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कोरोना की मार: लॉकडाउन में छीन गई नौकरी, श्मशान घाट बना शख्स का नया ठिकाना, अब करता है अंतिम संस्कार

jantaserishta.com
24 April 2021 4:25 AM GMT
कोरोना की मार: लॉकडाउन में छीन गई नौकरी, श्मशान घाट बना शख्स का नया ठिकाना, अब करता है अंतिम संस्कार
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कोरोना महामारी में श्मशान घाटों पर लाशों की लंबी लाइन लगी हुई है. यहां का नजारा बेहद ही डरवाना है. लोग मजबूरी में अपनों को अंतिम विदाई देने के लिए आ रहे हैं, लेकिन हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, जिसने इस महामारी में नौकरी जाने के बाद श्मशान घाट को अपना घर बना लिया. वो यहां रहकर कोरोना से जान गंवाने वालों के अंतिम संस्कार की सभी जिम्मेदारियां निभा रहा है. इस कार्य में उसकी पत्नी भी हाथ बंटा रही है.

गुजरात के वड़ोदरा स्थित श्मशान घाट पर रह रहे इस शख्स की खूब चर्चा हो रही है. महाराष्ट्र के रहने वाले इस शख्स का नाम कन्हैयालाल शिर्के है. कन्हैयालाल शिर्के श्मशान घाट में आने वाली लाशों के साथ आने वाले परिजनों का दर्द तो कम नहीं कर सकता, लेकिन उनके परिजनों की अंतिम विदाई की सभी जिम्मेदारियां निभा कर नेक काम कर रहा है. कोरोना महामारी में नौकरी जाने के बाद कन्हैयालाल शिर्के ने श्मशान घाट को ही अपना घर बना लिया है.
महाराष्ट्र का रहने वाला कन्हैयालाल शिर्के पिछले एक साल से वड़ोदरा के वासना गांव के श्मशान घाट में रह रहा है और कोरोना से मरने वालों के अंतिम संस्कार की सभी जिम्मेदारियों को निभा रहा है. कन्हैयालाल महाराष्ट्र से रोजी रोटी कमाने वड़ोदरा आया था. उसकी पत्नी महाराष्ट्र के मुंबई में ही कुछ छोटा मोटा काम करती थी.
कन्हैयालाल यहां आकर पेंटिंग का काम करता था, लेकिन एक साल पहले कन्हैयालाल की कोरोना महामारी के बीच हुए लॉकडाउन में नौकरी चली गई. कुछ दिन ऐसे ही बिताने के बाद उसने मेहनत मजदूरी की, लेकिन उससे गुजारा कर पाना बेहद मुश्किल हो गया. इस बीच उसकी पत्नी और बच्चे भी वड़ोदरा आ गए. अब उस पर जिम्मेदारियां और भी बढ़ गईं. उसके पास न हीं कोई नौकरी थी और न हीं रहने का ठिकाना.
इसके बाद कन्हैयालाल शिर्के ने वड़ोदरा के वासना गांव के श्मशान घाट को ही अपना आशियाना बना लिया. यहां रहते हुए कन्हैयालाल ने शवों के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी निभानी शुरू कर दी. इस काम में कन्हैयालाल की पत्नी ने भी उसका साथ देना शुरू कर दिया है. सुबह से पति पत्नी दोनों श्मशान घाट के काम में लग जाते हैं और बच्चे भी कई बार उनका हाथ बंटाते हैं.
शव के अंतिम संस्कार से लेकर शव यात्रा तक के विभिन्न कार्यों को अंजाम दे रहे हैं. कन्हैयालाल ने बताया कि शुरुआत में दिक्कतें आईं और काफी परेशानी उठानी पड़ी. लेकिन जब कुछ नहीं मिला तब यह अंतिम धाम ही मिल गया. कन्हैयालाल की पत्नी अनिता ने बताया कि उनके लिए पति ही सब कुछ है, उनका सहारा काफी है. पति जहां भी रखेंगे वह खुशी खुशी रह लेंगी. पति पत्नी दोनों अभी खुश हैं और बच्चों की भी परवरिश कर रहे हैं. जहां सभी को अंतिम मोक्ष मिलता है वहीं उनको अंतिम सहारा मिल गया है.

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