज्यादा उम्र के बच्चों में वैक्सीन की सुरक्षा को लेकर डेटा की कमी है."
जनवरी ने लेकर अब तक कोरोना वायरस ने दुनिया भर में करीब 6.5 करोड़ लोगों को संक्रमित किया है और 15 लाख से ज्यादा लोगों की जान ली है. सार्वजनिक आंकड़ों से पता चलता है कि कनाडा के पास पहले से ही पर्याप्त वैक्सीन है जो उसकी आबादी से चार गुना ज्यादा लोगों को सुरक्षा दे सकती है. दूसरी ओर, भारत ने वैक्सीन के 1.6 अरब डोज खरीदने के लिए करार किया है जो इसकी 85 फीसदी आबादी को कवर कर सकता है.
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