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'मेरे इलाज के लिए मम्मी के जेवर बिक गए। आपके खाते में जो पैसे थे वे भी खत्म हो गए। मुझे पता चला है कि आप उन्नाव बाई पास वाला घर आप गिरवी रखने जा रहे हैं। मेरा इलाज कराने में सब बरबाद हो जाएगा। पम्मी (बहन) की शादी कैसे होगी। मैं बचूंगा या नहीं, यह पक्का नहीं है। मुझे भगवान भरोसे छोड़ दो।' यह अस्पताल में भर्ती एक बेटे की अपने पिता से चार मई की शाम को मोबाइल फोन पर हुई बातचीत है। बेटे का शुक्रवार को कोरोना से निधन हो गया। उन्नाव के रहने वाले रामशंकर के घर पर 17 अप्रैल को आफत टूट पड़ी थी। उनकी पत्नी जलज और 23 वर्षीय बेटा सुशील कोरोना संक्रमित हो गए। पत्नी की हालत तो सुधरने लगी। पर बेटे की हालत बिगड़ने लगी। उन्नाव से सीधे कानपुर भागे। वहां दो-तीन भटकने के बाद भी अस्पताल में जगह नहीं मिली। वह बेटे को लेकर लखनऊ आए। यहां शहर से दूर एक निजी अस्पताल में जगह मिल गई। डाक्टरों ने पहले अस्सी हजार रुपये जमा कराए। प्रतिदिन 25 हजार का खर्च बताया। रामशंकर के पास जो जमा पूंजी थी वह उन्नाव और कानपुर में ही इलाज कराने में खर्च हो गई। पैसों की और जरूरत पड़ी तो पत्नी ने बेटी की शादी के लिए संजोकर रखे अपने जेवर बेच कर 3.30 लाख रुपये रामशंकर को दिए।
उन्नाव में ही घर में एक छोटी सी परचून की दुकान चलाने वाले रामशंकर ने बताया कि जेवर बेच कर जो पैसे मिले थे उसे उन्होंने अस्पताल में जमा कर दिए। उन्हें पता था कि इलाज में और पैसे लगेंगे। पैसों का इंतजाम और कहीं से होता न देख उन्होंने अपना पुश्तैनी घर गिरवी रखने का फैसला किया। यह बात अस्पताल में भर्ती उनके बेटे सुशील को पता चली। सुशील ने अस्पताल में एक वार्ड ब्वाय के मोबाइल से बात कर अपने पिता को ऐसा न करने को कहा था। उन्होंने बताया कि शुक्रवार की सुबह डाक्टरों ने बताया कि सुशील का निधन हो गया है। यह सुनते ही उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। बेहोश होकर गिर पड़े। आसपास खड़े लोगों ने उन्हें संभाला। उनके इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह यह खबर अपनी पत्नी और बेटी को देते। अस्पताल प्रशासन की तरफ से मुहैया कराई गई एम्बुलेंस से बेटे का शव आलमबाग शमशान घाट पहुंचा। जहां उसका अंतिम संस्कार हुआ।