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नक्सल ड्यूटी के दौरान शहीद हुए कांस्टेबल के परिवार को दिया जाए मुआवजा, बॉम्बे हाई कोर्ट का गृह विभाग को निर्देश

Deepa Sahu
6 Jun 2021 6:04 PM GMT
नक्सल ड्यूटी के दौरान शहीद हुए कांस्टेबल के परिवार को दिया जाए मुआवजा, बॉम्बे हाई कोर्ट का गृह विभाग को निर्देश
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बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले एक राज्य रिजर्व पुलिस के हेड कांस्टेबल के परिवार को राहत दी है.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले एक राज्य रिजर्व पुलिस के हेड कांस्टेबल के परिवार को राहत दी है. कोर्ट ने गृह विभाग को हेड कांस्टेबल के परिवार को उनके वेतन का बकाया भुगतान करने के निर्देश दिए है. जानकारी के अनुसार साल 2009 में गढ़चिरौली में एक नक्सली इलाके में ड्यूटी के दौरान हेड कांस्टेबल की मौत हो गई थी. 2019 तक परिवार को उनके वेतन के बकाया का भुगतान किया जा रहा था. इसके बाद 2019 में गृह विभाग के एक आदेश के बाद इसक पर रोक लगा दी गई थी.

न्यायमूर्ति केके टेट और एनआर बोरकर की बेंच ने गणेश चव्हाण की पत्नी की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया था. एसआरपीएफ के हेड कांस्टेबल गणेश चव्हाण की मृत्यु 15 जुलाई 2009 को एक नक्सली इलाके में ड्यूटी के दौरान हो गई थी. चव्हाण अपने परिवार पर अकेले कमाने वाले थे. एक नदी में तेज पानी के बहाव के कारण उनका वाहन पानी में बह गया था. इस हादसे में उनकी और तीन अन्य कर्मियों की मौत हो गई थी.
सरकारी रेसोल्यूशन के तहत मिलता है मुआवजा
चव्हाण की मौत के बाद नवंबर 2008 में एक सरकारी रेसोल्यूशन के अनुसार एसआरपीएफ ने उनके परिवार को वेतन देना शुरू कर दिया था. परिवार पिछले एक दशक से मुआवजे के लाभ से ही अपना गुजारा कर रहा था. राज्य के गृह विभाग ने 20 जुलाई 2019 को डीजीपी कार्यलय के उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था, जिसमें चव्हाण के परिवार को मुआवजा और अन्य लाभ देने के आदेश देने की मांग की गई थी.
इस आदेश के बाद बंद हुआ मुआवजा
जानकारी के अनुसार न्यायिक मजिस्ट्रेट के एक फैसले के बाद ये मुआवज मिलना बंद हो गया था. इस आदेश में कहा गया था कि ये घटना एक टिपर ट्रक के चालक की गलती की वजह से हुई थी. इस चालक को धारा 304 के तहत दोषी ठहराया गया था. इसके बाद अगस्त 2019 से परिवार को मिले वाले लाभ को बंद कर दिया गया था.
कोर्ट ने दिया ये तर्क
इसे देखने के बाद कोर्ट ने कहा कि हमारे विचार में मौत का उद्देश्य देखना गलत है. नवंबर 2008 के सरकारी रेसोल्यूशन के हिसाब से सिर्फ एक यही प्रश्न है कि पुलिस कर्मी की मृत्यु नक्सल विरोधी अभियान, आतंकवादी विरोधी अभियान या बचाव अभियान के दौरान हुई थी.
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