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कोरोना महामारी: सरकारी पोर्टल पर बता रहा था बेड ख़ाली, जज ने सुनवाई के बीच कोर्ट से ही लगवा दिया फोन...
Deepa Sahu
6 May 2021 4:38 PM GMT
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कोरोना महामारी के दौरान लोगों को समय पर अस्पतालों में भर्ती नहीं करने तथा इलाज नहीं मिलने से दम तोड़ने की लगातार खबरें आ रही हैं।
कोरोना महामारी के दौरान लोगों को समय पर अस्पतालों में भर्ती नहीं करने तथा इलाज नहीं मिलने से दम तोड़ने की लगातार खबरें आ रही हैं। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इसको लेकर कई बार केंद्र और राज्य सरकारों को सख्त चेतावनी जारी कर चुकी हैं। इसके बावजूद सरकारी सिस्टम अपनी लापरवाही से बाज नहीं आ रहा है। लोगों की सुविधा के लिए करीब-करीब सभी राज्यों की सरकारों ने पोर्टल बनाकर आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराने का दावा करती रही हैं, लेकिन हकीकत यह है कि उनमें से अधिकतर को न तो समय से अपडेट किया जा रहा है और न ही उसमें बताई गईं सूचनाओं से लोगों को कुछ फायदा ही हो रहा है। हालात अमानवीय होते जा रहे हैं।
यूपी के सरकारी पोर्टल में दी गई जानकारी पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान ही क्रास चेक करवाया तो हकीकत सामने आ गई। हाईकोर्ट में अधिवक्ता अनुज सिंह ने कहा कि सरकारी पोर्टल पर हरि प्रसाद इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में मंगलवार सुबह लेवल-2 और लेवल-3 के 190 बेड खाली दिखाए गए थे, लेकिन अस्पताल से बताया गया अभी कोई बेड खाली नहीं हैं। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान ही अधिवक्ता अनुज सिंह से अस्पताल में फोन करने को कहा। काल करने पर अस्पताल ने जवाब दिया कि लेवल-2 और लेवल-3 के कोई बेड खाली नहीं हैं। उस समय भी पोर्टल में यही दिखाया जा रहा था कि बेड खाली हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार का यह पोर्टल शक पैदा करता है।
इसी तरह हाल ही में दिल्ली कैंट स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल के पोर्टल पर 250 बेड्स खाली दिखा रहे थे। बेड्स खाली देखकर दो सौ से ज्यादा मरीज यहां पहुंच गए, लेकिन अस्पताल ने उन्हें भर्ती नहीं किया। इसकी वजह से कई मरीज अस्पताल के बाहर खड़ी एंबुलेंस में ही तड़पते रहे। परिजन परेशान रहे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। जबकि सरकार की ओर से दावे किए जा रहे हैं कि पोर्टल पर सभी ताजी जानकारियां उपलब्ध है। डीआरडीओ के बनाए इस अस्पताल लगभग 1000 बेड्स हैं। अस्पताल को कोविड मरीजों के इलाज के लिए ही बनाया गया था।
हरियाणा के रोहतक ऑनलाइन पोर्टल पर पिछले हफ्ते कुल 1191 में से 330 बेड खाली दर्शाए गए थे। जबकि सच्चाई यह है कि वहां एक भी वेंटिलेटर व आईसीयू का बेड खाली नहीं था। दुखद यह है कि पोर्टल पर अस्पताल का जो नंबर दिया गया था, उसे कोई अटेंड भी नहीं करता है। ऐसे में कोविड की पीड़ा से तड़प रहे मरीज सिर्फ भगवान भरोसे ही रहने को विवश हैं। ऐसे हालात सिर्फ यूपी, दिल्ली और हरियाणा के ही नहीं है, बल्कि कमोवेश सभी राज्यों में यही हाल है।
इस बीच दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि महामारी की परीक्षा की घड़ी में राष्ट्रीय राजधानी में वर्तमान स्वास्थ्य ढांचा "चरमरा" गया है। अदालत ने साथ ही दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि राष्ट्रीय राजधानी के जो भी निवासी कोविड-19 से पीड़ित हैं, उन्हें उपचार की सुविधा मुहैया कराएं। न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ ने कहा कि सरकार अगर यह कह रही है कि स्वास्थ्य ढांचा नहीं चरमराया है तो वह शुतुरमुर्ग की तरह व्यवहार कर रही है जो संकट के समय बालू में सिर धंसा लेता है।
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