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कनेक्टिविटी परियोजनाओं को देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए: एस जयशंकर

jantaserishta.com
2 Nov 2022 2:58 AM GMT
कनेक्टिविटी परियोजनाओं को देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए: एस जयशंकर
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नई दिल्ली (आईएएनएस)| विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मंगलवार को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की सरकार प्रमुखों की परिषद की ऑनलाइन बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। जयशंकर ने कहा कि एससीओ क्षेत्र में कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स को मध्य एशियाई देशों के हितों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए।
एस जयशंकर ने ट्वीट करते हुए लिखा कि इस बैठक में शामिल होकर ये रेखांकित किया कि हमें मध्य एशियाई देशों के हितों को महत्व देते हुए एससीओ क्षेत्र में बेहतर संपर्क स्थापित करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि ये इस क्षेत्र की आर्थिक क्षमता को अनलॉक करेगा, जिसमें चाबहार बंदरगाह और इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर सुगम संपर्क प्रदान करने वाले बन सकते हैं।
विदेश मंत्री ने आगे लिखा कि कनेक्टिविटी परियोजनाओं को सदस्य राज्यों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय कानून का आदर करना चाहिए। जयशंकर की इस टिप्पणी को चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के संदर्भ में देखा जा रहा है।
एस जयशंकर ने कहा कि यहां पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा लॉन्च किए गए मिशन लाइफ (एलआईएफई) की बात करें जो एक सकरुलर अर्थव्यवस्था द्वारा प्रचलित यूज एंड डिस्पोज अर्थव्यवस्था को प्रतिस्थापित करने की कल्पना करता है। इस बात पर प्रकाश डाला गया कि 2023 में संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष में भारत खाद्य संकट का मुकाबला करने के लिए एससीओ सदस्य देशों के साथ अधिक सहयोग को बढ़ावा देना चाहता है।
जयशंकर ने बताया कि एससीओ सदस्यों के साथ हमारा कुल व्यापार 141 अरब डॉलर का है, जिसके कई गुना बढ़ने की संभावना है। उचित बाजार पहुंच हमारे पारस्परिक लाभ के लिए है और आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका है।
गौरतलब है कि शंघाई सहयोग सगंठन की स्थापना 2001 में शंघाई में रूस, चीन, किर्गिज गणराज्य, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्राध्यक्षों ने एक शिखर सम्मेलन में की थी। इन वर्षों में यह दुनिया के सबसे बड़े अंतर-क्षेत्रीय अंतरराष्ट्रीय संगठनों में से एक के रूप में उभरा है। 2017 में भारत और पाकिस्तान इसके स्थायी सदस्य बने थे।
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