तनवीर जाफ़री इसी वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों के बादल मंडराने लगे हैं। सत्ता और विपक्ष दोनों ही अपने अपने तरीक़े से मतदाताओं तक अपनी पहुँच बनाने व उन्हें लुभाने का प्रयास करने लगे हैं। चुनावों से पूर्व जहाँ भारतीय जनता पार्टी अयोध्या के नवनिर्मित राम मंदिर में भगवान राम की मूर्ति की समय पूर्व …
तनवीर जाफ़री
इसी वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों के बादल मंडराने लगे हैं। सत्ता और विपक्ष दोनों ही अपने अपने तरीक़े से मतदाताओं तक अपनी पहुँच बनाने व उन्हें लुभाने का प्रयास करने लगे हैं। चुनावों से पूर्व जहाँ भारतीय जनता पार्टी अयोध्या के नवनिर्मित राम मंदिर में भगवान राम की मूर्ति की समय पूर्व प्राण प्रतिष्ठा करवाकर संभवतः आख़िरी बार 'राम ' के नाम पर वोट बटोरने की रणनीति अपना रही है वहीँ विपक्ष द्वारा देश के लगभग सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय विपक्षी दलों को एक नव गठित विपक्षी संगठन I.N.D.I.A के बैनर तले इकठ्ठा कर देश को विपक्ष के एकजुट होने का सन्देश देने की कोशिश की गयी है। यहां यह बताने की ज़रुरत नहीं कि भाजपा अनेक धर्मगुरुओं यहाँ तक कि शंकराचार्यों के उच्चस्तरीय विरोध व आपत्ति के बावजूद अपने सभी सहयोगी व संरक्षक संगठनों के साथ व पूरे सरकारी सहयोग से राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा को इतना प्रचारित कर रही है ताकि विपक्ष की हर सत्ता विरोधी आवाज़ "नक़्क़ार ख़ाने में तूती की आवाज़ " की तरह दब कर रह जाये।
उधर विपक्षी I.N.D.I.A गठबंधन के सबसे बड़े घटक कांग्रेस के नेता राहुल गांधी इसी बीच 14 जनवरी से सुलगते हुये मणिपुर राज्य से अपनी दूसरे दौर की भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर निकाल चुके हैं। इस बार वे मणिपुर से मुंबई तक 6,700 किलोमीटर से ज़्यादा की भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर निकले हैं। कांग्रेस नेताओं के अनुसार राहुल गाँधी की यह यात्रा लोगों को आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक न्याय दिलाने तथा संविधान व लोकतंत्र पर मंडराते ख़तरे के प्रति देशवासियों को सचेत करने की यात्रा है। 66 दिनों की यह प्रस्तावित यात्रा 15 राज्यों के 100 लोकसभा क्षेत्र और 337 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुज़रेगी। ग़ौरतलब है कि इससे पूर्व भी राहुल गांधी ने सितंबर 2022 से लेकर जनवरी 2023 तक कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक 'भारत जोड़ो यात्रा' की थी। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि पहली यात्रा से न केवल राहुल गांधी की छवि बेहतर हुई है बल्कि इससे उनका राजनीतिक क़द भी बढ़ा था। इसलिए कांग्रेस ने यात्रा का दूसरा चरण शुरू करने का फ़ैसला लिया है। कांग्रेस इन यात्राओं से निश्चित रूप से यह प्रमाणित करना चाहती है कि सत्ता में हो या न हो परन्तु कांग्रेस कल भी देश के सभी धर्मों,भाषाओं,क्षेत्रों व राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी थी और आज भी है। हालांकि सूत्रों के अनुसार I.N.D.I.A गठबंधन के ही कई वरिष्ठ नेता राहुल गांधी की इस मणिपुर-मुंबई भारत जोड़ो न्याय यात्रा की तिथि व समय को लेकर सहमत नहीं हैं। क्योंकि कांग्रेस की वर्तमान भारत जोड़ो न्याय यात्रा ऐसे वक़्त में हो रही है, जब 28 विपक्षी दलों के I.N.D.I.A गठबंधन के नेताओं के बीच सीटों के बँटवारे तथा गठबंधन के चेहरे जैसे अति महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत जारी है। इनका कहना है कि चूँकि I.N.D.I.A गठबंधन इन दिनों 'सीट शेयरिंग ' जैसे नाज़ुक दौर से गुज़र रहा है ऐसे में राहुल गांधी व उनके साथ कई वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में व्यस्तता चिंता का विषय है।
परन्तु कांग्रेस पार्टी शायद सीट शेयरिंग के लिये होने वाली बैठकों से पूर्व ही I.N.D.I.A गठबंधन के कई प्रमुख घटकों की इस रणनीति का अंदाज़ा लगा चुकी है कि सभी छोटे व क्षेत्रीय दल, गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस पर ही दबाव बनाने की कोशिश करेंगे। इसी लिये कांग्रेस I.N.D.I.A गठबंधन के साथ साथ अपना राष्ट्रीय जनाधार भी पूर्ववत बनाकर रखना चाह रही है। इधर राहुल गांधी विपरीत मौसम व परिस्थितियों में भी अथाह परिश्रम कर व जोखिम उठाकर कांग्रेस को पुनः उसका खोया हुआ जनाधार वापस दिलाने के लिये कृत संकल्प हैं तो दूसरी तरफ़ अभी भी कांग्रेस में विश्वासघातियों द्वारा विश्वासघात किये जाने की ख़बरें आ रही हैं। पिछले दिनों कांग्रेस पार्टी के साथ अपने परिवार के 55 साल पुराने पुश्तैनी रिश्ते को ख़त्म करते हुये पूर्व केंद्रीय मंत्री मिलिंद देवरा ने कांग्रेस पार्टी त्याग दी और वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना (शामिल ) में शामिल हो गए। इससे पूर्व भी ठीक इसी तरह की भारत जोड़ो यात्रा जब राहुल गाँधी ने 7 सितम्बर 2022 को कन्याकुमारी से कश्मीर के लिये आरम्भ की थी ठीक उसी समय 26 अगस्त 2022 को ग़ुलाम नबी आज़ाद ने भी कांग्रेस से इस्तीफ़ा दे दिया था। और अब भारत जोड़ो न्याय यात्रा पार्ट टू के समय मिलिंद देवरा का पार्टी छोड़ना यह महज़ एक इत्तेफ़ाक़ है या कांग्रेस के विरुद्ध रची जाने वाली साज़िश ?
निःसंदेह इस समय कांग्रेस को जहां सत्ता के हर उस षड्यंत्र से जूझना है जो उसके 'कांग्रेस मुक्त भारत ' अभियान के तहत चलाया जा रहा है। जिसके तहत कांग्रेस में ही चुन चुनकर भीतरघातियों,विश्वासघातियों,लालची,सत्ता के चाहवान,बिकाऊ या भ्रष्ट लोगों को लालच या भय दिखाकर कांग्रेस को कमज़ोर करने की व्यापक साज़िश रची जा रही है। स्वयं गाँधी-नेहरू परिवार के लोगों को किसी न किसी मामले में उलझा कर उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश की जा रही है। साथ ही I.N.D.I.A गठबंधन के कई सहयोगी दल भी कांग्रेस से बढ़त हासिल करने की चाह में और अपने सत्ता मोह में कांग्रेस पर पूरा भरोसा नहीं कर पा रहे। इन छोटे दलों को भी यह सोचना चाहिये कि संविधान व देश के लोकतान्त्रिक मूल्यों की रक्षा करना केवल कांग्रेस की ही ज़िम्मेदारी नहीं बल्कि उन सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दलों की भी है जो स्वयं को देश के धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक मूल्यों व संविधान का रखवाला बताते हैं।
बहरहाल सत्ता पाने या सत्ता से चिपके रहने के हथकंडे अपनाने वाले नेताओं व दलों की राजनीति से इतर कांग्रेस पार्टी गांधीवादी मूल्यों व सिद्धांतों पर चलने वाली देश की अकेली ऐसे पार्टी है जिसने कभी भी कहीं भी फ़ासीवादी व सम्प्रदायिकतावादी ताक़तों से समझौता नहीं किया। अन्य सभी छोटे बड़े दल अपनी सुविधानुसार समय समय पर अपने विचारों की तिलांजलि देकर भी इन्हीं शक्तियों के किसी न किसी रूप में सहयोगी रह चुके हैं जिन्हें सत्ता से हटाना इनके लिये चुनौती बन गया है। ऐसे में बावजूद इसके कि कांग्रेस इस समय सत्ता,सहयोगियों व भीतरघातियों के साथ साथ साथ गंभीर आर्थिक संकट से भी जूझ रही है परन्तु इसमें भी कोई शक नहीं कि गाँधी के देश में साम्प्रदायिक शक्तियों का राष्ट्रीय स्तर पर मुक़ाबला भी केवल गाँधी की कांग्रेस द्वारा ही किया जा सकता है।