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भारत-चीन से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर डीएस त्रिपाठी (रि.) से बातचीत

Sonam
30 July 2023 7:04 AM GMT
भारत-चीन से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर डीएस त्रिपाठी (रि.) से बातचीत
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प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) जी के साथ चीन के विदेश मंत्रालय में हुई उठापटक, रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात, इजराइल में हो रहे बवाल, पाकिस्तान-अमेरिका रक्षा संबंधों में आ रही मजबूती और श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-

प्रश्न-1. चीन ने ‘लापता’ विदेश मंत्री छिन कांग को पद से हटाकर वांग यी को क्यों विदेश मंत्री बनाया? हाल ही में भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की वांग से मुलाकात को कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दरअसल छिन कांग विदेश मंत्री बनने के बाद से लगातार जिस तरह आक्रामकता के साथ काम कर रहे थे उससे चीन के संबंध कई देशों के साथ खराब दौर में पहुँच गये थे। इसलिए छिन कांग को सिर्फ मंत्री पद से नहीं हटाया है बल्कि उनसे संबंधित सारा डेटा भी हटा दिया गया है। आपको ना तो चीन के विदेश मंत्री के रूप में उनकी द्विपक्षीय मुलाकातों, भाषणों और बैठकों का कोई ब्यौरा चीन में मिलेगा ना ही उनकी विदेश मंत्री के रूप में कार्यक्रमों में शामिल होने संबंधी कोई तस्वीर दिखाई देगी। जिस तरह से उनको लगभग एक महीने तक गायब रखा गया वह दर्शा रहा है कि उनके खिलाफ कोई सख्त एक्शन लिया गया है जिसकी जानकारी दुनिया को नहीं दी गयी है। उन्होंने कहा कि जब छिन कांग विदेश विभाग के प्रवक्ता थे तब संभवतः वह एक महिला एंकर के करीब आ गये थे और यह रिश्ते अब भी जारी थे। संभवतः उनके खिलाफ की गयी कार्रवाई का एक कारण यह भी रहा होगा।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीन ने विदेश मंत्री छिन कांग को बर्खास्त कर वरिष्ठ नेता वांग यी को इस पद पर फिर से नियुक्त कर दिया है और इस नियुक्ति के साथ सख्त प्रशासन वाले कम्युनिस्ट देश में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के करीबी विश्वासपात्र से जुड़े दुर्लभ घटनाक्रम का अंत हो गया। छिन लगभग एक महीने से सार्वजनिक रूप से नजर नहीं आए हैं। छिन को लेकर कई तरह की अटकलों के बीच चीन की नाममात्र की संसद ने उन्हें हटाने के फैसले को मंजूरी दे दी। 57 वर्षीय छिन को पिछले साल दिसंबर में कई वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर विदेश मंत्री बनाया गया था और उन्हें सत्तारुढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) में एक उभरते सितारे के तौर पर देखा जा रहा था। वह चीन के इतिहास में इस पद पर नियुक्त सबसे कम उम्र के व्यक्तियों में से एक थे।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने बताया कि शी ने छिन को विदेश मंत्री बनाए जाने से पहले वाशिंगटन के साथ बीजिंग के तनाव भरे संबंधों को स्थिर करने के लिए अमेरिका में चीन का राजदूत बनाया था। छिन को अचानक हटाए जाने का कोई कारण नहीं बताया गया है। वैसे श्रीलंका, वियतनाम और रूस के अधिकारियों से 25 जून को मुलाकात के बाद छिन को सार्वजनिक रूप से नहीं देखा गया है। उन्होंने बताया कि चीन की संसद ने 69 वर्षीय वांग को विदेश मंत्री नियुक्त करने के लिए मतदान किया और छिन को पद से हटा दिया। वांग ने इससे पहले 2013 से 2022 तक विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने बताया कि चीनी राजनीतिक पदानुक्रम में विदेश मंत्री का पद सीपीसी के विदेश मामलों के आयोग के निदेशक से काफी नीचे है। वांग को सीपीसी के उच्च राजनीतिक पद, स्टेट काउंसलर के पद पर भी पदोन्नत किया गया था।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि छिन के जनता की नजरों से ओझल रहने और बैठकों से दूर रहने के कारण कयास लगाए जाने लगे कि वह स्वस्थ नहीं हैं। बाद में भ्रष्टाचार के मामलों में शामिल होने के अलावा हांगकांग के ‘फोनिक्स टीवी’ में कार्यरत एक चीनी पत्रकार के साथ उनके कथित संबंध की अफवाहें भी फैलीं। उन्होंने कहा कि चीनी विदेश मंत्रालय छिन की अनुपस्थिति और वह कहां हैं, इस बारे में पत्रकारों के सवालों को लगातार टालता रहा। उन्होंने कहा कि छिन को पद से हटाए जाने को शी के लिए एक बड़ा झटका और शर्मिंदगी का सबब माना जा रहा है, जो सीपीसी संस्थापक माओत्से तुंग के बाद सबसे शक्तिशाली नेता के रूप में उभरे हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि विदेश मंत्री के रूप में अपने संक्षिप्त कार्यकाल के दौरान, छिन ने पूर्वी लद्दाख में गतिरोध के कारण तनावपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों को सहज बनाने के लिए विदेश मंत्री एस जयशंकर से दो बार मुलाकात की थी। उन्होंने कहा कि दिलचस्प बात यह भी है कि वांग ने सोमवार को जोहानिसबर्ग में ब्रिक्स देशों के एनएसए की बैठक के मौके पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल से मुलाकात की। बैठक के दौरान, डोभाल ने सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन एवं शांति बहाली के प्रयास जारी रखने की जरूरत पर जोर दिया ताकि द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने की ‘बाधाओं’ को दूर किया जा सके।

प्रश्न-2. रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात क्या हैं? मास्को तक यूक्रेनी ड्रोनों का पहुँचना क्या पुतिन की कमजोरी का प्रतीक नहीं है?

उत्तर- ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध लगभग थमा हुआ है क्योंकि इसमें अभी ना किसी की जीत हुई है और ना किसी की हार। उन्होंने कहा कि यूक्रेन की ओर से किसी भी हिमाकत का रूस द्वारा तगड़ा जवाब दिया जा रहा है जिससे पश्चिमी देश भी हैरान हैं। इसीलिए अवधारणा की लड़ाई जीतने के लिए यह बात फैलायी जा रही है कि यूक्रेन ने अपना काफी इलाका वापस हासिल कर लिया है। उन्होंने कहा कि रूस ने अब तक यूक्रेन का जो 25 प्रतिशत इलाका कब्जाया था उसमें से चार-पांच प्रतिशत इलाका ही यूक्रेन वापस ले सका है जोकि नगण्य है। उन्होंने कहा कि जंगल और खुले इलाके में चार पांच किलोमीटर की जमीन वापस ले लेना कोई बड़ी कामयाबी नहीं है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन चीन भी जाने वाले हैं जिससे रूस को और हथियारों की आपूर्ति हो सकेगी। उन्होंने कहा कि खबरें तो यहां तक हैं कि पाकिस्तान भी चीन होते हुए रूस को कुछ हथियार भेज रहा है। उन्होंने कहा कि रूस ने ग्रेन डील को बाधित कर पश्चिमी देशों पर जो चोट की है उससे वह परेशान हो उठे हैं। कई नाटो देशों में यह भावना भी आ रही है कि यूक्रेन की मदद करके हमें लाभ की जगह हानि ही हो रही है तो आखिर ऐसी स्थिति में हम कब तक योगदान करते रहें? उन्होंने कहा कि यह युद्ध इस दिशा में बढ़ चुका है कि इसे लड़ने वाले और इसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देने वाले देश भी अब आजिज आ चुके हैं लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि कोई भी शांति की पहल नहीं कर रहा।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक मास्को तक ड्रोन पहुँचने की बात है तो एकाध निशाना लग जा रहा है वरना बाकियों को रूस द्वारा मार गिराया जा रहा है। उन्होंने कहा कि रूस ने अपनी हथियार फैक्ट्रियों में उत्पादन बढ़ा रखा है। पुतिन नहीं चाहेंगे कि विश्व के युद्ध इतिहास में उन्हें एक हारे हुए नेता के रूप में देखा जाये इसीलिए वह इस युद्ध को बरसों बरस तकी खींचने के लिए भी तैयार हैं। उन्होंने कहा कि नाटो देशों ने रूस पर तमाम तरह के प्रतिबंध लगा दिये और यूक्रेन को हथियार भी मुहैया करा दिये लेकिन रूस का ज्यादा कुछ नहीं बिगाड़ पाये।

प्रश्न-3. इजराइल ने सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों को कम करने का जो कदम उठाया है उससे दुनिया भर में लोकतंत्र और न्यायपालिका को कितना बड़ा खतरा पैदा हो गया है?

उत्तर- ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इजराइली संसद ने जिस विवादास्पद कानून को मंजूरी दी है वह राजनीतिक शक्ति पर न्यायिक अंकुश को रोकता है और देश की न्याय प्रणाली को फिर से आकार देने की प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्होंने कहा कि विधेयक के पक्ष में 64 और इसके खिलाफ शून्य वोट पड़े। विपक्ष ने विरोध में विधेयक पर मत विभाजन का बहिष्कार किया। यह सरकार के न्यायिक सुधार में पारित होने वाला पहला प्रमुख विधेयक है। कानून के अनुसार, अदालतों को कैबिनेट और मंत्रियों के फैसलों की "तर्कसंगतता" पर किसी भी तरह की पड़ताल करने से प्रतिबंधित किया गया है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि कानून को नरम करने के लिए रखे गए विचारों का भी कोई नतीजा नहीं निकला जिस पर प्रधानमंत्री नेतन्याहू और गठबंधन के प्रमुख नेताओं द्वारा चर्चा की गई थी। इसलिए, राजनीतिक सत्ता पर न्यायिक अंकुश लगाने के पक्ष और विपक्ष में, हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए। उन्होंने कहा कि विधेयक में संशोधन करने या विपक्ष के साथ व्यापक प्रक्रियात्मक समझौता करने के लिए इजराइली संसद के भीतर अंतिम समय में किए गए कई प्रयास भी विफल रहे। उन्होंने कहा कि यदि इजराइल की राह पर अन्य देश भी चलने लगे तो लोकतंत्र पर सवाल उठ सकता है।

प्रश्न-4. पाकिस्तान-अमेरिका रक्षा संबंध और मजबूत करने पर सहमत हुए हैं। अमेरिका के शीर्ष जनरल और पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल असीम मुनीर के बीच बैठक हुई और दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने भी वार्ता की। साथ ही भारतीय रक्षा मंत्री के जरूरत पड़ने पर एलओसी पार करने के बयान पर जिस तरह पाकिस्तान की प्रतिक्रिया आई है उसे कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों में कोई गर्माहट नहीं आई है। यह सिर्फ रूटीन मुलाकातें थीं। अमेरिका की दो प्रमुख चिंताएं हैं। एक- कहीं पाकिस्तान अस्थिर हुआ तो आतंकवाद इस क्षेत्र में हावी हो सकता है? दूसरा- जिस तरह चीन पाकिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है और पाकिस्तान के समर्थन से अफगानिस्तान, ईरान और खाड़ी देशों से संबंध सुधार रहा है उससे अमेरिका चिंतित है। उन्होंने कहा कि जहां तक अमेरिका के शीर्ष जनरल और पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर के बीच हुई बैठक की बात है तो पाकिस्तानी सेना की मीडिया इकाई इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशन (आईएसपीआर) द्वारा जारी बयान के मुताबिक, अमेरिकी मध्य कमान के प्रमुख जनरल माइकल एरिक कुरिल्ला ने पाकिस्तानी सेना के अध्यक्ष जनरल मुनीर के साथ बैठक की। बयान के मुताबिक, दोनों सैन्य अधिकारियों ने आपसी हित, क्षेत्रीय सुरक्षा और पाकिस्तान एवं अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग पर चर्चा की। बयान में कहा गया है कि अतिथि सैन्य अधिकारी ने पाकिस्तानी सेना की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सफलता और पाकिस्तान की क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता लाने के लिए लगातार की जा रही कोशिश को स्वीकार किया और उसकी प्रशंसा की। इसके मुताबिक, दोनों पक्षों ने सभी क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की इच्छा दोहराई।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा, पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने अपने अमेरिकी समकक्ष एंटनी ब्लिंकन के साथ फोन पर की गई बातचीत में नकदी संकट से गुजर रहे इस्लामाबाद की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में वाशिंगटन की मदद और अफगानिस्तान सहित अन्य क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा की। साथ ही दोनों नेताओं ने विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की और रिश्तों को मजबूत करने, शांति व विकास को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करने पर सहमति जताई। उन्होंने बताया कि इस बारे में ब्लिंकन ने ट्वीट किया, ''अमेरिका पाकिस्तान के साथ उपयोगी, लोकतांत्रिक और समृद्ध साझेदारी का समर्थन करता है।’’ उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और अफगानिस्तान सहित साझा क्षेत्रीय चिंताओं को लेकर बिलावल के साथ विचारों का आदान-प्रदान किया।

पाकिस्तान के विदेश विभाग के मुताबिक अमेरिका के समर्थन पर धन्यवाद देते हुए बिलावल ने कहा कि पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ हुए ‘स्टैंड बाई’ समझौते से ‘पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और विकास कार्यों को बल मिलेगा। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था में ढांचागत सुधार करने को प्रतिबद्ध है ताकि उसे और अधिक प्रतिस्पर्धी, कारोबार एव विदेशी निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक बनाया जा सके। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने एक अलग से बयान जारी कर कहा कि ब्लिंकन ने ‘‘लाभदायक अमेरिका-पाकिस्तान साझेदारी को दोहराने’’ के लिए बिलावल से फोन पर बात की। हालांकि अमेरिका ने अपने बयान में उतना सब नहीं कहा जितना पाकिस्तान ने कहा है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बयान की बात है तो उन्होंने साफ कहा है कि भारत अपना सम्मान और प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार करने को तैयार है। साथ ही उन्होंने आम नागरिकों से ऐसी स्थिति में सैनिकों के समर्थन के लिए तैयार रहने का आह्वान भी किया है। उन्होंने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध का उदाहरण देते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि युद्ध एक साल से भी अधिक समय से चल रहा है, क्योंकि नागरिक आगे आए और युद्ध में हिस्सा ले रहे हैं। उन्होंने बताया कि रूस-यूक्रेन युद्ध का उदाहरण देते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि एक साल से अधिक समय से चल रहा युद्ध आज के दौर में संघर्षों की अप्रत्याशित प्रकृति को दर्शाता है। राजनाथ सिंह ने कहा कि यह युद्ध लंबा खिंच गया है, क्योंकि लोग अपने हितों की लड़ाई के लिए प्रशिक्षण ले रहे हैं और अपनी सेना में शामिल हो रहे हैं। उन्होंने लोगों से जरूरत पड़ने पर न केवल अप्रत्यक्ष रूप से बल्कि प्रत्यक्ष रूप से भी युद्ध में भाग लेने के लिए तैयार रहने का आह्वान किया। राजनाथ सिंह ने कहा कि लोगों को मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए ताकि जब भी देश को उनकी जरूरत पड़े तो वे सशस्त्र बलों की मदद के लिए तैयार रहें। जैसे कि प्रत्येक जवान भारतीय है, उसी तरह प्रत्येक भारतीय को एक जवान की भूमिका निभाने के लिए तैयार रहना चाहिए।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि रक्षा मंत्री ने सही ही कहा है कि जब भी युद्ध की स्थिति रहती है, हमारी जनता ने हमेशा हमारे जवानों का समर्थन किया है, लेकिन यह समर्थन अप्रत्यक्ष रूप से रहा है। उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्री ने कहा है कि मैं लोगों से अपील करता हूं कि वे जरूरत पड़ने पर युद्धभूमि में सैनिकों को प्रत्यक्ष रूप से और मानसिक रूप से सहयोग करने के लिए तैयार रहें, इसके गहरे मायने हैं। उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जरूरत पड़ने पर युद्धभूमि में सैनिकों को प्रत्यक्ष और मानसिक रूप से सहयोग करने के लिए जनता से तैयार रहने का जो आह्वान किया है वह बहुत अहम है। उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध के लंबा खिंचने का जिक्र करते हुए बताया है कि वहां लोग अपने देश के हितों की रक्षा के लिए प्रशिक्षण लेकर सेना में शामिल हो रहे हैं। देखा जाये तो आज के दौर में संघर्षों की अप्रत्याशित प्रकृति को देखते हुए यह वक्त की जरूरत भी है कि लोगों को मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए ताकि जब भी देश को उनकी जरूरत पड़े तब वे सशस्त्र बलों की मदद के लिए मैदान में उतर सकें।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक राजनाथ सिंह के बयान पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया की बात है तो वह स्वाभाविक ही थी क्योंकि उसके विदेश कार्यालय ने कहा है कि ‘‘युद्ध भड़काने वाली बयानबाजी’’ क्षेत्रीय शांति एवं स्थिरता के लिए खतरा है। उन्होंने कहा कि इस्लामाबाद में विदेश कार्यालय का यह कहना कि पाकिस्तान किसी भी आक्रामकता के खिलाफ अपनी रक्षा करने में पूरी तरह सक्षम है, बिल्कुल बकवास है क्योंकि भारत सर्जिकल और एअर स्ट्राइक के माध्यम से उसे दो बार सबक सिखा चुका है।

प्रश्न-5. श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा किन मायनों में अहम रही? क्या भारत के कहने पर ही उन्होंने अल्पसंख्यक तमिलों के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाई?

उत्तर- ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि श्रीलंका में बढ़ते चीनी हस्तक्षेप को देखते हुए भारत सतर्क निगाह बनाये हुए है। साथ ही श्रीलंका को भी संकट के समय यह महसूस हुआ है कि भारत ने ही निस्वार्थ भाव से उनकी हर मायने में मदद की। उन्होंने कहा कि श्रीलंका में हालात में थोड़ा सुधार आने के बाद राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने भारत की यात्रा की और इस दौरान आगे भी हर तरह से श्रीलंका को भरपूर मदद दिये जाने का आश्वासन दिया गया है। भारत सरकार ने श्रीलंका से तमिलों के मुद्दे का समाधान करने को कहा है जिसके चलते राष्ट्रपति ने बैठक कर संकेत दिया है कि उनकी सरकार इस दिशा में अब गंभीर और सार्थक प्रयास करेगी।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि श्रीलंका की प्रांतीय परिषदों में सामंजस्य, सुलह एवं उन्हें पूर्ण अधिकार देने के उद्देश्य से इस सप्ताह हुई सर्वदलीय बैठक के बेनतीजा भले रहे लेकिन अब यह बैठक एक महीने बाद फिर होगी। नयी दिल्ली की यात्रा से पहले विक्रमसिंघे ने उत्तर और पूर्वी प्रांतों में प्रतिनिधित्व करने वाले तमिल दलों के साथ एक बैठक में प्रांतों को पुलिस शक्तियां दिए बगैर सर्वदलीय सहमति के साथ श्रीलंका के संविधान में 13वें संशोधन (13ए) के पूर्ण कार्यान्वयन पर सहमति जताई थी। देखा जाये तो 13ए को लागू करना 1987 में श्रीलंका में तमिलों को राजनीतिक स्वायत्तता के मुद्दे का समाधान निकालने के प्रयास में भारत का एक अग्रणी कदम था। इसके तहत उत्तरी एवं पूर्वी प्रांतों के अस्थायी विलय के साथ विकसित इकाई के तौर पर नौ प्रांतों का निर्माण किया गया था। उन्होंने कहा कि इस बारे में तमिल नेशनल एलायंस (टीएनए) के सदस्य एमए सुमंतीरन ने ट्वीट किया है कि श्रीलंका के राष्ट्रपति का रुख भारत-समर्थित 13ए को पूर्ण रूप से लागू करने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इच्छा के विरुद्ध था। सुमतीरन ने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने विक्रमसिंघे को प्रांतीय परिषद के रुके हुए चुनावों को आयोजित करने को कहा था लेकिन राष्ट्रपति का विचार कुछ और था। सुमतीरन ने बताया है कि हमें किसी एक को चुनने को कहा गया। उन्होंने बताया कि सुमतीरन विक्रमसिंघे के रुख का जिक्र कर रहे थे जिसमें उन्होंने कहा था कि राजनीतिक दलों को निश्चित रूप से आम सहमति से यह फैसला करना चाहिए कि भारत-समर्थित 13ए को पूर्ण रूप से लागू किया जाए या पूरी तरह रद्द कर दिया जाए।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने नयी दिल्ली में विक्रमसिंघे से बातचीत में उम्मीद जताई थी कि श्रीलंका के नेता 13ए को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे और प्रांतीय परिषद के चुनाव आयोजित करेंगे। उन्होंने तमिलों के लिए एक सम्मानजनक एवं प्रतिष्ठित जीवन सुनिश्चित करने का अनुरोध किया था। उन्होंने बताया कि चुनाव सुधारों के कदम के बाद 2018 से नौ प्रांतों के चुनाव रुके हुए हैं। कुछ सिंहली बहुल पार्टियों ने भी परिषदों को पूर्ण शक्ति प्रदान करने के लिए 13ए को पूर्ण रूप से लागू करने से पहले चुनाव कराने पर जोर दिया था।

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